शहीद भगत सिंह वो नाम है जो हंसते-हंसते देश की आजादी के लिए 23 साल की उम्र में फांसी पर चढ़ गया। उनसे सिर्फ जोश और जज्बे की ही सीख नहीं मिलती, बल्कि देश के लिए मर-मिटने और अपनी जिम्मेदारियों को समझने की भी सीख मिलती है। देश की आजादी के लिए अपने जुनून से ब्रिटिश साम्राज्य को हिलाने वाले भगत सिंह के उस समय के विचार और सोच आज भी प्रासंगिक हैं। इस क्रांतिकारी ने अपनी फांसी की सजा से पहले सितंबर 1929 से लेकर 22 मार्च, 1931 तक 404 पेज की एक डायरी लिखी थी, जिसमें उनके सकारात्मक विचारों का पता चलता है। अपनी डायरी में उन्होंने अमरीकी कवि चार्ललोट पर्किस का हवाला देते हुए बाल श्रम की तीखी आलोचना की है। समान अवसर और सामाजिक मामलों पर उनके विचारों की आज भी मिसाल दी जाती है। उन्होंने अपनी डायरी में लिखा की जब तक आर्थिक असामनता खत्म नहीं होगी, तब तक लोगों के बीच गैर-बराबरी की खाई दूर नहीं होगी,चाहे फिर वो राजनीति की बात हो या कानून की। उन्होंने लिखा है कि बिना समानता के शादी एक तरीके से बंधुआ मजदूरी की तरह है और यहां तक उसे “कानूनी वेश्यावृति” तक बता डाला है। हालांकि अंग्रेजों की नजर मे वे एक बागी थे। महान क्रांतिकारी भगत सिंह का स्पष्ट मत था कि अगर कोई राजनेता जनता की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरता है, तो उसे वापस (राइट टू रिकॉल) बुला लिया जाए। फांसी की सजा सुनाए जाने के बावजूद भगत सिंह मृत्युदंड के पक्षधर थे। युवा क्रांतिकारी जिंदा रहते भारत को आजाद देखना चाहते थे, लेकिन उनका यह सपना पूरा नहीं हो सका। 23 वर्ष की उम्र में आज ही के दिन 23 मार्च को अंग्रेजों ने उन्हें सूली पर चढ़ा दिया था।