scriptपेड़-पौधों की तरह ही होते हैं रिश्ते-नाते… | Relations are like trees, they built up gradualy | Patrika News

पेड़-पौधों की तरह ही होते हैं रिश्ते-नाते…

Published: Jul 16, 2017 12:03:00 pm

रिश्ते-नाते जरूरत हैं और इन्हीं से समाज बनता है, लेकिन ये हमेशा देखें कि कोई आपका दुरुपयोग तो न करे

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रिश्ते-नाते जरूरत हैं और इन्हीं से समाज बनता है, लेकिन ये हमेशा देखें कि कोई आपका दुरुपयोग तो न करे। कुछ ऐसे ही विचार अपने ब्लॉग पर लिखे हैं अमीषा शर्मा ने…

पेड़-पौधों के सूख जाने पर उसकी जड़ में पानी देने से कोई फायदा नहीं होता। ठीक इन पेड़-पौधो की तरह ही हमारे रिश्ते होते हैं। इन्हें भी समय रहते प्रेम और स्नेह से न सींचा जाए, तो यह सूखने लगते हैं, खत्म होने लगते हैं। यह रिश्ते इतने नाजुक होते हैं कि कई बार छोटे से झटके को भी सहन नहीं कर पाते। जिस तरह घर में लगाए गए पौधों की देखभाल की जाती है, उसी तरह की देखभाल रिश्ते मांगते हैं। यह रिश्ते कैसे भी हो सकते हैं। ये रिश्ते आपके अपने मां-बाप से हो सकते हैं। भाई का भाई से रिश्ता हो सकता है। इसके दायरे में परिवार से लेकर दूर के रिश्ते, दोस्ती और तमाम वो रिश्ते आ जाते हैं, जिन्हें शायद कोई नाम भी नहीं दिया जा सकता हो।

बेनाम रिश्ते कोई आज के माहौल की देन नहीं हैं। जब से मनुष्य का अस्तित्व है, तब से बेनाम रिश्ते भी उसके साथ ही चले आ रह हैं। अंतर केवल इतना है कि हमारे समाजिक संस्कारों की वजह से ये रिश्ते समाज के सामने नहीं आ पाते। जरूरी नहीं कि ऐसे बेनाम रिश्तों की जड़ में कुछ गलत ही हो। या इन्हें गलत नजरिए से ही देखा जाए। समाज में ऐसे बहुत सारे रिश्ते होते हैं, जो नैतिकता के ठोस धरातल पर खड़े होते हैं। भले ही इनका कोई नाम नहीं होता, लेकिन ये खून के रिश्तों से भी ज्यादा साथ, सहानुभूति और आश्रय देने वाले होते हैं।

हालांकि ऐसे रिश्तों को निभाना हमारे तंग नजरिए वाले समाज में बहुत मुश्किल होता है। कई तरह की असहजता और डर इनके साथ जुड़ा रहता है। किंतु यदि ऐसा कोई रिश्ता हमें जीवन जीने की ओर ले जाता है, तो दूसरे इसके बारे में क्या सोचते हैं, इस बाारे में सोचने की ज्यादा आवश्यकता नहीं है।

दूसरों के सुख-दुख में शामिल होना अच्छी बात है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और इस वजह से समाज में एक-दूसरे के काम आना ही मनुष्यता है। लेकिन हमेशा इस बात को ध्यान में रखें कि कोई आपका फायदा तो नहीं उठा रहा। रिश्ते-नाते जरूरत हैं और इन्हीं से समाज बनता है, लेकिन ये हमेशा देखें कि कोई आपका दुरुपयोग तो न करे। बस जिस तरह अपने घर की बगिया में पेड़ पौधों की देखभाल आप करते हैं, उसी तरह की देखभाल रिश्तों को भी दें।
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