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शरद पूर्णिमा का व्रत सोमवार को, इसी दिन कृष्ण ने किया था महारास

आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा शरद पूर्णिमा के रूप में मनाई
जाती है। शरद पूर्णिमा को कोजागर पूर्णिमा व्रत और रास पूर्णिमा भी कहा जाता है

Oct 25, 2015 / 04:18 pm

सुनील शर्मा

maharas on sharad purnima

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आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा शरद पूर्णिमा के रूप में मनाई जाती है। शरद पूर्णिमा को कोजागर पूर्णिमा व्रत और रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। कुछ क्षेत्रों में इस व्रत को कौमुदी व्रत भी कहा जाता है। इस दिन चन्द्रमा व भगवान विष्णु का पूजन, व्रत, कथा की जाती है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इसी दिन चन्द्र अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होते हैं। इस दिन श्रीसूक्त, लक्ष्मीस्तोत्र का पाठ करके हवन करना चाहिए। इस विधि से कोजागर व्रत करने से माता लक्ष्मी अति प्रसन्न होती हैं तथा धन-धान्य, मान-प्रतिष्ठा आदि सभी सुख प्रदान करती हैं।

शरद पूर्णिमा व्रत विधि

शरद पूर्णिमा के शुभ अवसर पर प्रात:काल में व्रत कर अपने इष्ट देव का पूजन करना चाहिए। इन्द्र और महालक्ष्मी का पूजन करके घी के दीपक जलाकर उसकी गन्ध पुष्प आदि से पूजा करनी चाहिए । ब्राह्मणों को खीर का भोजन कराना चाहिए और उन्हें दान दक्षिणा प्रदान करनी चाहिए। लक्ष्मी प्राप्ति के लिए इस व्रत को विशेष रूप से किया जाता है। इस दिन जागरण करने वाले की धन-संपत्ति में वृद्धि होती है। इस व्रत को मुख्य रूप से स्त्रियां करती हैं।

उपवास करने वाली स्त्रियां इस दिन लकडी की चौकी पर सातिया बनाकर पानी का लोटा भरकर रखती हैं। एक गिलास में गेहूं भरकर उसके ऊपर रूपया रखा जाता है और गेहूं के 13 दाने हाथ में लेकर कहानी सुनी जाती हैं। गिलास और रूपया कथा कहने वाली स्त्रियों को पैर छूकर दिए जाते हैं। रात को चन्द्रमा को अघ्र्य देना चाहिए और इसके बाद ही भोजन करना चाहिए। मंदिर में खीर आदि दान करने का विधि-विधान है। विशेष रूप से इस दिन तरबूज के दो टुकडे करके रखे जाते हैं, साथ ही कोई भी एक ऋतु का फल और खीर चन्द्रमा की चांदनी में रखा जाता है। ऎसा कहा जाता है, कि इस दिन चांद की चांदनी से अमृत बरसता है।

शरद पूर्णिमा का महत्व

शरद पूर्णिमा के विषय में विख्यात है, कि इस दिन कोई व्यक्ति किसी अनुष्ठान को करे, तो उसका अनुष्ठान अवश्य सफल होता है। तीसरे पहर इस दिन व्रत कर हाथियों की आरती करने पर उत्तम फल मिलते हैं। इस दिन के संदर्भ में एक मान्यता प्रसिद्ध है, कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ महारास रचा था। इस दिन चन्द्रमा की किरणों से अमृत वर्षा होने की किवदंती प्रसिद्ध है। इसी कारण इस दिन खीर बनाकर रातभर चांदनी में रखकर अगले दिन प्रात:काल में खाने का विधि-विधान है।



आश्विन मास की पूर्णिमा सबसे श्रेष्ठ मानी गई है। इस पूर्णिमा को आरोग्य हेतु फलदायक माना जाता है। मान्यता अनुसार पूर्ण चंद्रमा अमृत का स्त्रोत है। अत: माना जाता है कि इस पूर्णिमा को चंद्रमा से अमृत की वर्षा होती है। शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर को चंद्रमा की चांदनी में रखकर उसे प्रसाद-स्वरूप ग्रहण किया जाता है। मान्यता अनुसार चंद्रमा की किरणों से अमृत वर्षा भोजन में समाहित हो जाती है जिसका सेवन करने से सभी प्रकार की बीमारियां आदि दूर हो जाती हैं।

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