scriptघर में यदि इस दिशा में है टॉयलेट तो समझ लीजिए यही है समस्याओं का कारण | Raipur: Vastu tips for bathroom and toilet in house | Patrika News

घर में यदि इस दिशा में है टॉयलेट तो समझ लीजिए यही है समस्याओं का कारण

locationरायपुरPublished: Dec 22, 2016 01:51:00 pm

आज कल निर्माण हो रहे अधिकांश घरों में स्थानाभाव के कारण अधिकतर शौचालय अपनी सुविधा के अनुसार बने होते हैं लेकिन यह सही नहीं है इससे घर में वास्तुदोष होता है।

Vastu tips

vastu shastra

रायपुर. आज कल निर्माण हो रहे अधिकांश घरों में स्थानाभाव, शहरी संस्कृति, शास्त्रों के अल्प ज्ञान के कारण अधिकतर शौचालय अपनी सुविधा के अनुसार बने होते हैं लेकिन यह सही नहीं है इससे घर में वास्तुदोष होता है। हम सभी जानते हैं की किसी भी मकान या भवन में शौचालय और स्नानघर अत्यंत ही महत्वपूर्ण होता है।

– इसको भी वास्तु सम्मत बनाना ही श्रेयकर है वरना वहां के निवासियों को जीवन भर अनेकों परेशानियों का सामना करना पड़ता है। आइए आज जानिए शौचालय और स्नानाघर को बनाने के वास्तु नियम जो आपके लिए अवश्य ही लाभदायक होंगे।

– आज कल के घरों में बाथरूम और टॉयलेट को घर के प्रत्येक कमरे में अटेच करने लगे हैं।
– लेकिन कुछ दिशा सकारात्मक होता है जहाँ किसी भी हालत में शौचालय नहीं बनना चाहिए।
– घर के सकारात्मक हिस्से में बने शौचालय के दोष के कारण घर में रहने वालों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
– पति-पत्नी एवं परिवार के अन्य सदस्यों के बीच अक्सर मनमुटाव एवं वाद-विवाद की स्थिति बनी रहती है।
– किसी भी नए भवन में शौचालय बनाते समय काफी सावधानी रखना चाहिए, नहीं तो ये हमारी सकारात्मक ऊर्जा को नष्ट कर देते हैं और हमारे जीवन में शुभता की कमी आने से मन अशांत महसूस करता है।
– इसमें आर्थिक बाधा का होना, उन्नति में रुकावट आना, घर में रोग घेरे रहना जैसी घटना घटती रहती है।
– शौचालय को ऐसी जगह बनाएँ जहाँ से सकारात्मक ऊर्जा न आती हो व ऐसा स्थान चुनें जो खराब ऊर्जा वाला क्षेत्र हो।
– घर के मुख्य दरवाजे के सामने शौचालय का दरवाजा कभी नहीं होना चाहिए, ऐसी स्थिति होने से उस घर में हानिकारक ऊर्जा का संचार होगा।
– वास्तु शास्त्र के प्रमुख ग्रंथ विश्वकर्मा प्रकाश में बताया गया है कि ‘पूर्वम स्नान मंदिरम’ अर्थात भवन के पूर्व दिशा में स्नानगृह होना चाहिए।
– शौचालय की दिशा के विषय में विश्वकर्मा कहते हैं ‘या नैऋत्य मध्ये पुरीष त्याग मंदिरम’ अर्थात दक्षिण और नैऋत्य (दक्षिण-पश्चिम) दिशा के मध्य में पुरीष यानी मल त्याग का स्थान होना चाहिए।
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