scriptजावरा की मृदा में पोटाश-कार्बनिक पदार्थ की कमी | Potash-deficient organic material in the soil Jaora | Patrika News

जावरा की मृदा में पोटाश-कार्बनिक पदार्थ की कमी

locationरतलामPublished: Dec 06, 2016 12:19:00 pm

Submitted by:

vikram ahirwar

जिले की मिट्टी में घट रहा कार्बनिक पदार्थ, आने वाले समय में उत्पादन कम होने के साथ सामने आएंगे गंभीर परिणाम

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रतलाम। वर्तमान में जिले की मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की कमी है, जबकि रतलाम की मिट्टी में अधिकांश भाग काली कपास की मृदा का है। जावरा विकासखंड में लहसुन की फसल ज्यादा लेने के कारण यहां पोटाश सामान्य से कुछ कम हो रहा है। इसके चलते यहां कार्बनिक पदार्थ की कमी होने लगी है। इस कारण आने वाले सालों में यहां उत्पादन की दृष्टि से किसानों को गंभीर परिणाम झेलना पड़ सकते हैं। प्राय: रतलाम की इन मृदाओं में सिकुडऩे और फैलने का गुण होता हंै।

कार्बनिक पदार्थ की कमी के कारण ये प्रभाव इतना ज्यादा हो जाता है कि मिट्टी फटने लगती और इसमें बड़ी-बड़ी दरारें आ जाती हैं, मृदा की सिुकडऩ के कारण कई बार फसलें सम्पूर्ण वृद्धि नहीं कर पाती हैं, जिससे अपेक्षाकृत उत्पादन कम होता है।
महू-नीमच रोड स्थित मंडी मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला प्रभारी गोपाल ओरा का कहना है कि कार्बनिक पदार्थ मृदा में पानी सोखने की क्षमता बढ़ाता है, साथ ही उपलब्ध पोषक तत्वों को पौधे तक पहुंचाता है। कार्बनिक पदार्थ की कमी होने के कारण मृदा में उपलब्ध पोषक तत्व पौधे को प्राप्त नहीं हो पाएंगे, जिसके कारण उत्पादन पर असर होगा।

मृदा की संरचना एवं गुणवत्ता अनुसार विकासखंडों में पोषक तत्वों की स्थिति
रतलाम : विकासखंड की अधिकतर मृदा काली कपास की मृदाएं हैं। इनमें पोटाश की अधिकता पाई जाती है, परंतु लगातार लहसुन-मिर्च की फसलें लेने के कारण पोटाश औसत रूप से 300-500 किग्रा हे. पाया जा रहा है। कार्बनिक पदार्थ की कमी इस विकासखंड में बहुतायत में पाई गई है।
सैलाना : कपास की मिट्टी में कपास का उत्पादन किया जा रहा है। तत्वों की स्थिति सामान्य है। कार्बनिक पदार्थ कम है।
बाजना : यहां भी कार्बनिक पदार्थ की कमी पाई गई है।
जावरा : यहां लहसुन की फसल ज्यादातर होने से पोटाश सामान्य से थोड़ा कम और कार्बनिक पदार्थ की कमी पाई गई।
पिपलौदा : कार्बनिक पदार्थ को छोड़ दें तो बाकि पोषक तत्व सामान्य स्तिथि में उपलब्ध हैं।
आलोट : इस क्षेत्र में मृदा अभिक्रिया (पीएच) बढ़ रहा है। यहां की मिट्टी का पीएच औसतन 8.5 या इससे अधिक है।

क्या करें कृषक
– किसान मृदा में कार्बनिक पदार्थ बढ़ाने के लिए हर तीसरे वर्ष 10 टन प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की कम्पोस्ट खाद्य या केंचुआ खाद डालना चाहिए।
– कृषक हरी खाद जैसे सनई, ढैंचा, चवला आदि जल्दी वृद्धि करने वाली फसलों को उगाकर एवं उन्हे मिट्टी में दबाकर भी कार्बनिक पदार्थ बढ़ा सकते हैं।
– कृषक अपने खेत का कचरा कभी न जलाएं, उसे खेत में ही सडऩे दें, जिससे कार्बनिक पदार्थ बढ़ाया जा सकता है।
– कृषक जिस क्षेत्र में पोटाश की कमी जा रही वहां, मिट्टी परीक्षण के बाद पोटाश तत्व की पूर्ति का उपाय कर सकते हैं।

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