सवाईमाधोपुर। रणथम्भौर बाघ
परियोजना क्षेत्र में बसे गांवों को पूरी तरह विस्थापित करने में वन विभाग अब तक
नाकाम रहा है, जबकि संभागीय आयुक्त की अध्यक्षता में गठित स्टीयरिंग कमेटी की ओर से
विस्थापन में तेजी के आदेश कई बार दिए जा चुके हैं, लेकिन विस्थापन कार्य सुस्त गति
से चल रहा है।
इन गांवों का विस्थापन हो जाए तो बाघ परियोजना क्षेत्र में
काफी एरिया बाघों के विचरण के लिए मिल सकेगा। इन आदेशों पर तो वन विभाग ने कभी अमल
नहीं किया, जबकि अपने ही वन क्षेत्र में इंसानी दखल झेल रहे बाघ टी-24 को आदेश के
महज चंद घंटों के भीतर ही चिडियाघर में शिफ्ट कर दिया।
अब तक पांच गांव हुए
विस्थापित
वनाधिकारियों के मुताबिक रणथम्भौर बाघ परियोजना क्षेत्र में 65 गांव
बसे हैं। इनमें सवाईमाधोपुर जिले में 21 तथा करौली जिले में 44 गांव हैं। वन विभाग
की ओर से वर्ष 2009 में विस्थापन की प्रक्रिया शुरू की थी।
विस्थापित होने वाले
प्रति परिवार के लिए दस लाख रूपए का पैकेज भी निर्घारित किया था। अब तक सवाईमाधोपुर
जिले में आने वाले पादड़ा, भीड़, इंडाला व मोरडूंगरी को ही पूरी तरह विस्थापित किया
गया है। करौली जिले में सिर्फ माछलकी गांव ही पूरी तरह विस्थापित हो सका है। वहां
तो विस्थापन कार्य शिथिलपड़ा है। वन विभाग की ओर विस्थापित गांवों पर करीब 43 करोड़
70 लाख रूपए खर्च किए हैं।
…तो नहीं मिला फायदा
सवाईमाधोपुर जिले के
अन्तर्गत आने वाले कठुली के 131, कालीभाट के 41, हिन्दवाड़ के 360, मुद्राहेड़ी के
69 परिवार विस्थापित किए जा चुके हैं, लेकिन इन गांवों में अभी कई परिवार शेष हैं।
कठुली में 8, कालीभाट के 5, हिन्दवाड़ के 215, मुद्राहेड़ी के 90 परिवार विस्थापित
नहीं हुए हैं। इसके चलते अब तक विस्थापित किए परिवारों से कोई फायदा नहीं हुआ। शेष
परिवार जब तक विस्थापित नहीं होंगे वन विभाग को गांव का एरिया नहीं मिल सकेगा।
वन्यजीव का मूवमेंट भी नहीं होगा।
प्रस्ताव भेजा
वन विभाग की ओर से द्वितीय
चरण में करौली व सवाईमाधोपुर दोनों के दस गांव व ढाणियों के विस्थापन का प्रस्ताव
राज्य सरकार को भेजा है। इसके अन्तर्गत गढ़ी, कालाखोर्रा, तालड़ा खेत, माहरोह,
किराड़की, सांकड़ा, विश्वनाथपुरा, मातोरियाकी, खातेकी, धोधाकी शामिल हैं। गांवों के
700 परिवार विस्थापित किए जाने हैं, इसके लिए 7800 लाख के बजट की आवश्यकता है।
बजट कैम्पा योजना के तहत देने की मांग की गई है। ये गांव विस्थापित होने पर वन
विभाग को 150 से 200 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र मिल सकेगा। वहीं बनास पार कर
कैलादेवी अभयारण्य में बाघों का मूवमेंट बढ़ेगा।
यहां मिला बाघों को आश्रय
विस्थापित गांवों से बाघों को आश्रय मिला है। वन विभाग के अनुसार भीड़ गांव के
विस्थापित होने पर बाघिन टी-11 को, मोरडूंगरी में बाघिन टी-22 व बाघ टी23 को,
पादड़ा क्षेत्र में बाघिन टी-9 व बाघ टी-47 को तथा इंडाला में बाघिन 26 व उसके दो
शावकों को आश्रय मिल रहा है।
समय पर नहीं बजट
वन विभाग का कहना है कि
विस्थापन कार्य के लिए केन्द्र सरकार से सितम्बर या अक्टूबर के बाद बजट मिलता है।
ये बजट अप्रेल, मई जून के आसपास मिलना चाहिए। उस समय ग्रामीण विस्थापन की सोच सकते
हैं।
समस्या आती है
रणथम्भौर बाघ परियोजना क्षेत्र में 65 गांव बसे हैं।
इनमें से पांच गांव ही विस्थापित हो सके हैं। इसमें सवाईमाधोपुर के चार व करौली का
एक गांव शामिल हैं। बजट समय पर नहीं मिलने से समस्या आती है। दिनेश गुप्ता,
सहायक वन संरक्षक (विस्थापन), रणथम्भौर