निर्दोष को क्यों मिली सजा?
एक नगर में राजकुमार बलदेव सिंह अपने
साथियों के साथ गुरू ब्रह्मानंद के आश्रम में शिक्षा ग्रहण कर रहा था
एक नगर में राजकुमार बलदेव सिंह अपने साथियों के साथ गुरू ब्रह्मानंद के आश्रम में शिक्षा ग्रहण कर रहा था। करीब दो वर्ष तक आश्रम में रहकर बलदेव ने सभी सबक सीख लिए थे और उसकी शिक्षा का समय अब पूरा होने वाला था।
एक दिन वह गुरू के साथ नगर परिक्रमा से लौट रहा था। उसने गुरू से आज्ञा लेते हुए कहा, “गुरूदेव! मेरी शिक्षा पूरी हो चुकी है। क्या आज शाम मुझे महल जाने की इजाजत है?”
गुरूदेव ने कहा, “वत्स! ऎसा तुम सोच रहे हो कि तुम्हारी शिक्षा पूरी हो गई है। एक बड़ा सबक अभी तुम्हें सीखना बाकी है। फिर भी यदि तुम आज शाम ही महल की ओर प्रस्थान करना चाहते हो तो जा सकते हो।”
बलदेव सिंह ने सोचा कि उसने तीरंदाजी, घुड़सवारी, व्यवहार, न्याय, आचार संहिता, कूटनीति आदि सबकुछ सीख लिया है, फिर ऎसा क्या है जो बाकी रह गया। उसने ठान लिया था कि वह किसी भी कीमत पर आज ही महल लौटेगा। जैसे ही गुरू और शिष्य आश्रम में आए तो गुरू की लाठी गिर गई। बलदेव सिंह ने लाठी उठाई और आदर के साथ गुरू को सौंपी, लेकिन गुरू ने लाठी पकड़ने की जगह उसे एक लात मारी।
बलदेव सिंह गुरू के इस व्यवहार को समझ नहीं सका। न ही इस बारे में उसे गुरू से कुछ पूछने की हिम्मत हुई। शाम को बलदेव सिंह महल लौट गया और कुछ समय बाद वह राजगद्दी पर आसीन हो गया। कुछ वर्षो में उसकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गई।
एक दिन गुरू ब्रह्मानंद किसी कार्य से राजमहल गए। बलदेव सिंह ने बहुत ही आदरपूर्वक उनका सत्कार किया और उनके चरण धोए। भोजन के बाद बलदेव सिंह ने गुरू से एक सबक छूटने और लात मारने के बारे में पूछ ही लिया।
गुरूदेव ने कहा, “वह लात तुम्हारा आखिरी सबक था। वह यह बताने के लिए था कि कभी किसी निर्दोष को सजा नहीं देना चाहिए। वरना उसे वह सजा जिंदगी भर इस तरह प्रताडित करती है, जैसे आज तक तुम्हें मेरी लात करती आई है।”
यह सुनते ही बलदेव सिंह की आंखें भर आई। उसने गुरू के चरण छुए और सबक का हमेशा पालन करने का वचन दिया।