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धर्म और अध्यात्म

हिंदू साधु-संतों, अघोरियों से जुड़ी 7 बातें, जो आप नहीं जानते

देश में हिंदू साधु-संतों, अघोरियों और  तपस्वियों को लेकर कई तरह की भ्रांतियां फैली हुई हैं

Dec 23, 2015 / 08:59 am

सुनील शर्मा

Kartik snan, kumbh mela sadhu

Kartik snan, kumbh mela sadhu

देश में हिंदू साधु-संतों, अघोरियों और तपस्वियों को लेकर कई तरह की भ्रांतियां फैली हुई हैं। वास्तव में ये लोग भौतिक दुनिया से पूरी तरह अलग और अपने आप में मगन रहने वाले होते हैं। जानिए इनके बारे में कुछ ऐसी बातें जो आपने कहीं नहीं सुनी होगी।

(1) माना जाता है कि देश मेंं पंच व्यवस्था अखाड़ों से ही प्रभावित होकर लागू की गई। बताते हैं कि जब देश आजाद हुआ तो जवाहरलाल नेहरू व तत्कालीन अन्य प्रमुख नेता पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी पहुंचे। उन्होंने पंचायती शब्द का मतलब पूछा। साधु-संतों ने बताया अखाड़े में एक व्यक्ति द्वारा निर्णय नहीं लिया जाता। पंचों की राय व सहमति से कार्य होते हैं। इसके बाद देश में भी पंचायत व्यवस्था को अपनाया गया।
(2) वैष्णव संप्रदाय के नागा हरिद्वार या उज्जैन में बनाए जाते हैं। उज्जैन के नागा खूनी नागा कहे जाते हैं। उदासीन में पंच पुत्र प्रयाग और हरिद्वार में ही बनाए जाते हैं।
(3) अखाड़ों में तपस्वी, महातपस्वी, हठ योगी भी होते हैं। तेराभाई त्यागी, खड़ेश्वर, काठिया, लोहा लंगड़ी आदि नामों से जाना जाता है। इनमें धूनी रमाना तो काठ या लोहे की लंगोट पहनना, काठ का करदोना, जलधारा, एक पैर पर खड़े रहना जैसे तप या संकल्प शामिल होते हैं।
(4) दिगंबर अणि में दो अखाड़े रामानंदी व श्यामानंदी, निर्वाणी अणि में 7 अखाड़े निर्वाणी, खाकी, निरालंबी, बलभद्री, टाटंबरी, हरव्यासी निर्वाणी, हरव्यासी खाकी और निर्मोही अणि में 9 अखाड़े रामानंदी निर्मोही, रामानंदी महानिर्वाणी, रामानंदी संतोषी, झाडिय़ा निर्मोही, विष्णु स्वामी निर्मोही, मालाधारी निर्मोही, राधावल्लभी, हरव्यासी निर्वाणी और हरव्यासी संतोषी अखाड़ा, इस प्रकार वैष्णव की तीन अणि में 18 अखाड़े हैं।
(5) दण्डी स्वामी शंकराचार्य परंपरा से होते हैं। यह हमेशा अपने साथ दण्ड रखते हैं। दण्ड की लंबाई दण्डी स्वामी की लंबाई के बराबर ही होती है। 54 जनेऊ का सूत्र बनाकर ब्रह्मगांठ नारायण स्वरूप दण्डी पर बांधी जाती है। दण्डी स्वामी दण्ड से ही प्रणाम करते हैं।
(6) वैष्णव संप्रदाय में घर-परिवार छोड़कर जब व्यक्ति दीक्षित होता है तो उसका यज्ञोपवित किया जाता है जिसमें जनेऊ, नामकरण आदि संस्कार होते हैं। शैव संप्रदाय में दीक्षित होने पर जनेऊ व चोटी काट दी जाती है।
(7) महामण्डलेश्वर का अपना प्रोटोकॉल होता है। सम्मान स्वरूप कई महामण्डलेश्वर चंवर, छत्र छड़ीदार जैसे ठाठ के साथ रहते हैं, वहीं कुछ ऐसा नहीं करते।


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