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दोनों आंखें खो चुकी आकांक्षा देख रही है दुनिया बदलने का सपना

locationसीहोरPublished: Dec 02, 2016 11:57:00 pm

Submitted by:

Bharat pandey

विश्व विकलांग दिवस आज : शारीरिक विकलांगता से लड़ आत्म निर्भर बनने में लगी आठ साल की मासूम जिला स्तरीय सांस्कृति कार्यक्रम में एकल नृत्य की प्रस्तुति देगी।

World Disabled Day

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सीहोर। छोटी-छोटी आंखों में बड़े-बड़े सपने, दुनिया बदलने के रंगीन सपने…। आठ साल की मासूम आकांक्षा जब यह गीत गुनगुनाती हुई स्कूल जाती है तो राह से निकलने वाले हर शख्स के कदम थम जाते हैं और आकांशा है जज्बे की दाद देने लगाते हैं। 

मासूम आकांक्षा दोनों आंखों से देख नहीं सकती, लेकिन उसकी आंखों में बड़े-बड़े सपने हैं। सपने खुद को साबित कर अपने जैसे बच्चों के रंगीन सपनों को पूरा करने के लिए स्कूल खोलने की। एक साल की उम्र में आंखें खोने के बाद मां से दूर हुई आकांक्षा ने जिला विकलांग एवं पुनर्वास केन्द्र में दो साल का प्रशिक्षण लेकर खुद को इतना आत्म निर्भर बना लिया है कि वह रोज सामान्य बच्चों की तरह स्कूल जाती है और घर में काम में अपनी दादी राजकुमारी विश्वकर्मा का हाथ भी बटाती है। अब आकांक्षा शनिवार को विश्व विकलांग दिवस के उपलक्ष्य में आवासीय खेलकूद मैदान में होने वाले जिला स्तरीय सांस्कृति कार्यक्रम में एकल नृत्य की प्रस्तुति देगी।

दो साल के प्रशिक्षण से बदल गई दुनिया
दुर्गा कॉलोनी के शासकीय अंबेडर प्राथमिक स्कूल की कक्षा दो में पढऩे वाली मानसिक रूप से कमजोर नेत्रहीन आकांक्षा 30 जून 2014 को अपनी दादी राजकुमारी विश्वकर्मा के साथ जिला विकलांग एवं पुनर्वास केन्द्र पहुंची। यहां दादी राजकुमारी ने बताया कि आकांक्षा शारीरिक और मानसिक रूप से इतनी कमजोर है कि जिस जगह बिठा दो, उसी जगह बैठी रहती थी। आकांक्षा के पिता मजदूरी करते हैं और मां बेटी की आंखों की रोशनी जाने के बाद दूसरी शादी कर घर से चली गई। आकांक्षा की देखरेख करने वाला घर में कोई नहीं बचा है। जिला विकलांग एवं पुनर्वास केन्द्र से दो साल का प्रशिक्षण लेने के बाद अब आकांक्षा होशियार हो गई है। वह न केवल सामान्य बच्चों की तरह पढ़ाई करने स्कूल जाती है, बल्कि खुद का काम करने के साथ घर में दादी की भी मदद करती है। आकांक्षा ने बताया कि वह बड़े होकर नेत्रहीन बच्चों की आंखों में पल रहे सपनों को पूरा करने के लिए एक स्कूल खोलना चाहती है।
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