स्वयं पर विश्वास से मिलता है परमात्मा का साथ
Published: Apr 28, 2015 10:58:00 am
हनुमान जी को जब अपने तेज, बल और पराक्रम का स्मरण दिलाया तो वे तुरंत
पर्वताकार हो उठे
प्रत्येक आदमी के पास इच्छाशक्ति, संकल्प शक्ति एवं एकाग्रता की ताकत होती है। संकल्प शक्ति को जाग्रत करने वाला अजेय बन सकता है
हमारे जीवन का विशाल भवन विश्वास की नींव पर ही खड़ा है। विश्वास ईश्वर के प्रति और अपने आप पर। पहला विश्वास तो उस सर्वशक्तिमान के प्रति जिसने संसार को बनाया और इसे बखूबी चला भी रहा है। फिर आता है स्वयं पर विश्वास। अपनी क्षमता पर भरोसा। जीवन में विश्वास ही वह कड़ी है जो व्यक्ति को जीने के लिए प्रेरित क रती है।
ईश्वर पर भरोसा
ईश्वर पर भरोसा तो वैसे ही है जैसे कोई पिता अपने आंगन में खड़ा होकर नन्हें शिशु को ऊपर की तरफ उछाले। फिर भी बच्चा हंसता रहता है। उसे किंचित मात्र भी डर नहीं कि मैं नीचे गिर जाऊंगा क्योंकि उसे भरोसा है कि वह पिता के हाथों में सुरक्षित है। इसी प्रकार यह सम्पूर्ण सृष्टि परम पिता परमात्मा के हाथों में सुरक्षित है। रामकथा में भी आता है कि सीता मैया की खोज में जाने वाला वानर-दल समुद्र तट पर पहुंच गया। वानरों ने अपनी क्षमता और बल के बारे में बखान किया। परंतु हनुमान उधर मौन बैठे रहे। उन्हें ना तो खुद की शक्ति का एहसास था और ना ही खुद पर विश्वास कि वे भी समुद्र को लांघ सकते हैं। ऎसी स्थिति में जामवंत को आखिर कहना ही पड़ा कि पवनपुत्र पवन के समान बलशाली हैं। बुद्धि, विवेक और विज्ञान के निधान हैं। रामकाज के लिए ही अवतरित हुए हैं। रीछपति जामवंत ने कहा :
कवन सो काज कठिन जगमाही
जो नहिं होत तात तुम्ह पाही।
हनुमान जी को जब अपने तेज, बल और पराक्रम का स्मरण दिलाया तो वे तुरंत पर्वताकार हो उठे। उन्होंने तत्काल सिंहनाद कर श्रीराम के विजय अभियान की जिम्मेदारी संभाली।