सुमन शर्मा
आज के समय में रिश्तों पर स्वार्थ हावी होता जा रहा है। मेरी एक अच्छी दोस्त थी जो हमारे पड़ोस में रहती थी। वह कुछ समय पहले दूसरी जगह पर रहने लगी। इससे बातचीत थोड़ी कम होने लगी और साथ-साथ घुमना- फिरना भी कम हो गया। पर जब एक दिन अचानक 500-1000 के नोट बन्द हो गए तो उसका फोन आया कि तू मेरी खास दोस्त है ना मैं तेरे खाते में मनी जमा कर दूं। उसके पास काफी पैसा था। मैंने भी सीधे मन से सोचा कि ठीक है बोल दूंगी पर उसी वक्त मेरे जानकार अकाउटेंट वाले से बात हुई तो मैंने पूछ लिया की मेरी दोस्त पैसे जमा कराने को कह रही है। तब पता चला कि नहीं करवाना क्योंकि मुझे मेरे अकाउंट् में जमा पैसे का विवरण देना होगा कि कहां से आया।
क्या बताऊंगी मैं मैंने मना कर दिया। बस इसी बात से वह मुझसे इतनी नाराज हो गई कि मुझसे बात ही बन्द कर दी। किसी पड़ोसन ने पुछा कि अरे क्या बात है आज कल आपकी और खुशी की बातचीत कम हो गई है? आजकल साथ नहीं दिखाई देतीं। पहले तो तुम्हारी खूब बनती थी। ऐसी भी क्या बात हो गई पड़ोसन ने पूछा- कुछ खास नहीं ये कह कर मैं वहां से तो चली आई पर अब सोच रही हूं कि क्या यही दोस्ती थी हमारी? इतना ही था हमारी दोस्ती में दम ?
उसका बारबार कहना कि तुम्हारे लिए मेरे दिल में बहुत जगह है। इस जन्म में तो समझो में तुम्हारी कुंडली में शामिल हूं अब कुछ नहीं हो सकता। ये दोस्ती तो हमेशा रहेगी। बड़ा अच्छा लगता था यह सुनकर । वह वक्त के साथ वो मेरी ताकत बन गई थी। बहुत दुख हो रहा है पर क्या यही होती है दोस्ती जो एक ना में टूट जाए। ऐसे दोस्तों से तो अकेले रहना ज्यादा अच्छा सोचा और मेरे चेहरे की खुशी वापस लौट आई।