बीजिंग। अभी तक ऎसी कोई तकनीक विकसित नहीं की जा सकी है, जिससे भूकंप आने के पहले ही इसका पता लगाया जा सके। इस तकनीकी युग में चीन ने प्राचीन काल से प्रचलित पद्धति को अपनाया है। उसने पशु-पक्षियों के व्यवहार से भूकंप का पता लगाने के लिए तैयारी की है।
भूकंप विज्ञानी रखेंगे नजरभूकंप विज्ञानी इन पशु-पशुओं के व्यवहार पर नजर रखेंगे, ताकि भूकंप से पहले उसका सटीक अनुमान लगाया जा सकेगा और समय रहते लोगों को सावधान किया जा सके।
7 भूकंप पर्यवेक्षण केंद्र बनाएचीन के पूर्वी जियांगसू प्रांत की राजधानी नानजिंग में भूकंप वैज्ञानिकों ने यहां बने चिडियाघरों और पशु अभयारण्यों में सात पर्यवेक्षण केंद्र बनाएं हैं। केंद्रों में से एक शहर के युहुआताई में बने पारिस्थितिकी पार्क में मौजूद 2000 मुर्गे-मुर्गियों, 200 सुअरों और दो वर्ग किलोमीटर में फैले तालाब में लाखों मछलियों पर नजर रखा जाएगा। वैज्ञानिक इन पशुओं के व्यवहार पर नजर रखेंगे। ताकि इनके संकेतों से भूकंप के आने का पता लगाया जा सके।
मानव भी जिम्मेदारी है भूकंप के लिए, यह काम करने से बढ़ा खतराइनकी तैनाती…मुर्गियां-2,000
सुअर- 200
मछलियां- लाखों में
पर्यवेक्षण केंद्रों में सैकड़ों कैमरे लगाए, दिन में दो व्यवहार की करेंगे समीक्षापार्क में जगह-जगह पर सैकड़ों कैमरे लगाए गए हैं। कर्मचारियों से दिन में दो बार पशुओं के व्यवहार के बारे में जानकारी देने को कहा गया है। नानजिंग के भूकंप ब्यूरो के प्रमुख झाओ बिंग ने कहा कि पशुओं को अक्सर भूकंप का पूर्वानुमान हो जाता है। इसलिए कई पशुओं को हमेशा निगरानी पर रखा गया है।
भूकंप के झटकों से पहले दे चुके “संदेश”चीन में हुए एक शोध में पाया गया है कि पशु-पक्षियों को भूकंप का पहले ही आभास हो जाता है।
-1920 में हियुआन प्रांत में 8.5 तीव्रता के भूकंप आने से पहले भेडिये दौड़ने लगे, कुत्ते भौंकने लगे और चिडियां लगातार आसमान में उड़ने लगीं, जिससे लोगों ने भूकंप का अनुमान किया था।
-फरवरी 1975 में वैज्ञानिकों ने सांप और चूहों के सड़कों पर आने के बाद भूकंप की भविष्यवाणी की थी, जो सच साबित हुई।
-सन् 1960 के भूकंप में अगादि (मोरक्को) से हजारों पशु-पक्षी भूकंप से कुछ घंटे पहले ही चले गए।
-1963 में यूगोस्लाविया में भीषण भूकंप में दस हजार लोग मारे गए, वहां भी पशु-पक्षी पलायन कर चुके थे।
भूकंप बाद तनाव से राहत देगा नय एप्पजानवर भांप जाते हैंकुत्ते : भौंकने लगते हैं
बिल्ली-हाथी, गाय-भैंस : भागने लगते हैं।
सांप-चूहे : बिलों से बाहर आ जाते हैं।
घोड़े : अस्तबल से बाहर जाने को बेचैन
मछलियां : अस्वाभाविक रूप से उछलना
मेढक : पूर्वाभास, बाहर उछल-कूद
यह है कारणभूकंपों के आने में पृवी में दबी हुई चट्टानों की अहम भूमिका होती है। किसी प्राकृतिक या कृत्रिम कारण से जब इन चट्टानों पर दबाव अथवा तनाव बढ़ता है, तो इसके घर्षण के फलस्वरूप एक प्रकार की ध्वनि पैदा होती है। इस ध्वनि की आवृत्ति मानव की श्रवण सीमा से परे होती है, जिसका परिणाम यह होता है कि मानव तो इस ध्वनि को नहीं सुन पाता है, लेकिन जीव-जंतु और पशु-पक्षी इसे सुन सकते हैं।