उमरिया. बेहद कम बारिश चलते जिले के किसान रोपा छोड़ छिटका बोवनी की तैयारी में जुट गए हैं। क्योंकि खेतों में पानी न भरने के कारण करीब 20 दिन में रोपा जाने वाला धान का पौधा अब अपनी दोगनुी उम्र पर पहुंच गया है। इस रोपे को लगाने से उत्पादन प्रभावित होगा।
नन्हें पौधे जब रोप दिए जाते हैं तो ये जल्दी सम्हलते हैं और इनकी बाढ़ तेजी से होती है। जुलाई माह के दूसरे सप्ताह तक खेत लबालब हो जाते थे। किसानों का कहना है कि रोपा लगा दिया और पानी खेतों में न भर पाए तो पौधे पीले पड़कर उत्पादन क्षमता में खरे नहीं उतरेंगे। हालांकि जिन किसानों के पास सिंचाई के साधन हैं वो रोपा लगाना शुरू कर चुके हैं।
जिले में लगभग पौने दो लाख हेक्टेयर भूमि में खेती होती है। जिसमें लगभग 1 लाख 37 हजार हेक्टेयर भूमि में धान की फसल तैयार होती है। मक्का लगभग 18 हजार हेक्टेयर भूमि में होता है। इसी तरह सोयाबीन, उड़द आदि फसलें ली जाती है। किंतु इस जिले की प्रमुख फसल धान की बारिश न होने से खतरे में है।
किसान बेहद चिंतित है। जमीन के भीतर का भी पानी कम है। क्योंकि इसकी रिचार्जिंग नहीं हो पाई। जो पंप से सिंचाई करने का मन बना रहे थे। उनका कहना है कि खेतों को भरने के लिए बोरवेल से पानी पर्याप्त नहीं आ रहा है। सावन माह का आधा पखवाड़ा बीत चुका है। सावन में झमाझम बारिश के लिए जाना जाता है।
जिसमें चारों ओर हरियाली ही नजर आती है। वहीं खेत, तालाब, कुएं सब रिर्चाज हो जाते हैं। लेकिन ऐसा कई सालों बाद हुआ है कि कुओं में पानी भरा ही नहीं है। गर्मी के समान ही जलस्तर बना हुआ है।
किसान चिंतित कैसे होगी खेती
बारिश न होने से किसान घबरा गया है और इस घबराहट के चलते उसने नर्सरी जो लगाकर रखी है। उसका पौधा तो जहां के तहां लगे रहने दिया। बल्कि अब खेतों में छिटका बोनी कुछ किसानों ने प्रारंभ कर दी है। बारिश न होने से उन किसानों ने जो सक्षम है उन्होंने दोबारा बीज खरीदकर बोनी करना शुरू कर दी है। लेकिन गरीब किसान कर्ज से लदा किसान अब भी उपर वाले को मना रहा है कि जमकर बारिश हो ताकि खेत भर सके और इनमें नर्सरी का पौधा ले जाकर रोप सके। किसानों ने बताया कि बोनी दोबार इस लिए कर रहे हैं कि कुछ तो उत्पादन होगा और बारिश हो गई तो फिर रोपा लगाएंगे।
सूखे पड़े जलाश्य
जिले में छोटे-बड़े एवं मध्यम जलाश्य जिनकी संख्या 75 है। ये भी अभी प्यासे हैं और बारिश जब होगी। तब इनमें पानी भरेगा। फिर नहरों के माध्यम से यही पानी किसानों तक पहुंचेगा और फसलों की प्यास बुझाएगा। जलाश्य भी सूखे पड़े हैं। मटियारी तथा थांवर बांध में कुछ पानी एकत्र हुआ है, खेतों तक पहुंचने लायक लेवल पर नहीं पहुंचा है।