श्योपुर शहर की पहचान है खरादी बाजार
श्योपुरPublished: Oct 19, 2016 09:47:00 pm
उपेक्षा के बीच दीपावाली पर बढ़ जाती है काष्ठ कलाकृतियों की मांग
श्योपुर. दीपोत्सव की तैयारियां तेज होते ही शहर के बाजारों में रौनक बढ़ गई है और खरीदारी शुरू हो गई हैं। यही वजह है कि शहर की पहचान कहे जाने वाले अद्वितीय काष्ठकला के खरादी बाजार को भी उम्मीदों के पंख लग गए हैं। हालांकि उपेक्षा के चलते ये कला विलुप्ति की ओर है, लेकिन आधुनिक सजावटी सामानों के बीच आज भी काष्ठकला के सजावटी सामानों का क्रेज बरकरार है। यही वजह है कि इस बार भी काष्ठ कलाकृतियों के दुकानदारों को इस दीपावली से अच्छे खासे कारोबार की उम्मीद है।
बताया गया है कि शहर में काष्ठकला लगभग पांच सौ वर्ष पूर्व प्रारंभ हुई, जिसके बाद शहर में न केवल खरादी मोहल्ला बसा है बल्कि टोड़ी गणेश मंदिर से लेकर मालियों के मंदिर तक का बाजार खरादी बाजार के रूप में पहचाना जाता है।
जानकारों के मुताबिक मुगल शासक शेरशाह सूरी द्वारा जब रणथम्भोर पर हमला किया गया, तब श्योपुर से गुजरते समय कुछ सैनिकों को बसाया गया और काष्ठकला से व्यवसाय से उन्हें जोड़ा गया। तभी से श्योपुर की काष्ठ कला का यह व्यवसाय श्योपुर ही नहीं देश भर में प्रसिद्ध हो गया। यहां काष्ठ कला द्वारा बनाए जाने वाले लकड़ी के खिलौने व अन्य सजावटी व आकर्षक वस्तुओं ने दूर-दूर तक अपनी पहचान बनाई।
50 से 500 रुपए तक की कलाकृतियां
काष्ठ कलाकृतियों से सजे शहर के खरादी बाजार में अब धीरे-धीरे दुकानों की संख्या कम होती जा रही है, यही वजह है कि अब महज दर्जन भर के आसपास दुकानों ही यहां संचालित हैं। बावजूद इसके दीपावली के त्यौहारी सीजन में काष्ठ कला के सामानों की बिक्री बढ़ जाती है। दुकानदानों के मुताबिक वर्तमान में बाजार में काष्ठ कला के 50 रुपए से 500 रुपए तक की कलाकृतियां मौजूद हैं, जो ग्राहकों को लुभाती हैं। काष्ठकला से जुड़े मोहम्मद आमिन बताते हैं कि यूं तो लकड़ी व अन्य दिक्कतों के कारण ये बाजार अंतिम दौर में हैं, लेकिन दीपावाली पर ठीक-ठाक कारोबार हो जाता है।