कभी बंदूक से डराती थीं 9 महिला माओवादी, आज मशरूम उत्पादन में जुटीं
राजनंदगांवPublished: Sep 01, 2016 02:05:00 pm
9 सरेंडर महिला माओवादियों की जो कि लाल संगठन में रहते हुए जंगल तक ही सिमटी हुईं थीं। अब यही अपने पैरों पर खड़े होकर परिवार का सहारा बनने जा रहीं हैं।
The gun was never afraid of Maoist women , gathered today in mushroom production
राजनांदगांव.माओवादी संगठन में रहते हुए सिर्फ हथियार चलाना जानते थे। ग्रामीणों के बीच खौफ पैदा करना और हिंसात्मक वारदातों को अंजाम देना ही जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया था। लाल गलियार छोडऩे के बाद जिंदगी बदली है और अब तो रोजगार की राह पर कदम आगे बढ़े हैं।
यह कहानी है कि उन 9 सरेंडर महिला माओवादियों की जो कि लाल संगठन में रहते हुए जंगल तक ही सिमटी हुईं थीं। अब यही अपने पैरों पर खड़े होकर परिवार का सहारा बनने जा रहीं हैं। ये सरेंडर महिला माओवादी मशरूम का उत्पादन कर अपनी जीविका चलाएंगी और आत्मनिर्भर होंगी। मंगलवार को मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने 20 लाख की लागत से तैयार मशरूम उत्पादन यूनिट को सरेंडर माओवादियों को सौंपा।
तैयार करेंगे मशरूम
सरेंडर महिला माओवादी तीजो बाई उर्फ वनोजा, कल्पना उर्फ जयंत्री बाई, रेश्मा उर्फ सावित्री, तीजन पुडो, सुनीता उर्फ करूणा उसेंडी, शिल्पा उर्फ हेमलता, कमला उर्फ सुमरो, जेसवंतीन पुडो व महंती कुमेटी उर्फ क्रांति को यूनिट सौंपा गया है। इन महिलाओं को इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय व कृषि विज्ञान केन्द राजनांदगांव के प्रशिक्षकों ने पहला प्रशिक्षण 10 से 12 अगस्त 2015 व दूसरा प्रशिक्षण 17 से 20 अगस्त तक दिया।
बाजार में डिमांड
बाजार में मशरूम की अच्छी डिमांड है। इस वजह से इन महिलाओं को मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण दिया गया। बड़े होटलों में मशरूम क मांग रहती है। बाजार में यह हाथों-हाथ बिकता है। इसलिए उम्मीद की जा रही है कि अच्छी आवक होगी। पुराना पुलिस लाइन में पिछड़ा क्षेत्र अनुदान कोष योजना (बीआरबीएफ) के तहत 20 लाख की लागत से 12 मशरूम शेड तैयार किए गए हैं। मशरूम उत्पादन के लिए गेहंू भूसा, पैरा कट्टी, बीज, फार्मलीन, फफुंद नासी, प्लास्टिक, रस्सी, ड्रम सहित अन्य आवश्यक सामान उपलब्ध कराया गया है।
मुख्य धारा से जुड़ी
मशरूम स्पानिंग-बिजाई के 10 दिन बाद 25 दिनों तक मशरूम निकाला जा सकता है। एक पैकेट से 1 किलो तक मशरूम निकाल सकते हैं। जिसे बाजार में 200 रुपए किलो की दर से बेचा जा सकता है। एक शेड में 30 पैकट तैयार कर सकते हैं। इस तरह 30 किलो मशरूम को बेचने से 6 हजार रुपए तक आवक होगी। एएसपी नक्सल ऑपरेशन वायपी सिंह ने बताया कि लाल संगठन को छोड़कर समाज की मुख्य धारा से जुड़ चुके सरेंडर माओवादियों को रोजगार की राह दिखाई जा रही है। 9 सरेंडर महिला माओवादी मशरूम का उत्पादन कर रहीं हैं।