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शरीर को मौन से साध कर पाएं हनुमानजी जैसी शक्ति

Published: Jul 30, 2015 02:12:00 pm

शरीर के बारे में दो बातों पर हमें ध्यान देना है, पहली बात है कि हम शक्ति के व्यय को रोकें, दूसरा प्राण-शक्ति बढ़ाएं

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वाणी के द्वारा जो शक्ति खर्च हो रही है, उसे बचाओ। मन को केन्द्रित करो, चंचलता को मिटाओ ताकि मस्तिष्क की जो शक्ति व्यर्थ ही खर्च हो रही है, उसे बचाया जा सके।

शरीर के बारे में दो बातों पर हमें ध्यान देना है। पहली बात है कि हम शक्ति के व्यय को रोकें। दूसरी बात है कि हम प्राण-शक्ति का व्यय कर देते हैं। शक्ति का व्यय शरीर करता है, मस्तिष्क करता है और स्वचालित नाड़ी-संस्थान करता है। इन तीनों से शक्ति का व्यय होता है। साधना में कायोत्सर्ग का महत्वपूर्ण स्थान है। कायोत्सर्ग करने का बार-बार विधान क्यों है? इसका उद्देश्य क्या है?


मौन को जानो

इसका एकमात्र उद्देश्य है कि शक्ति का जो व्यर्थ व्यय हो रहा है, उसे रोका जाए। बताया गया कि मौन करो। क्यों? इसीलिए कि वाणी के द्वारा जो शक्ति खर्च हो रही है, उसे बचाया जा सके। कहा गया है कि मन को केन्द्रित करो, चंचलता को मिटाओ। ताकि मस्तिष्क की जो शक्ति व्यर्थ ही खर्च हो रही है, उसे बचाया जा सके। यह सारी क्रिया इसीलिए है कि शरीर की शक्ति का सही अर्थ में उपयोग किया जा सके। शक्ति का भंडारण करके उसे सुरक्षित रखा जा सके और विशिष्ट चेतना के अवतरण के लिए उसका उपयोग किया जा सके।


दूसरी बात है शक्ति के संचय की, प्राण-शक्ति के संचय की। हमारी शक्ति का सबसे बड़ा स्रोत है- प्राणधारा। शक्ति प्राप्त होती है प्राणधारा के द्वारा। हमारे शरीर में शक्ति का केंद्र है- मूलाधार चक्र और उसमें ब्रह्मग्रंथि, जहां प्राण उत्पन्न होता है। मूलाधार की ऊष्मा से प्राण पैदा होता है। नाभि चक्र से स्वाधिष्ठान चक्र के नीचे तक के भाग की ऊष्मा से प्राण-तत्व उत्पन्न होता है। वही प्राण हमारी जीवन-शक्ति और प्राण-शक्ति है। वही हमारे जीवन को संचालित करती है। शक्ति उत्पन्न करने मे बाहर का सहारा भी लिया जा सकता है।


शक्ति का करो संचय

हम सूर्य के द्वारा भी प्राण-शक्ति को खींच सकते हैं। प्रात: काल के समय, सूर्योदय के समय, सूर्य के सामने खड़े होकर यदि हम संकल्प करें कि प्राण-शक्ति का संग्रह हो रहा है, संचय हो रहा है, मस्तिष्क के मार्ग से प्राण-शक्ति का अवतरण हो रहा है। दस-बीस मिनट इस संकल्प को दोहराएं और ध्यानस्थ मुद्रा में खड़े रहें तो अनुभव होगा कि नई शक्ति का संचार हो रहा है, स्फूर्ति का संचार हो रहा है। यदि इस बात को हम ठीक से समझ लें तो शरीर को इतना तैयार कर सकते हैं कि फिर हम आह्वान करेंगे कि बड़ी से बड़ी शक्ति आए और शरीर में अवतरण करे, प्रकट हो, अभिव्यक्त हो।

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