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Simhastha 2016: देवताओं का एक दिन और मनुष्यों के 12 वर्ष

एक माह के इस महापर्व के लिए लंबे समय से तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं।

Feb 01, 2016 / 12:43 pm

Abha Sen

जबलपुर। सिंहस्थ महाकुंभ की तैयारियां जोरों पर है। 31 जनवरी से ठीक 82 दिन बाद 22 अप्रैल को महाकुंभ का प्रारंभ हो रहा है। एक माह के इस महापर्व के लिए लंबे समय से तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं। महाकुंभ से जुड़ी कथा के बारे में आपने तो सुना ही होगा, लेकिन आज हम आपको उन नदियों के बारे में बता रहे हैं जहां अमृत की बूंदें छलकी थीं और इनके तट पर महाकुंभ का मेला भरा जाता है। यहां हम आपको बता दें कि शास्त्रों में देवताओं का एक दिन मनुष्यों के बारह वर्ष के बाराबर बताया गया है। जिससे कुंभ की कथा भी जुड़ी है।


गंगा, सिंधु, सरस्वती च यमुना गोदावरी, नर्मदा
क्षिप्रा वे त्रवति महासुर नदी ख्याता च या गण्डकी
पूर्णा पूर्ण जलै: समुद्र सहितं कुर्वंतनो मंगलम।।

(प्रयाग)

नासिक-गंगा गोदावरी, हरिद्वार- गंगा, उज्जैन-क्षिप्रा, प्रयाग- त्रिवेणी गंगा, जमुना, सरस्वती। जिनके तट पर कुंभ पर्व का आयोजन किया जाता है। करोड़ों श्रद्धालु कुंभ पर्व स्थल- हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक- में स्नान करते हैं। इनमें से प्रत्येक स्थान पर प्रति बारहवें वर्ष इस पर्व का आयोजन होता है। हरिद्वार और प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के बीच छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ भी होता है।

(नासिक)

प्रचलित कथा के अनुसार अमृत को दानवों से बचाने के लिए देवताओं ने इसकी रक्षा का दायित्व बृहस्पति, चन्द्रमा, सूर्य और शानि को सौंपा। देवताओं के प्रमुख इन्द्र पुत्र जयन्त जब अमृत कलश लेकर भागे, तब दानव उनके पीछे लग गये। अमृत को पाने के लिए देवताओं और दानवों में भयंकर संग्राम छिड गया। यह संग्राम बारह दिन चला।

(हरिद्वार)

देवताओं का एक दिन मनुष्यों के एक वर्ष के बराबर होता है। इस प्रकार यह युध्द बारह वर्षों तक चला। इस युध्द के दौरान अमृत कलश को पाने की जद्दोजहद में अमृत कलश की बूंदें इस धरा के चार स्थानों हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन में टपकी। पौराणिक मान्यता है कि अमृत कलश से छलकी इन बूंदों से इन चार स्थानों की नदियॉ अमृतमयी हो गई। सिंहस्थ महाकुंभ में देश-विदेश से करोड़ों की संख्या में श्रद्धालुओं का आगमन होगा।

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