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धर्म और अध्यात्म

ये हैं मौत की मनहूस पांडुलिपि, घर में रखने से हो जाती है मौत

हाल ही में एक ऐसी प्राचीन पांडुलिपि मिली है जिसे “मौत की मनहूस पाण्डुलिपि” कहा जाता है। यह पाण्डुलिपि जहाँ कहीं भी गई वहां पर लोगों की मृत्यु का कारण बन गई

Oct 14, 2015 / 04:04 pm

सुनील शर्मा

mrityu vichar

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हाल ही में एक ऐसी प्राचीन पांडुलिपि मिली है जिसे “मौत की मनहूस पाण्डुलिपि” कहा जाता है। किंवदंती है कि इस ग्रन्थ की रचना महर्षि पुंडरीक द्वारा कई सदियों पहले की गई थी। इसका वास्तविक नाम “मृत्यु विचार” है। इस पांडुलिपि का मुख्य विषय मृत्यु है। संस्कृत तथा हिमालय की स्थानीय भाषाओं से बनी मिश्रलिपि में लिखी गई इस पांडुलिपि में जिन समस्याओं के ऊपर विचार किया गया है, वो हैं

(1) क्या मौत का कोई स्वाद होता है?
(2) क्या मौत का कोई रंग होता है?
(3) क्या कोई मौत का अनुभव जानता है?
(4) क्या मौत का दिन जाना जा सकता है?
(5) क्या मौत को टाला जा सकता है?



हिमालय की घाटियों में मिली थी मौत की मनहूस पाण्डुलिपि

यह पांडुलिपि कुल्लू जिले की बंजार घाटी में एक परिवार के पास मिली थी। निर्माण के बाद से यह दुर्लभ पाण्डुलिपि कई तांत्रिको के पास रही परन्तु दुर्भाग्यवश यह पाण्डुलिपि जहाँ कहीं भी गई वहां पर लोगों की मृत्यु का कारण बन गई। इस पांडुलिपि को रखने के कारण कई परिवार के परिवार समाप्त हो गए। अंत में इसे एक सन्यासी ने एक गुफा में सुरक्षित रख दिया। लेकिन वहां भी जिस परिवार के पास यह पुस्तक थी वह परिवार निसंतान था और उनकी मृत्यु के साथ ही उनका वंश समाप्त हो गया था।



अपनी मौत को देखने की विधि भी लिखा है पांडुलिपी में

पांडुलिपि में ज्योतिष तथा तंत्र के उन विधि-विधानों के बारे में बताया गया है जिनसे मृत्यु का ज्ञान मिलता है। इसके कुछ विषय है कुंडली के भावों के द्वारा मृत्यु को जानना, तांत्रिक उपायों द्वारा अपनी मौत को देखना, मौत का पूर्वानुमान लगाना, मौत का स्वाद और सुगंध कैसी होती है। यही नहीं इस पांडुलिपि में संसार की आयु तथा विनाश के बारे में भी लिखा गया है। बताया गया है कि एक सांप अपने मुंह से एक साथ कई ब्रह्माण्डों को उगलता है जिनसे सृष्टि का जन्म होता है और अंत में फिर उसी मुंह से समस्त ब्रह्माण्डों को निगल कर उनका अंत भी करता है।



लिखा है कैसे होगा मनुष्य का अंत

इसमें लिखा है कि अभी पृथ्वी के नष्ट होने में काफी समय बचा हुआ है परन्तु मनुष्य जाति इस समय अवधि से पहले ही मृत्यु के मुख में चले जाएंगे। कलियुग में मानव कृत्रिम भ्रमजाल की दुनिया में रहेगा। यह दुनिया पूरी तरह से प्रकृति द्वारा बनाई गई दुनिया से अलग होगी। और यही मानव के अंत की शुरुआत होगी।

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