ब्राह्मण बोला,”चार लोगों को मैं दंड देना चाहता हूं। सबसे पहले तो मुझे नारद की तलाश है। वे मेरे प्रभु को आराम नहीं करने देते। फिर मैं द्रौपदी पर भी बहुत क्रोधित हूं। उन्होंने मेरे प्रभु को ठीक उसी समय पुकारा, जब वे भोजन करने बैठे थे। उसकी धृष्टता तो देखिए। उसने मेरे भगवान को जूठा खाना खिलाया।
“आपका तीसरा शत्रु कौन है?” अर्जुन ने पूछा। वह है ह्वदयहीन प्रह्लाद। उस निर्दयी ने मेरे प्रभु को गरम तेल के कड़ाह में डलवाया। हाथी के पैरों तले कुचलवाया और अंत में खंभे से प्रकट होने के लिए विवश किया।…और चौथा शत्रु है अर्जुन। उसकी दुष्टता देखिए। उसने मेरे भगवान को अपना सारथी बना डाला। कितना कष्ट हुआ होगा मेरे प्रभु को। यह कहते-कहते ब्राह्मण की आंखों में आंसू आ गए।
यह देख अर्जुन का घमंड चूर-चूर हो गया। उसने श्रीकृष्ण से क्षमा मांगते हुए कहा, “मान गया प्रभु, इस संसार में न जाने आपके कितने तरह के भक्त हैं। मैं तो कुछ भी नहीं हूं।