वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि सामान्य प्रकाश में हमारी देखने की क्षमता 74 एमपी व रिजॉल्यूशन क्षमता 576 एमपी के बराबर है।
नई दिल्ली. हमारी आंखें 1.5-2.0 मेगापिक्सल कैमरे के बराबर होती है, जबकि स्मार्टफोन के कैमरे में अब 16 मेगा पिक्सल से भी ज्यादा के होने लगे हैं। फिर भी आंखों में ज्यादा साफ छवि बनती है। कैमरा व मानव विजन की तुलना मेगापिक्सेल (एमपी) में नहीं हो सकती, क्योंकि हमारी आंखें डिजिटल नहीं होती और हम अपनी आंखों की विजन का एक मामूली हिस्सा ही साफ-साफ देख पाते है। हम सिर्फ अंगूठे के आकार के बराबर क्षेत्र यानी 2 नाइक्रोम में ही अपनी दृष्टि फोकस कर सकते हैं।
देखने की क्षमता 74 एमपी के बराबर
शोध यह भी बताते है कि हमारी दृष्टि क्षमता सामान्य प्रकाश में देखने की क्षमता लगभग 74 एमपी के बराबर है और रेजोल्यूशन क्षमता 576 एमपी। रेटिना औसतन 50 लाख शंकु रिसेप्टर्स से बना है। ये रंग-दृष्टि के लिए जिम्मेदार हैं। ये पांच एमपी के बराबर होते है, साथ में आंख में सौ मिलियन मोनोक्र्रोम भी होते हैं, जो देखी जा रही छवि के कंट्रास्ट में अहम भूमिका निभाते हैं। ये दोनों मिलकर 105 एमपी के बराबर होते हैं, पर यह भी पूरी तरह सच नहीं है। किसी छवि की स्पष्टता सिर्फ एमपी पर निर्भर नहीं। यह इमेज सेंसर पर निर्भर करती है। इमेज सेंसर ही तय करता है कि किसी भी तस्वीर को स्पष्ट देखने या दिखाने में कितने प्रकाश की आवश्यकता है। निशाचर जीव-जंतु की आंखों में फोटो रिसेप्टर्स की संख्या ज्यादा होती है। इसी कारण वे रात मे ज्यादा साफ छवि देख पाते हैं।
मस्तिष्क जिम्मेवार
सरल शब्दों में कहें तों हमारी दोनों आंखें मिलकर जो चारों ओर के दृश्य की समग्र छवि दिमाग में पहुंचाती है, वो बहुत बड़े क्षेत्र की छवि बनाती है। जो 576 एमपी के बराबर होता हैं। 576 एमपी जवाब तभी सही है, जब मानव नेत्र किसी कैमरा स्नैप शॉट की तरह तस्वीर के हर कोण को साफ-साफ देख सके, पर ऐसा संभव नहीं है।