रविन्द्र मिश्रा, नागौर। रेत पर कलाकृति बनाना कोई आसान काम नहीं है, लेकिन भीमराज आर्य के जुनून के आगे मुश्किलें बौनी हो गईं। प्राकृतिक सौंदर्य हो या भगवान की मूरत, बेजुबान होकर भी काफी कुछ कह जाती हैं। कई बरसों से उनकी ‘तपस्या’ अब रंग लाने लगी है। धोरों पर कलाकृति की ‘धमक’ चहुंओर सुनाई दे रही है।
चूरू जिले की सुजानगढ़ तहसील के तालछापर के रहने वाले भीमराज 15 वर्षों से सेण्डआर्ट (बालूरेत) के माध्यम से भगवान की आकर्षक मूर्तियां व प्राकृतिक सौन्दर्य को दर्शाने वाली कलाकृतियां बनाकर दुनिया को यही संदेश देने में लगे हैं कि धोरों पर भी जिंदगी नीरस नहीं है। हाथ का इतना बढिय़ा हुनर होने के बावजूद सरकार से अभी तक इन्हें कोई सहायता नहीं मिली।
सुदर्शन पटनायक आदर्श
एक बार उड़ीसा के रेत कलाकार सुदर्शन पटनायक के बारे में अखबार में पढ़ा। समुद्री रेत में उनके द्वारा आकर्षक कलाकृतियां बनाने की जानकारी मिली। उन्हीं से प्रेरणा लेकर रेगिस्तान की रेत में मूर्ति बनाने के बारे में सोचा।
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