आदिवासियों को अविकसित कहते हैं, लेकिन उनसे सीखने की जरूरत
तीन दशकों से आदिवासियों के अधिकारों के बीच अलख जगा रहे पद्मश्री अशोक भगत ने कहा कि आदिवासियों को मुख्यधारा में लाने की जरूरत नहीं है, बल्कि आदिवासी ही मुख्यधारा है, उससे जुडऩे की जरूरत है।
रायपुर. आदिवासियों को मुख्यधारा में लाने की जरूरत नहीं है, बल्कि आदिवासी ही मुख्यधारा है, उससे जुडऩे की जरूरत है। यह बात झारखंड के पिछड़े जिले गुमला में बीते तीन दशकों से आदिवासियों के अधिकारों के बीच अलख जगा रहे पद्मश्री और ‘बाबाजी’ के नाम से लोकप्रिय अशोक भगत ने कही। वे रायपुर में रविवार को छत्तीसगढ़ में ‘पत्रिका’ के सातवें स्थापना दिवस के मौके पर होटल ताज गेटवे में आयोजित ‘की-नोट-2016’ के पहले सत्र में बोल रहे थे। इस अवसर पर उन्होंने कहा, देश की समस्या राजनीति से भी हल हो सकती है, लेकिन सिर्फ राजनीति से ही सारी समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता। बहुत सारे काम सरकार समाज के ऊपर भी छोड़ दे।
भगत ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए बताया कि झारखंड में जब उन्होंने काम शुरू किया तो यह भम्र था कि वे आदिवासियों को तकनीकी ज्ञान देंगे। मगर कुछ महीनों में ही यह भम्र टूट गया और स्पष्ट हुआ कि वन, पुलिस-विभाग के अत्याचारों से मुक्ति दिलाना उनके लिए बड़ी चुनौती है। दरअसल, जिन्हें हम अविकसित कहते हैं, उससे सीखने की जरूरत है। उन्होंने लोहा गलाने की एेसी विधि ईजाद की है, जिस पर कभी जंग नहीं लगती।
उन्होंने कहा कि आदिवासियों की गरीबी को दिखाकर कई संस्थाओं ने कमाई की, लेकिन उनके जीवन की ताकत को नहीं पहचाना गया। वे केवल अपनी जमीन चाहते हैं, लेकिन जो कागज नहीं जानते, उनसे रिकार्ड मांगे गए, थाने और कोर्ट ले गए, उन्हें सिखाने के चक्कर में कथित सभ्य समाज खुद ही बिगड़ गया। पेसा और वनाधिकार जैसे कानून भी बनें, लेकिन सरकारों को उन्हें उनके हक दिलाने में बड़ी दिक्कत है।
उन्होंने कहा कि आदिवासी अपने गांव में अपना शासन और वन, पुलिस कर्मचारियों के जुल्मों से मुक्ति चाहती है, लेकिन आजादी के कई साल बीत जाने के बावजूद हमने उन्हें न उनका स्वाभिमान लौटाया और न शिक्षित ही बनाया। सिर्फ उन्हें लूटा गया, कभी विकास के नाम पर तो कभी मार्केटिंग के नाम पर, जबकि आदिवासी भी पढऩा चाहता है, पक्के मकान चाहता है, पर सरकारों ने उनके लिए कुछ नहीं दिया।