दर्द के आंसुओं से भीग गई “भीगी” की जिदंगी
यह उम्र इसकी
खेलने-कुदने की है। पर, अभावों के दंश और राज की उपेक्षा ने भीगी को बचपन से लेकर
सिरोही।यह उम्र इसकी खेलने-कुदने की है। पर, अभावों के दंश और राज की उपेक्षा ने भीगी को बचपन से लेकर किशोरवय उम्र तक सिर्फ और सिर्फ आंसुओं की सौगात दी है। बचपन में मां का साया उठ गया। जिंदगी रोशन के लिए आंखे खोली तो सिर्फ अंधेरा दिखाई दिया। यह दुख भरी कहानी है उन्दरा ग्राम पंचायत के अधीनस्थ केरलापादर गांव के भीगी गरासिया की।
भीगी के जन्म के एक माह बाद माता की मौत हो चुकी थी। ऎसे में भीगी का संभालने का सारा बोझ उसके पिता और दादा-दादी पर आ गया। जब बच्ची को भूख लगती थी तो दादी गजरीबाई ने बकरी व खुद का दूध पिलाकर उसे बड़ा किया।
भीगी चलने-फिरने की समझ आई तो उसे आंखों से कोई दिखाई नहीं दे रहा था। ऎसे में दादी के ऊपर उसको बड़ा करने की जिम्मेदारी आ गई। भीगी के दर्द को पहले सरकार ने समझा और राहत के तौर पर पेंशन शुरू की। पर, पिछले छह महीनों से यह राहत भी यकायक बंद हो गई।
दादा मजदूरी को, दादी सेवा में
बुढ़ापे में जहां पोती दादी की सेवा करती है। वहीं इसके विपरीत घर की रोजी-रोटी चलाने के लिए दादा खेताराम गरासिया मजदूरी के लिए बाहर जाते है तो दादी दिनभर भीगी की सेवा में लगी रहती है। गजरादेवी गरासिया ने बताया कि उसकी पौती दृष्टिबाधित होने से उसे पेंशन मिलती थी। इससे घर का गुजरा चलता था। इसकी पेंशन अंतिम बार दीपावली पर आई थी।
पेंशन किस कारण से नहीं आ रही है। इसको लेकर कई बार ग्राम पंचायत से जानकारी चाही। पर, कोई जवाब देने को तैयार नहीं है।
एक दर्द यह भी
वैसे तो कई लोग ऎसे होते है जिनके सुख-सुविधा से सम्पन्न घर होते हुए भी बीपीएल की श्रेणी में नाम दर्ज है, लेकिन इस महिला की सिर्फ रहने के लिए झोपड़ीनुमा घर बना हुआ है। फिर भी एपीएल का राशकार्ड बना हुआ है। दादी बताती है कि कई बार शिविरों में जाकर बीपीएल की सूची में शामिल करने की मांग की, लेकिन बीपीएल में कोई नाम दर्ज नहीं कर रहा है।
विभाग से कोई पेंशन रोकी हुई नहीं है। पेंशन किस कारण से अटकी हुई है। यह पता लगाकर पेंशन दिलवा दी जाएगी।बद्रीप्रसाद, उपकोषाधिकारी पिण्डवाड़ा
लक्ष्मण सैन