ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति नवरात्रों में इस प्रसिद्ध सिद्धपीठ के दर्शन करता है, उसके सब दुख दूर हो जते हैं…
जयपुर। टिहरी जनपद में जौनपुर प्रखंड के सुरकुट पर्वत पर प्रसिद्ध सिद्धपीठ मां सुरकंडा का मंदिर स्थित है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, यहां सती का सिर गिरा था। जब राजा दक्ष ने कनखल में यज्ञ का आयोजन किया, तो उसमें भगवान शिव को नहीं बुलाया गया, लेकिन शिव के मना करने पर भी सती यज्ञ में पहुंच गईं। वहां दूसरे देवताओं की तरह उनका सम्मान नहीं किया गया। पति का अपमान और स्वयं की उपेक्षा से क्रोधित होकर सती यज्ञ कुंड में कूद गईं। इस पर शिव सती का शव त्रिशूल में टांगकर आकाश में भ्रमण करने लगे।
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इसी दौरान सती का सिर सुरकुट पर्वत पर गिरा। तभी से यह स्थान सुरकंडा देवी सिद्धपीठ के रूप में प्रसिद्व हुआ। इसका उल्लेख केदारखंड व स्कंद पुराण में भी मिलता है। यह भी कहा जाता है कि राजा इंद्र ने यहां मां की आराधना कर अपना खोया हुआ साम्राज्य प्राप्त किया था। क्षेत्र की इकलौती ऊंची चोटी होने के कारण यहां से चंद्रबदनी मंदिर, तुंगनाथ, चौखंबा, गौरीशंकर, नीलकंठ, दूनघाटी आदि स्थान दिखाई देते हैं।
विशेष महत्व…
मां सुरकंडा के दर्शनों का विशेष महत्व है। यह इकलौता सिद्धपीठ है, जहां गंगा दशहरा पर विशाल मेला लगता है और दूर-दूर से लोग मां के दर्शन करने मंदिर पहुंचते हैं। इस मौके पर मां के दर्शनों का विशेष महातम्य माना गया है। कहा जाता है कि जब राजा भागीरथ तपस्या कर गंगा को पृथ्वी पर लाए थे, तो उस समय गंगा की एक धारा यहां सुरकुट पर्वत पर भी गिरी थी। तभी से गंगा दशहरा पर मां के दर्शनों का महत्व माना गया है।
कपाट खुलने का समय:
यहां मंदिर के कपाट वर्ष भर खुले रहते हैं।
मौसम:
सर्दियों में अधिकांश समय यहां पर बर्फ पड़ी रहती है। मार्च व अप्रेल में भी मौसम ठंडा रहता है। यहां अधिकांश समय गर्म कपड़ों का प्रयोग ही करते हैं।
यात्री सुविधा:
यहां यात्रियों के ठहरने के लिए धर्मशाला की सुविधा है।
ऐसे जाएं…
यह मंदिर समुद्रतल से करीब तीन हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां पहुंचने के लिए हवाई सुविधा के साथ-साथ रेल व सड़क मार्ग की भी सुविधा है।
हवाई मार्ग: यहां से सबसे नजदीकी हवाई अड्डा जौलीग्रांट है।
रेलमार्ग: यहां से सबसे नजदीक रेलवे स्टेशन हरिद्वार व देहरादून है।
सड़क मार्ग: मां सुरकंडा मंदिर पहुंचने के लिए हर जगह से वाहनों की सुविधा है। देहरादून से वाया मसूरी होते हुए 73 किलोमीटर दूरी तय कर कद्दूखाल पहुंचा जाता है। यहां से दो किलोमीटर पैदल दूरी तय कर मंदिर पहुंचना पड़ता है। ऋषिकेश से वाया चंबा होते हुए 82 किमी की दूरी तय कर भी यहां पहुंचा जा सकता है।