नेताओं से दूर हुई गांधी की खादी, उद्योग आए बंद होने की कगार पर
रतलामPublished: Oct 05, 2015 06:41:00 pm
राष्ट्रपति महात्मा गांधी की खादी जिले में बदहाल है। गांधी के आदर्शो की दुहाई देने वाले नेता भी अब खादी से दूर नजर आते है।
रतलाम। राष्ट्रपति महात्मा गांधी की खादी जिले में बदहाल है। गांधी के आदर्शो की दुहाई देने वाले नेता भी अब खादी से दूर नजर आते है। हालांकि युवाओं में कुछ समय से रूझान बढ़ा है लेकिन वह नाकाफी है। यहीं वजह है कि शहर में संचालित खादी बिक्री केन्द्र पर बेठे कर्मचारी समय काटते ही नजर आते है।
गांधी जयंति के अवसर पर छूट मिलने के बावजुद भी कुछ ही लोग इसे खरीदने में रूचि दिखाते है। वहीं सरकार की उपेक्षा के चलते अब यह काम अन्य जिलो में बंद होने की कगार पर है। उद्योग को बढ़ावा मिले इसके लिए सरकार कोई प्रयास नही करती वहीं प्रचार-प्रसार की कमी से उद्योग दम तोड़ता नजर आ रहा है।
जिले में मात्र रतलाम में एक ही खादी केन्द्र संचालित है। पेलेस रोड़ स्थित खादी ग्रामोद्योग भण्डार उत्पादन केन्द्र पर साल भर में मामूली ब्रिकी होती है। कर्मचारी केशव सिंह जोनवार ने बताया कि साल भर में केन्द्र से मात्र 9 लाख तक की बिक्री होती है। इसमें से लागत और केन्द्र के संचालन का खर्चा भी चलता है।
गांधी जी के आदर्शो पर राजनिति करने का दावा करने वाले नेता भी खादी से दूर है। कर्मचारी से जब पूछा गया कि दूकान पर कितने नेता खादी खरीदने के लिए आते है वह कुछ देर चुप रहें, फिर कहते है कि अब नेता कहां खादी पहनते है। उन्होने कहा कि कुछ समय से युवाओ में खादी के प्रति रूझान बढ़ा है।
मंहगाई ने भी डाला असर
बढ़ती मंहगाई का असर खादी पर भी पड़ा है। यहीं कारण है कि कभी सस्ती माने जाने वाली खादी के कपड़े भी अब महंगे हो गए है। खादी नाम के सिल्क से मिलने वाला कुर्ते का कपड़ा नो सौ रूपए मीटर से अधिक मिल रहा है। इसके चलते गिने चुने खादी के शौकिन लोग ही खादी ग्रामोद्योग केन्द्र का रू ख कर रहें है। उन्होने बताया कि आधुनिकरण से मुकाबला करने के लिए अब केन्द्र के उत्पादों की श्र खंला उपलब्ध है। सूती, उन रेशम पोलिस्टर खादी में वेरायटी मिलने लगी है।
छूट आने पर बढ़ती है बिक्री
केन्द्र पर दो अक्टूबर के बाद छूट आती है। साल भर लोग इसका इंतजार करते है। यहीं कारण है कि आम दिनो पर जहां केन्द्र पर खरीददारी का इंतजार होता है वही छूट के दिनो में ग्राहको की संख्या बढ़ जाती है। कर्मचारी नागेन्द्र देशमुख का कहना है कि गांधी जयंती के बाद केन्द्र सरकार 90 दिनो तक छूट देती है, अगर इसे नियमित किया जाए ओर राज्य सरकार भी खादी उद्योग पर सब्सिडी दें तो ब्रिकी पर बढ़ेगी। शासन की और से कोई सुविधा नही दी जा रही है। मध्यप्रदेश शासन को 15 साल हो गए लेकिन इन 15 सालो में अब तक सब्सिडी नही मिली।
उत्पादन कार्य में 150 से घटकर 15 महिलाएं
बोरबावड़ी में बुनकर व कताई का कार्य होता है। इसमें पहले 150 महिलाओं काम करती थी लेकिन इनकी संख्या घटकर अब मात्र 15 रह गई कर्मचारीयो का कहना है कि माल समय पर नहीं आ रहा, कच्चा माल नही मिलने के कारण अन्य महिलाओ ने अपने हाथ खिंच लिए अब 15 महिलाए ही अपने घर पर माल तैयार करती है । मशीने व कच्चा माल घर तक पहुचा दिया जाता है, एक हजार मीटर धागे की मजदूरी तीन रूपए 15 पैसे मिलती है। सरकार का सहयोग नही मिलने के चलते अब यह काम अन्य जिलो में बंद होने की कगार पर है।