चांद अभियान में हमसफर बनने के बाद अब बंदर मंगल ग्रह के राज खोलने में भी मदद करेंगे। रूसी वैज्ञानिकों ने 2017 तक लाल ग्रह पर खास तौर से ट्रेंड बंदरों को भेजने का फैसला किया है।
चांद अभियान में हमसफर बनने के बाद अब बंदर मंगल ग्रह के राज खोलने में भी मदद करेंगे। रूसी वैज्ञानिकों ने 2017 तक लाल ग्रह पर खास तौर से ट्रेंड बंदरों को भेजने का फैसला किया है।
उन्हें उम्मीद है कि मंगल पर मानव कॉलोनी तलाशने की कोशिशों में बंदर काफी काम आएंगे। रशियन एकेडमी ऑफ साइंस के वैज्ञानिक इन दिनों चार बंदरों को अंतरिक्ष में यात्रा करने की ट्रेनिंग दे रहे हैं।
इन बंदरों को वीडियो गेम की जॉय स्टिक चलाना और पहेलियों को सुलझाना भी सिखाया जा रहा है ताकि ये किसी भी मायने में इंसानों से कमतर न रहें। अगले दो साल तक ये चारों बंदर ऐसे ही कई चरणों की ट्रेनिंग से गुजरेंगे।
समझदारों का चयन
इस प्रोजेक्ट के लिए एक विशेष फार्म में बंदरों का पालन पोषण किया जाता है। इनमें से कुछ समझदार बंदरों को ही ट्रेनिंग के लिए चुना जाता है। इन चारों बंदरों को भी इसलिए चुना गया है क्योंकि ये बहुत ही तेजी से चीजों को सीखते हैं।
कुत्तों ने भी की है यात्रा
1950 में सोवियत संघ ने डेजिक और सिग्यान नाम के दो कुत्तों को अंतरिक्ष की कक्षा में भेजा था और वे सुरक्षित वापस लौट आए थे। हालांकि बाद की यात्राओं में उनकी मौत हो गई।
1948 में की गई थी पहली कोशिश
जून 1948 में अमरीकी सेना द्वारा पहली बार अंतरिक्ष में अल्बर्ट-1 नाम के बंदर को भेजा गया था। मगर उसकी बीच रास्ते में ही मौत हो गई। इसके एक साल बाद अल्बर्ट-2, अल्बर्ट-3 और अल्बर्ट-4 का भी यही हश्र हुआ।
इसके दो साल बाद अमरीकी वैज्ञानिकों ने फिर से कोशिश की, जिसमें उन्हें सफलता मिली। हैम नाम का चिंपैंजी 2.63 लाख फीट की यात्रा करने में सफल रहा। इसके बाद उसे एस्ट्रोचिंप के नाम से भी जाना जाने लगा। 1961 में वह अमरीकी अंतरिक्ष अभियान का मुख्य हिस्सा था।