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प्रत्यक्ष : प्रतिज्ञाएं

Published: Nov 05, 2015 10:35:00 am

Submitted by:

Kamlesh Sharma

उनकी शक्ति कम नहीं हो रही। क्या हमें अपनी सेना में किसी महत्वपूर्ण परिवर्तन की आवश्यकता नहीं है? कैसा परिवर्तन? पितामह एक मंच पर बैठ गए, बैठो! युद्ध में प्रतिदिन परिवर्तन हो रहे हैं। व्यूह बदले जा रहे हैं। 

उनकी शक्ति कम नहीं हो रही। क्या हमें अपनी सेना में किसी महत्वपूर्ण परिवर्तन की आवश्यकता नहीं है? कैसा परिवर्तन? पितामह एक मंच पर बैठ गए, बैठो! युद्ध में प्रतिदिन परिवर्तन हो रहे हैं। व्यूह बदले जा रहे हैं। थके सैनिकों को पीछे रखकर अभिनव, अशांत वाहिनियों को आगे भेजा जा रहा है। प्रतिदिन योद्धाओं के द्वंद्व बदले जा रहे हैं ताकि पिछले दिन के युद्ध के अनुभव से दूसरे पक्ष का योद्धा हम पर भारी न पड़े। और कैसा परिवर्तन चाहते हो राजन!

लगा क्षण भर के लिए दुर्योधन का तेज कुछ मलिन पड़ा किंतु अगले ही क्षण वह संभल गया, मैं व्यूह परिवर्तन की नहीं, रण-नीति के परिवर्तन की बात कह रहा हूं पितामह! वह बोला, हम अब तक साधारण सैनिकों का नाश कर रहे हैं, जिनसे हमारी कोई शत्रुता नहीं है। ये सारे सैनिक मारे जाएंगे तो भी युद्ध समाप्त नहीं होगा। जिनसे हमारी शत्रुता है, जिनके पतन से हमारी विजय होगी और युद्ध समाप्त होगा, उन योद्धाओं में से तो अभी एक का भी वध नहीं हुआ।

पितामह हंसे,विरोधी पक्ष के सैनिकों से तुम्हारी कोई शत्रुता नहीं है, यह तो अच्छी बात है किंतु मेरी तो विरोधी पक्ष के रथियों, महारथियों, अतिरथियों और सेनापतियों से भी कोई शत्रुता नहीं है पुत्र! सैनिक शत्रुता का भाव लेकर नहीं लड़ता। योद्धा तो क्षात्र-धर्म में प्रवृत्त है। वह तो पूर्ण एकाग्रता और दक्षता से अपने कौशल का प्रदर्शन कर रहा है। उसमें व्यक्तिगत शत्रुता और रागद्वेष कहां है? यादव सैनिकों की पांडवों से क्या शत्रुता है? मद्रराज शल्य का अपने भांजों से क्या वैर है? क्यों वे लोग पांडवों के विरुद्ध हमारे पक्ष से लड़ रहे हैं? मैं यह नहीं कह रहा पितामह! तो क्या कह रहे हो? 

मैं चाहता हूं कि यह युद्ध शीघ्र समाप्त हो। दुर्योधन बोला। पांडवों से संधि कर लो। उनका राज्य लौटा दो। वे इंद्रप्रस्थ का राज्य लेकर ही संतुष्ट हो जाएंगे। हस्तिनापुर का राज्य फिर भी तुम्हारे पास ही रहेगा। उससे युद्ध रुक जाएगा पितामह! युद्ध समाप्त नहीं होगा। क्यों? क्योंकि युद्ध का कारण शेष रहेगा। कैसे? पांडवों को हस्तिनापुर का राज्य चाहे अपेक्षित न हो किंतु मुझे इंद्रप्रस्थ का राज्य चाहिए और जब तक एक भी पांडव जीवित है, वे इंद्रप्रस्थ का राज्य छोड़ेंगे नहीं। इसलिए जब तक पांडवों का वध नहीं होता, तब तक युद्ध समाप्त नहीं होगा पितामह!

भीष्म ने एक भरपूर दृष्टि दुर्योधन पर डाली, जैसे उसके चेहरे पर से कुछ खोज रहे हों, और फिर बोले, युद्ध मैं अवश्य कर रहा हूं सुयोधन! किंतु पांडव मेरे लिए अवध्य हैं। मैंने अपनी युवावस्था में दो प्रतिज्ञाएं की थीं- एक राज्य त्याग की और दूसरी आजीवन स्त्री-प्रसंग से दूर रहने की। क्यों की थीं मैंने ये प्रतिज्ञाएं? उस आवेश की स्थिति में भी दुर्योधन मन-ही-मन हंस पड़ा, बुड्ढा अपनी महानता बखाने बिना नहीं रहेगा। प्रतिज्ञाएं की थीं तो की थीं- उनका इस युद्ध से क्या संबंध? इस समय युद्ध की बात करो। वे प्रतिज्ञाएं इसलिए की थीं कि मेरे पिता सुखी रह सकें। 

भीष्म बोले, और उन प्रतिज्ञाओं के पश्चात् मैंने न हस्तिनापुर का त्याग किया न राजप्रासाद का ताकि कौरव राजवंश सुखी, संपन्न और सुरक्षित रह सके। और अब तुम चाहते हो, मैं अपने हाथों पांडवों का वध कर दूं। यह संभव नहीं है दुर्योधन! यह तो युद्ध है पितामह! दुर्योधन संयत हंसी हंसा, आप उनका वध नहीं करेंगे तो वे आपका वध कर देंगे। 

आपको युद्ध नहीं जीतना पर उनको तो जीतना है। पितामह दुर्योधन की ओर कुछ ऐसी मुद्रा में देखते रहे जैसे सोच रहे हों कि कुछ कहें या न कहें, फिर जैसे अपने आप से ही बोले, मैंने तुम लोगों का पालन-पोषण किया था, ताकि तुमसे यह वंश चले। 
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