केन्द्र के फैसले के बाद लग रहा है कि उत्तराखण्ड का सियासी संकट अब खत्म हो जाएगा। उत्तराखण्ड में मार्च से राष्ट्रपति शासन लगा हुआ है।
नई दिल्ली। उत्तराखण्ड का सियासी संकट 10 मई को खत्म होने की उम्मीद है। मंगलवार को उत्तराखण्ड विधानसभा में शक्ति परीक्षण होगा। ये सुप्रीम कोर्ट के पर्यवेक्षक की निगरानी में होगा। प्रिंसिपल सेक्रेटरी(लिजिसलेचर)फ्लोर टेस्ट की निगरानी करेंगे और कार्यवाही की रिकॉर्डिंग करेंगे। शक्ति परीक्षण में कांग्रेस के 9 बागी विधायक वोट नहीं कर पाएंगे। शक्ति परीक्षण के लिए उत्तराखण्ड से दो घंटे के लिए राष्ट्रपति शासन हटा दिया जाएगा। शक्ति परीक्षण के दौरान विधायक हाथ उठाकर वोट करेंगे। वोटिंग की रिकॉर्डिंग और वीडियोग्राफी को प्रिंसिपल सेक्रेटरी 11 मई को सुप्रीम कोर्ट को सौंपेंगे।
बागियों की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट ने नहीं की सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कांग्रेस के 9 बागियों की अर्जी पर सुनवाई से इनकार कर दिया। बागियों ने सदस्यता रद्द किए जाने के विधानसभा अध्यक्ष के फैसले को चुनौती दी थी। नैनीताल हाईकोर्ट ने 9 विधायकों की सदस्यता रद्द करने के स्पीकर के फैसले को सही ठहराया था।
केन्द्र सरकार शक्ति परीक्षण कराने के लिए हुई राजी
केन्द्र सरकार उत्तराखण्ड में बहुमत परीक्षण के लिए तैयार हो गई। अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट को यह जानकारी दी। रोहतगी ने बताया कि केन्द्र सरकार सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में उत्तराखण्ड में बहुमत परीक्षण के लिए तैयार है। रोहतगी ने बहुमत परीक्षण के लिए सुप्रीम कोर्ट से पर्यवेक्षक नियुक्त करने की मांग की। उन्होंने कहा कि पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त को पर्यवेक्षक नियुक्त किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि बहुमत परीक्षण का एक मात्र एजेंडा दो राजनीतिक दलों की ओर से बहुमत साबित करना ही होना चाहिए। बहुमत परीक्षण के दौरान राज्य में राष्ट्रपति शासन बरकरार रखना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट पर विचार करने को कहा था
केन्द्र के जवाब के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अब पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को बहुमत साबित करने की इजाजत दी जानी चाहिए। 4 मई को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि केन्द्र सरकार उसकी निगरानी में उत्तराखण्ड विधानसभा में बहुमत परीक्षण कराने पर विचार करे। केन्द्र ने इस पर विचार के लिए 48 घंटे का वक्त मांगा था। इसके बाद केन्द्र ने सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दाखिल किया। उत्तराखण्ड में मार्च से राष्ट्रपति शासन लगा हुआ है।
गौरतलब है कि उत्तराखंड में 18 मार्च को राजनीतिक संकट उस वक्त शुरु हुआ था, जब 70 मेंबर्स की असेंबली में कांग्रेस के 36 में से 9 विधायक बागी हो गए। गवर्नर केके पॉल ने सीएम हरीश रावत को 28 मार्च तक विश्वास मत हासिल करने को कहा, लेकिन केंद्र ने विश्वास मत हासिल करने से पहले 27 मार्च को ही राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया। इसके बाद उत्तराखंड हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए राष्ट्रपति शासन हटाने का आदेश दिया था। कोर्ट ने कहा था कि राज्य में 18 मार्च से पहले की स्थिति बनी रहेगी। ऐसे में हरीश रावत एक बार फिर राज्य के मुख्यमंत्री बन गए थे और उन्हें 29 अप्रैल को विधानसभा में बहुमत साबित करने का आदेश दिया गया था। हाई कोर्ट के इस आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी और राज्य में राष्ट्रपति शासन फिर लागू हो गया था।