क्या आपका बच्चा भी कोने में अकेले बैठकर ये हरकत करता है?
Published: Oct 01, 2016 03:42:00 pm
बच्चे रोज नई नई चीजें सीखते हैं, इनमें कुछ बातें गलत भी होती है, उन्हें सही समय पर मार्गदर्शन देना जरूरी है
बच्चों की हर हरकत पर नजर रखना माता पिता के लिए बेहद जरूरी है। बच्चों को सही राह दिखाना उनका कर्तव्य है, लेकिन साथ ही उन्हें सही गलत के बीच फर्क सिखना भी पेरेंट्स की ही जिम्मेदारी है। इसके लिए बहुत जरूरी है कि पेरेंट्स को यह पता हो कि उनके बच्चे कब क्या करते हैं।
तकनीकी जगत में हर रोज कुछ नया हो रहा है। इस तरक्की से हमारा और आपका जीवन भी खासा प्रभावित हो रहा है। कुछ मायनों में ये प्रभाव सकारात्मक है और कुछ मायनों में नकारात्मक। हमारे साथ-साथ हमारे बच्चों का जीवन भी इससे अछूता नहीं रह गया है।
महज दो साल की उम्र में वे मोबाइल, टैबलेट व कंप्यूटर में इस कदर खो जाते हैं कि खुद को आसपास के माहौल से अलग कर लेते हैं। इसका असर उनके मानसिक और शारीरिक विकास पर पड़ता है।
चार साल की अरुणिमा ने एक साल पहले पहली बार मोबाइल फोन अपने हाथ में लिया था। इसके बाद उसके रंग बिरंगे डिस्प्ले में वह इस कदर खोई कि स्कूल के बाद और छुट्टियों के दौरान उसका एकमात्र हमसफर वही मोबाइल है।
मुंबई में रहने वाली चार साल की अक्षिणी दीक्षित दो साल पहले टैबलेट से रूबरू हुई। आज की तारीख में वह यू-ट्यूब पर कविताएं सुनती है और विभिन्न प्रकार के गाने व गेम्स डाउनलोड करती है। स्क्रीन ने धीरे-धीरे न सिर्फ उसके आउटडोर खेलों की जगह ले ली है बल्कि परिवार और दोस्तों के साथ बिताने वाले वक्त पर भी अधिकार कर लिया है।
अरुणिमा और अक्षिणी सिर्फ दो नाम हैं। विशेषज्ञों की मानें तो भारतीय बच्चों में स्मार्टफोन, टैबलेट, आईपैड व लैपटॉप के रूप में ‘स्क्रीन एडिक्शन’ लगातार बढ़ रहा है और भविष्य में इसका बुरा असर पड़ने वाला है। मुंबई के नानावती सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में बाल व युवा साइकियाट्रिस्ट डॉ.शिल्पा अग्रवाल कहती हैं – मुझे इस बात की चिंता है कि आज बच्चे मानव संबंधों की कीमत पर डिजिटल प्रौद्योगिकी का धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रहे हैं। इसका उनके मस्तिष्क पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा।
डॉ.अग्रवाल के अनुसार – इसका असर बच्चों को अपने भावों को नियंत्रित करने की क्षमता पर पड़ सकता है और यह स्वस्थ संचार, सामाजिक संबंधों तथा रचनात्मक खेलों को प्रभावित कर सकता है।