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रिश्तों में आजादी स्पेस से संबंध होता है मजबूत

जरूरी है कि आजादी और अंकुश के बीच की बारीक रेखा का आपको पता हो

Aug 13, 2016 / 10:59 am

अमनप्रीत कौर

Online Dating

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नई दिल्ली। एक फिल्म आई थी, ‘जिंदगी ना मिलेगी दोबारा’। इस फिल्म में अभय देओल की जोड़ीदार कल्कि कोचलीन उसे लेकर काफी पजेसिव हैं। इस वजह से अभय देओल इस रिश्ते में घुटता रहता है और आखिर में उससे अलग होने का फैसला ले लेता है। आप अगर अपने अगल-बगल देखेंगे तो इस तरह की कई जोड़े नजर आ जाएंगे, जो अपनी निजी आजादी मांग रहे हैं।

राधिका और महेश (बदले हुए नाम) पिछले कुछ दिनों से मनोचिकित्सक से काउंसिलिंग ले रहे हैं। रिश्ता लगभग टूटने की हालत में है। राधिका के अनुसार, इसके पीछे महेश का दखल उसकी जिंदगी में बहुत ज्यादा है। उसे हर काम महेश से पूछ कर करना पड़ता है। यहां तक कि राधिका फेसबुक पर क्या लिखे और उसके दोस्त कैसे और कौन हों, इस पर भी महेश की टोकाटोकी जारी रहती है। अगर वह अपनी मर्जी से किसी के पोस्ट कर दे तो इस पर भी महेश को ऐतराज हो जाता है। इसकी वजह से पिछले कुछ दिनों से उन दोनों के बीच काफी झगड़े होने लगे हैं। इसकी जड़ में था राधिका का किसी ऐसे पोस्ट पर कमेंट करना, जो पतियों के विवाहेत्तर संबंधों पर था। इस टोकाटोकी की वजह से धीरे-धीरे उन दोनों प्रेम के रिश्ते की दीवार दरकने लगी और अब इसे बचाने के लिए वे दोनों काउंसिलिंग की शरण में है।

मनोचिकित्सकों की मानें तो यह एक अकेला उदाहरण नहीं है, जहां रिश्तों में निजी आजादी के लिए घट रहे स्पेस की वजह से परिवार टूट रहे हैं। वह यह भी कहते हैं कि आए दिन ऐसे मामले बढ़ रहे हैं। आजादी की जितनी दरकार एक देश को, एक समाज को, हमारे विचारों को और हमारी अभिव्यक्ति को है, उतनी ही आजादी की मांग एक मजबूत रिश्ता भी करता है, हमें यह समझने की जरूरत है। मनोचिकित्सकों के अनुसार पिछले कुछ समय में बढ़ते इस तरह के मामलों की वजह से रिश्तों में दरार आ रही है और अगर हम एक मजबूत रिश्ता चाहते हैं तो यह बेहद जरूरी है कि एक-दूसरे की निजी आजादी का सम्मान करें।

खतरों से भरी पाबंदी

प्रसिद्ध मनोचिकित्सक डॉ. सागर मुंदड़ा बताते हैं कि हमारे पास कई ऐसे मामले आते रहते हैं, जिनमें बच्चे घर से बाहर निकलकर सिर्फ इसलिए गलत हरकतें करते हैं, क्योंकि उनके भीतर अपने माता-पिता को लेकर गुस्सा भरा रहता है, जिसे वह घर से बाहर आकर निकालने हैं। कई बार माता-पिता बच्चों को अनुशासित बनाने के चक्कर में उन पर बहुत ज्यादा अंकुश लगाते हैं और यह भूल जाते हैं कि ऐसा करके वह अपने बच्चे का भला तो नहीं कर रहे हैं, बल्कि उन्हें अपने से दूर ही कर रहे हैं।

खुद कर रहे हैं अपने बच्चों को बर्बाद

एक्सपट्र्स का कहना है कि पैरेंट्स अपने बच्चों से की जा रही सख्ती की चाहे जो दलीलें दें, लेकिन वास्तव में ऐसा कर वे बच्चे के व्यवहार को बेहद रूखा बना देते हैं। बच्चों पर इसका बहुत गहरा असर पड़ता है। माता-पिता कई बार अनुशासन की सीमाओं को भूल जाते हैं और वह अपने बच्चे के लगभग हर निर्णय पर सवालिया निशान लगा देते हैं। ऐसा कर वे अपने बच्चे के व्यक्तित्व का विकास रोक देते हैं।

स्वस्थ रिश्ते में कितनी जरूरी है आजादी

प्रसिद्ध मनोचिकित्सक डॉ. पारुल टौंक के अनुसार, आजादी का यह मतलब कतई नहीं है कि माता-पिता अपने बच्चों पर अंकुश न रखें। या पार्टनर से आप कुछ भी पूछना छोड़ दें। दोनों स्थितियां जब अति करती हैं तो हमेशा परेशानी खड़ी करती हैं। बस उस बारीक रेखा को पहचान कर व्यवहार करें।

अगर जोड़ों की बात करें तो लगभग एक चौथाई प्रेम-संबंधों में रिश्ते टूटने के पीछे सबसे अहम कारणों में स्पेस या रिश्ते में आजादी की कमी रहती है। वहीं लगभग सभी रिश्ते जो टूटते हैं, उनकी जड़ों में कहीं न कहीं एक-दूसरे को पर्याप्त आजादी न देना एक बड़ी समस्या है। -डॉ. सागर मुंदड़ा

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