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INTERVIEW: राष्ट्रपति चुनाव को ‘दलित बनाम दलित’ बनाने से है मीरा को आपत्ति

विपक्ष की 17 पार्टियों की राष्ट्रपति उम्मीदवार मीरा कुमार का दावा है कि वे सिर्फ विरोध दर्ज करवाने के लिए नहीं, बल्कि जीतने के लिए चुनाव लड़ रही हैं।

Jun 28, 2017 / 11:30 am

ghanendra singh

meira kumar

meira kumar

नई दिल्ली. विपक्ष की 17 पार्टियों की राष्ट्रपति उम्मीदवार मीरा कुमार का दावा है कि वे सिर्फ विरोध दर्ज करवाने के लिए नहीं, बल्कि जीतने के लिए चुनाव लड़ रही हैं। अपनी पहचान एक दलित राजनेता के तौर पर किए जाने से वे नाराज हो जाती हैं। साथ ही वे मानती हैं कि राष्ट्रपति कार्यालय को ज्यादा सादगीपूर्ण बनाया जा सकता है और देश की चुनौतियों से निपटने में ज्यादा सक्रिय भी। पेश है, राजस्थान पत्रिका से उनकी बातचीत के अंश…

क्या आपके लिए इस चुनाव में हार-जीत से ज्यादा इसका प्रतीकात्मक महत्व है?
मेरा खड़ा होना प्रतीकात्मक नहीं है। मैं एक विचारधारा को लेकर खड़ी हूं। वह विचारधारा जीते, यह मेरा प्रयास होगा। वह विचारधारा है लोकतांत्रिक मूल्य और मैं जीतने के लिए लड़ रही हूं।

मगर जीत के लिए जरूरी संख्या कहां से आएगी?
हमारी क्या रणनीति रहेगी, वह अभी बताना तो उचित नहीं होगा। रणनीति सामने के पक्ष की तैयारी, जरूरत और समय की मांग को देखकर बनाई जाती है। मैंने निर्वाचन मंडल के सभी सम्मानित सदस्यों को दो दिन पहले पत्र लिखा है और उन्हें विनम्र अनुरोध किया है कि वे अपना समर्थन मुझे दें। यह बहुत बड़ा अवसर है जब इतिहास रचने जा रहा है। ऐसे अवसर पर अंतरात्मा की आवाज जरूर सुनी जानी चाहिए।


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राष्ट्रपति पद से आप किस तरह देश की सेवा करना चाहती हैं?
इस पद की अपनी गरिमा और मर्यादा है। मगर देश की जितनी भी समस्याएं और चुनौतियां हैं, उन सब पर राष्ट्रपति की पैनी नजर होनी चाहिए। वे समय-समय पर दिशा-निर्देश दे सकते हैं। मार्गदर्शन कर सकते हैं।

संघीय ढांचे में राष्ट्रपति शासन के औचित्य पर सवाल उठते रहे हैं। आपकी सोच?
इसकी एक प्रक्रिया है। राज्य सरकार के स्तर पर भी और केंद्र की ओर से भी। लेकिन प्रक्रिया पूरी होने के साथ ही यह भी ध्यान रखना चाहिए कि हमारा जनतंत्र बहुमत के आधार पर चलता है।

राष्ट्रपति शासन के फैसलों पर न्यायपालिका ने कई बार सवाल उठाए…
हमारे देश में बहुत ठोस व्यवस्था की गई है। यहां न्यायपालिका है, कार्यपालिका है, संसद है, विधानसभाएं हैं। सभी की भूमिकाएं हैं और सभी की राय होती है। ऐसे फैसलों पर और उसके तरीकों पर सवाल तो उठने ही चाहिए। यही तो हमारे लोकतंत्र की खूबसूरती है।

राष्ट्रपति पद को जिस तरह भव्यता और लाव-लश्कर में लपेट दिया गया है…
राष्ट्रपति देश के सर्वोच्च पद पर बैठते हैं। उस पद की गरिमा को ध्यान में रखते हुए और वे जिस तरह देश-विदेश के बहुत से लोगों से मिलते हैं, उसे ध्यान में रखते हुए उसे जितना सादगीपूर्ण बनाया जा सकता है, बनाया जाना चाहिए।

क्या आप ऐसी कोशिश करेंगी?
जरूर करूंगी।

स्पीकर के तौर पर आप जिस संयम के साथ ‘बैठ जाइए’ और ‘शांत हो जाइए’ कहती थीं। यह सौम्यता कब अपनाई?
मेरा ऐसा ही स्वभाव है। उस भूमिका के दौरान सब तरह से मुझे बहुत स्नेह, समर्थन और सहयोग मिला है।

सत्ता पक्ष की ओर से जो दलित कार्ड खेला गया उसमें विपक्ष भी घिर गया…
मुझे खड़ा करने का अर्थ है कि विपक्ष घिर गया? (सवाल दोहराती हैं) क्या आप भी मानते हैं कि विपक्ष घिर गया इसलिए मुझे खड़ा किया गया है? क्या आप भी मुझे सिर्फ दलित के रूप में ही देखते हैं? जो लोग ऐसा सोचते हैं उनसे मैं जानना चाहूंगी कि क्या दलित की पहचान सिर्फ उसकी जाति है और बाकी लोगों की पहचान उनके गुण हैं? ऐसा है क्या भेद-भाव दिमाग के अंदर।

मगर मायावती ने कहा था, वे आपकी समर्थक हैं?
इस बारे में कुछ नहीं कहना चाहती।

लेकिन यह सवाल तो उठेगा ना…
आप उठाइए सवाल, गलत नहीं है।

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क्या राष्ट्रपति चुनाव के जरिए पूरा विपक्ष एकजुट होगा?
हो गए हैं, सब एकजुट।

एनडीए से बाहर के बहुत से दल उन्हें समर्थन कर रहे हैं।
मैंने सब को पत्र लिखा है।

आप किस भूमिका में सबसे ज्यादा सहज रहती हैं?
जब गरीब और जरूरतमंद लोगों से मिलती हूं और उनके लिए कुछ कर पाती हूं तो अच्छा लगता है।

आपके पसंदीदा राष्ट्रपति?
(हंसते हुए) यह सवाल आपको नहीं करना चाहिए था।

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