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आदिवासियों के रथ को देखकर इंजीनियर भी चबा लेते है दांतो तले अंगुलियां

locationरायपुरPublished: Oct 03, 2015 09:11:00 pm

बस्तर दशहरे में लकड़ी से बनाया गया दुमंजिले
भवन सा भव्य रथ है। जिसके आकर्षण और कारीगरी को देखकर इंजीनियर भी
आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रहते।

tribal chariot

tribal chariot

रायपुर/जगदलपुर. दुनिया में सबसे लम्बी अवधि (करीब 75 दिन) तक चलने वाले बस्तर दशहरे के तमाम का आकर्षणों में शामिल है लकड़ी से बनाया गया दुमंजिले भवन सा भव्य रथ है। जिसके आकर्षण और कारीगरी को देखकर इंजीनियर भी आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रहते।बीते 600 सालों से हर साल नए सिरे से बनाए जाने वाले इस रथ को बनाने वालों के पास भले ही किसी इंजीनियरिंग कॉलेज की डिग्री न होती हो पर जिस कुशलता और टाइम मैनेजमेंट के साथ इसे तैयार किया जाता है

कैसे तैयार किया जाता है रथ
रियासतकाल से चली आ रही व्यवस्था के मुताबिक रथ बनाने का मुख्य जिम्मा झाड़उमरगांव व बेड़ाउमरगांव के शिल्पी सालों से करते आ रहे हैं। करीब 40 फुट ऊंचे, 32 फुट लंबे और 20 फुट चौड़े रथ बनाने के लिए साल प्रजाति की लकड़ी इस्तेमाल की जाती है। धुरी के लिए तिनसा प्रजाति की लकड़ी मजबूत मानी जाती है। कुल 50 घन मीटर लकड़ी खप जाती है।

मगरमुंही का काम बेमिसाल

एक्सल में चक्का बैठाने के बाद बीच में मगरमुंही लकड़ी बैठाते हैं। इस लकड़ी को मगरमुंही इसलिए कहते हैं कि इसका मुंह मगर की तरह नजर आता है। एक खास कोण में इसके सिरे पर रस्सा फंसाने के लिए खांचा बना होता है। इसके बाद लंबाई वाले शहतीरों को एक-एक कर खड़ा किया जाता है। इन्हें आड़े एक कर रथ के सभी हिस्से नीचे से ऊपर की ओर जोड़कर रथ तैयार किया जाता है।

समर्पण भाव से रथ बनाने जुड़ते हैं ग्रामीण
रथ बनाने में लगभग 150 शिल्पकारों की टीम पूरे भक्तिभाव और आस्था से जुटती है। रथ खींचने के लिए बरसों से रस्से बनाने की जिम्मेदारी करंजी, केशरपाल और सोनाबाल के आदिवासी उठाते आ रहे हैं। ये सियाड़ी नामक जंगली लता के रेशों से इतना मजबूत रस्सा बनाते हैं कि कई टन वजनी रथ आसानी से खींचा जाता है। हालांकि समय के पेर से अब नाइलोन के रस्सों का उपयोग भी होने लगा है।
(अजय श्रीवास्तव)
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