कैग की रिपोर्ट में कहा गया था कि सीमा के जो इलाके तनावपूर्ण हैं, अगर वहां जंग होती है तो हथियारों की कमी के कारण 20 दिन ही जंग लड़ी जा सकती है
नई दिल्ली। उरी में हुए आतंकी हमले ने हमारी रक्षा जरूरतों पर बहस छेड़ दी है। भारतीय सेना के पास 125 किस्म के जरूरी गोला-बारूद, हथियारों, आधुनिक सामान की कमी है। इनकी मांग समय-समय पर होती रही है, लेकिन इन्हें अभी तक उपलब्ध नहीं कराया जा सका। उरी में जवान टैंट में आग लगने से शहीद हो गए थे।
कैग की रिपोर्ट में भी हथियारों व जरूरी गोला-बारूद की कमी की बात सामने आई थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि सीमा के जो इलाके तनावपूर्ण हैं, अगर वहां जंग होती है तो हथियारों की कमी के कारण 20 दिन ही जंग लड़ी जा सकती है। कायदे से एक समय पर एक जगह पर 40 दिन के हथियार व गोला-बारूद होने चाहिए। बहरहाल, जिनकी सबसे ज्यादा जरूरत हैं, उनमें अटैकप्रफ वाले अत्याधुनिक गाडिय़ां, ऑटोमैटिक मोड पर चलने वाले टैंक, टाइमर बम, ग्रैनेड, हल्के वजन वाले बजूका और हल्के वजन वाले आधुनिक हेलमेट शामिल हैं।
ऑर्डिनेंस फैक्ट्री की कम क्षमता
सेना के लिए गोला-बारूद व हथियार सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी ऑर्डिनेंस फैक्ट्री में बनाए जाते हैं लेकिन इन फैक्ट्री की संख्या कम है। 65 फीसदी हथियार रूस से आयात किए जाते हैं। रक्षा जानकारों का मानना है कि अमरीका, फ्रांस जैसे देश निजी कंपनियों से भी हथियार लेते हैं। यही वजह है कि उनकी क्षमता ज्यादा है और उन्हें समय पर आधुनिक सामान मिल जाता है। भारत निजी क्षेत्र की कंपनियों से केवल वायु सेना और नौसेना से जुड़े जंगी जहाज आदि खरीदता है। जहां तक फायरप्रूफ टैंट की बात है तो दुनिया की कोई भी सेना इस तरह के आग से बचाने वाले टैंट का इस्तेमाल नहीं करती। इसकी वजह वजन ज्यादा होना है।