नमामि गंगे तव पादपंकजम्
Published: May 25, 2015 12:02:00 pm
महाभारत में वर्णन है कि
महर्षि वशिष्ठ के श्राप के बाद स्वर्ग के आठों वसुओं ने गंगा से उनकी मां बनने का
निवेदन किया
हिन्दी के प्रसिद्ध लेखक काका कालेलकर ने एक स्थान पर लिखा है, “गंगा कुछ भी न करती, सिर्फ देवव्रत भीष्म को ही जन्म देती तो भी आर्यजाति की माता के तौर पर प्रतिष्ठित होती।”
महाभारत में वर्णन है कि महर्षि वशिष्ठ के श्राप के बाद स्वर्ग के आठों वसुओं ने गंगा से उनकी मां बनने का निवेदन किया। गंगा ने मानव रूप में पृथ्वी पर अवतार लिया और कुरूवंशी राजा शांतनु उसके रूप पर मोहित हो गए। शांतनु ने जब गंगा से प्रणय निवेदन किया तो गंगा ने एक शर्त रखी। गंगा ने कहा कि जीवन में किसी भी समय शांतनु यदि उसकी किसी गतिविधि के बारे में सवाल करेंगे तो वह उन्हें छोड़कर चली जाएंगी। शांतनु ने यह शर्त मान ली।
एक के बाद एक सात वसु गंगा के गर्भ से उत्पन्न हुए और गंगा उन्हें नदी में बहाती गई। आठवें वसु को भी जब गंगा बहाने लगी तो शांतनु का धैर्य जवाब दे गया और उन्होंने गंगा से पूछ लिया कि वो ऎसा क्यों कर रही हैं। यह गंगा की शर्त का उल्लंघन था। शांतनु ने अपनी आठवीं संतान को तो बचा लिया लेकिन गंगा उन्हें हमेशा के लिए छोड़कर चली गईं। यही आठवीं संतान भीष्म थी जिसके व्यक्तित्व और दृढ़प्रतिज्ञा को आज भी उदाहरण के तौर पर गिनाया जाता है।
हिन्दी के प्रसिद्ध लेखक काका कालेलकर ने एक स्थान पर लिखा है, “गंगा कुछ भी न करती, सिर्फ देवव्रत भीष्म को ही जन्म देती तो भी आर्यजाति की माता के तौर पर प्रतिष्ठित होती।” हम गंगा को आर्य संस्कृति के आधार स्तंभ महापुरूष की माता के रूप में भी पहचानते हैं। जब हम गंगा का ध्यान अथवा दर्शन करते हैं तो हमारे ध्यान में सिर्फ फसल से लहलहाते खेत या माल से लदे हुए जहाज ही नहीं आते, अपितु वाल्मीकि का काव्य, महावीर के विहार, अशोक-समुद्रगुप्त या हर्ष जैसे सम्राटों का पराक्रम और तुलसीदास-कबीर जैसे संतों के भजन भी एक साथ स्मरण हो आते हैं। गंगा का दर्शन तो शैल्य पावनता का साक्षात् दर्शन है।