शिवसेना ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आड़े हाथों लेते हुए कहा है कि सरकार के एक साल पूरा होने के बाद भी महंगाई रोकने में नाकाम रही है।
नई दिल्ली। एक बार
फिर शिवसेना ने मोदी और फड़नवीस सरकार पर हमला बोला है। महाराष्ट्र में भाजपा की
सहयोगी पार्टी शिवसेना ने केंद्र और महाराष्ट्र सरकार को निशाने पर लिया है। बढ़ती
हुई महंगाई के मुद्दे पर शिवसेना ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आड़े हाथों लेते
हुए कहा है कि सरकार के एक साल पूरा होने के बाद भी महंगाई रोकने में नाकाम रही
है।
सामना में लिखा है लेख
शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में लिखा है कि
महंगाई अब जनसामान्य के गले में फांसी का फंदा बन चुकी है। ऎसे में आखिर सरकार क्या
कर रही है। भयंकर महंगाई शीर्षक से छपे इस लेख में पार्टी ने लिखा है कि बीजेपी के
सत्ता में आने के एक साल बाद भी नई सरकार महंगाई को रोकने में असमर्थ दिख रही है,
जबकि पिछली सरकार में महंगाई का ठीकरा मनमोहन सिंह के माथे पर फोड़ना सरल बन चुका
था।
लेख में लिखीं खरी-खरी
सामना में लिखा गया है की नई गुल्ली-डंडे
वाली सरकार के कार्यकाल को एक वर्ष पूरा होने को है लेकिन नई सरकार ने जादुई छड़ी
घुमाकर अभी तक महंगाई के राक्षस को बोतल में बंद नहीं किया। दाल, प्याज और
सब्जियों की कीमत का जिक्र करते हुए पार्टी ने लिखा है कि आम आदमी यह सवाल पूछना
चाहता है कि क्या यह सत्ता परिवर्तन महंगाई के राक्षस को अपनी छाती पर सवार करने के
लिए किया गया था। मुखपत्र में आगे लिखा है कि यूपीए के शासनकाल में अर्थवेत्ता
मनमोहन सिंह की खिल्ली उड़ाना तमाम लोगों का शौक बन चुका था।
फड़नवीस सरकार
को लिया निशाने पर
शिवसेना ने लेख को जनभावना बताते हुए लिखा है कि दाल समेत
खाद्यानों की बढ़ती कीमतों को देखकर मन बेचैन हो रहा है। महाराष्ट्र तो पहले से ही
अकाल पीडित है। जनता चारों तरफ से अग्निडाह को भोगने के लिए मजबूर है। देवेंद्र
फड़नवीस सरकार पर निशाना साधते हुए लेख में लिखा गया है कि महाराष्ट्र सरकार का
पहला जन्मदिन आने वाला है। राज्य पर सुख-समृद्धि और सस्ताई के अच्छे दिनों की बरसात
हो, इस खातिर ही सत्ता परिवर्तन हुआ था। नई सरकार ने मंत्रालय का जो गृह प्रवेश
किया, वह किस मुहूर्त पर हुआ इसका शोध पहले ही दिन से जारी है। सूखा ग्रस्त
महाराष्ट्र में सरकार ने आम लोगों पर 1600 करोड़ रूपये का नया कर भार लाद दिया है।
आम नौकरी-पेशा और रोज कुआं खोदो, रोज पानी पियो की स्थिति को प्राप्त गरीब की आय
और खर्च का संतुलन साधना असंभव हो चुका है।