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आखिर क्या कारण है केरल औऱ पश्चिम बंगाल में जारी राजनीतिक हिंसा का

Published: Jul 30, 2017 05:03:00 pm

हिंसा की घटनाओं में दोनों राज्यों में हजारों लोगों ने अपना जीवन खो दिया है। केरल और पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा का मूल कारण सत्ताधारी पार्टी द्वारा विरोधी पार्टियों के कार्यकर्ताओं को निशाना बनाना है। 

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कोलकाता/तिरुवनंतपुरम: भारत में हम जब राजनीतिक हिंसा की बात करते हैं तो जेहन में सबसे पहले केरल और पश्चिम बंगाल राज्य ही ध्यान में आते हैं। केरल में आर.एस.एस, भाजपा और सी.पी.एम. के कार्यकर्ताओं के बीच काफी हिंसक झडपें होती रही हैं जिसमें कई लोगों ने जान भी गवाई है। लेकिन अभी बीते दिनों तेजी से बढ़ी राजनीतिक हिंसा और हत्याओं के कारण केरल की वामपंथी सरकार को भारी आलोचना का सामना करना पड़ा है। केरल और पश्चिम बंगाल में लगातार जारी राजनीतिक हिंसा गंभीर चिंता का विषय है। 

मारे जा चुके हैं हजारों लोग
हिंसा की घटनाओं में दोनों राज्यों में हजारों लोगों ने अपना जीवन खो दिया है। केरल और पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा का मूल कारण सत्ताधारी पार्टी द्वारा विरोधी पार्टियों के कार्यकर्ताओं को निशाना बनाना है। जब पश्चिम बंगाल में कम्यूनिस्ट पार्टी की सरकार थी तब मुख्य विपक्षी पार्टी तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को मुख्य रूप से निशाना बनाया जा रहा था। 

बंगाल में भी स्थिति जस की तस
अब जबकि बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की सरकार है और मुख्य विपक्षी दल कम्यूनिस्ट पार्टी है और भाजपा भी वहां मुख्यविपक्षी दल के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए प्रयासरत है तो ऐसे में भाजपा और कम्यूनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं पर लगातार हमले होना एवं उनकी हत्या होना इस बात की पुष्टि करता है। केरल में भी स्थिति लगभग एक जैसी है केरल में जब कांग्रेस की सरकार थी और मुख्य विपक्षी दल कम्यूनिस्ट पार्टी थी और भाजपा भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश में लगी थी तो वहां भी कांग्रेस औऱ भाजपा के कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया गया। 

2016 के बाद से औऱ बढ़ी हिंसा
अब जब 2016 के चुनाव में कम्यूनिस्ट पार्टी की सरकार बनने और भाजपा का खाता खुलने के बाद से राजनीतिक हिंसा के निशाने पर मुख्य रूप से कम्यूनिस्टों द्वारा भाजपा कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि वामदलों को डर है कि कहीं भाजपा राज्य में और अधिक सशक्त न हो जाए। 

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लगातार जारी है खूनी संघर्ष
केरल में होने वाले ख़ूनी राजनीतिक संघर्ष की खबर उत्तर भारत तक कम ही पहुंच पाती है। जिस तरह से केरल की राजनीतिक हिंसा के प्रति हम सामान्य होते जा रहे हैं, वह चिन्ताजनक है। राजनीतिक हिंसा में मारे गए लोगों की छानबीन करेंगे तो बीजेपी-आरएसएस के लोग भी मारे जाते हैं, कांग्रेस के नेता भी मारे गए हैं, वाम दलों के नेता भी मारे गए हैं। कोई वाम दलों की लाइन पर चलना छोड़ देता है, वो भी हिंसा का शिकार हुआ है मगर मुख्य लड़ाई बीजेपी और सीपीएम के कार्यकर्ताओं के बीच दिखती है।

शनिवार को आरएसएस कार्यकर्ता राजेश पर हुआ हमला 
शनिवार रात को आरएसएस कार्यकर्ता राजेश एक दुकान से निकल रहे थे तभी एक गाड़ी में सवार होकर 20 लोगों का एक गैंग वहां पहुंचा और राजेश पर हमला कर दिया। हमलावरों ने राजेश की हॉकी स्टिक से बुरी तरह पिटाई की और उनका बायां हाथ काट दिया। वह करीब 20 मिनट तक सड़क पर तड़पते रहे, उसके बाद उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया।

केआईएमएस अस्पताल में हुई मौत
भाजपा के प्रांतीय अध्यक्ष कुमनम राजशेखरन ने आरोप लगाया कि हमले के पीछे माकपा का हाथ है। हालांकि वाम दल के जिला नेतृत्व ने इस आरोप से इनकार किया है। भाजपा के वरिष्ठ नेता रात भर केआईएमएस हॉस्पिटल के चक्कर लगाते रहे। आरएसएस कार्यकर्ता राजेश इडवाकोडे पर हमला होने के बाद उन्हें तिरुवनंतपुरम के निजी अस्पताल केआईएमएस में भर्ती कराया गया था जहां उनकी शनिवार रात को मौत हो गई।

गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने जताई चिंता
गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने रविवार को केरल में राजनीतिक कार्यकर्ताओं पर हमलों को लेकर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में राजनीतिक हिंसा अस्वीकार्य है। उनका यह बयान राज्य में संघ के एक कार्यकर्ता पर हुए जानलेवा हमले के मद्देनजर आया है। केरल के मुख्यमंत्री पिनारायी विजयन के साथ टेलीफोन पर बातचीत में सिंह ने उनसे राज्य में राजनीतिक हिंसा की हालिया घटनाओं पर चर्चा की। उन्होंने ट्वीट किया कि मैंने केरल में कानून व्यवस्था की स्थिति पर अपनी चिंता व्यक्त कर दी है। लोकतंत्र में राजनीतिक हिंसा अस्वीकार्य है। कल रात ही तिरुवनंतपुरम के पास एक हिस्ट्री-शीटर की अगुवाई में एक गिरोह ने एक संघ कार्यकर्ता की हत्या कर दी।

केरल विधानसभा चुनाव के बाद भी भड़की थी हिंसा
मई में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान कन्नूर और केरल के अन्य भागों में राजनीतिक हिंसा चरम पर थी। राज्य में मतदान से जुड़ी हिंसा के एक हजार से अधिक मामले सामने आए थे, जिनमें से अधिकांश कन्नूर से थे। केरल में 2011 से 2016 के बीच विभिन्न राजनीतिक दलों के लगभग 30 कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है।

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पश्चिम बंगाल का इतिहास भी कुछ ऐसा ही
पश्चिम बंगाल में भी वामपंथी पार्टियों नें 34 साल के अपने राज में राजनीतिक सभ्यता को ताक पर रख कर पूरी तरह से वह लोकतांत्रिक-मूल्यों को ध्वस्त किया और सरकार से भी अधिक प्रमुखता पार्टी को देकर संवैधानिक व्यवस्था को काफी नुकसान पहुंचाया। कौन भूल सकता है 21 जुलाई 1993 की घटना को, जब बंगाल की वामपंथी सरकार ने विरोध-प्रदर्शन कर रहे यूथ कांग्रेस के कार्यकर्ताओं पर खुलेआम गोलियां चलवाईं जिसमे 13 लोग मारे गए थे। इस मामले की जांच कर रहे आयोग के अध्यक्ष पूर्व न्यायाधीश सुशांत चटोपाध्याय ने इस बर्बर घटना को ‘जलियांवाला बाग नरसंहार’ से भी बदतर करार दिया था।

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त्रिपुरा में भी हिंसा
ऐसा नहीं है कि सी.पी.एम. नेतृत्व वाली सरकार में केवल गैर-वामपंथी विपक्ष को ही निशाना बनाया गया है। कम्युनिस्ट पार्टी के भीतर भी जो नेता सफलता की सीढ़ियां अधिक तेजी से चढ़कर दूसरों के लिए खतरा बनने लगा है, उसे भी हिंसा और दमन झेलना पड़ा है। सन 1998 में तत्कालीन सरकार में स्वास्थ्य मंत्री और मुख्यमंत्री माणिक सरकार के प्रतिद्वंदी माने जाने वाले बिमल सिन्हा की कुछ उग्रवादियों ने हत्या कर दी थी। लेकिन विपक्ष ने आरोप लगाया था कि इसके पीछे मुख्यमंत्री माणिक सरकार का भी हाथ हैं।

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