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EXCLUSIVE: मोहब्बत के लिए सीखा संगीत, फिल्म ‘शिवाय’ से मिली लोकप्रियता

Published: Oct 20, 2016 02:17:00 pm

Submitted by:

ललित fulara

मेघा श्रीराम कहती हैं, ‘मैंने मोहब्बत के लिए संगीत सीखा।’

Megha Sriram

Megha Sriram

ललित फुलारा
oped@in.patrika.com


मेघा श्रीराम कहती हैं कि मेरी संगीत में कतई रुचि नहीं थी। बचपन में मार खा-खा कर संगीत की शिक्षा ली। शनिवार का दिन आते ही मैं खौफ भर जाती थी, क्योंकि इस दिन मास्टरजी संगीत सिखाने के लिए आते थे। उस पर से हुआ ये कि 12वीं कक्षा में मैं फेल हो गई। मैं पूरी तरह निरुत्साहित हो गई थी, तब दीदी को पढ़ाने एक लड़का आता था, उससे मुझे प्रेम हो गया और मेरी जिंदगी बदल गई।

मोहब्बत के लिए बीएचचू में लिया दाखिला

 मैंने उस लड़के को पाने के लिए संगीत का सहारा लिया। संगीत सीखने के लिए बीएचयू, वाराणसी में दाखिला ले लिया। यहां भी मेरे मन में संगीत से ज्यादा प्रेम में था, क्योंकि मैं तो प्रेम के लिए ही यहां आई थी। इसके बाद धीरे-धीरे लोगों को सुना और संगीत में रुचि पैदा हुई और जेब खर्च के लिए स्टेज पर गाना शुरू किया। 


अजय देवगन की फिल्म शिवाय में गाना अद्भुत अनुभव रहा

जब मुंबई पहुंची तो शुरुआती दौर में नादिरा बब्बर से लेकर मकरंद देशपांडे तक के साथ थिएटर किया। 2011 में कोक स्टूडियो में गाने का मौका मिला। यह मेरी जिंदगी और करियर का अहम पड़ाव था। इसके बाद फिल्मों में भी गाने का मौका मिला। अजय देवगन की फिल्म ‘शिवाय’ का टायटल सॉन्ग गाना एक अद्भुत अनुभव रहा। 

हिंदी के प्रति दिल में है बेहद सम्मान

वह यह भी कहती हैं कि हिंदी मीडियम से पढ़ाई की और हिंदी भाषा के प्रति दिल में बेहद सम्मान है। हिंदी में बात करना बेहतर समझती हूं। मेरे ऊपर गौतम बुद्ध के जीवन दर्शन का गहरा प्रभाव है। मेरी इच्छा जेल में रह रही महिलाओं पर काम करने की है।


आदिवासी संगीत को विश्व फलक तक पहुंचाना चाहती हूं 

लोकगीत में असली स्वर वही होता है, जो दिल का छू जाए। इसमें बंदिशों को लेकर छूट रहती है। मुझे लोकगीत से लगाव है। 2011 से लेकर अब तक जो भी मंच मिला, उस पर मैं आदिवासी संगीत जरूर गाती हूं। झारखंड में एक गांव भी गोद ले रखा है। यहां के लोकगीत व संस्कृति पर रिसर्च कर रही हूं। मैं आदिवासी संगीत को विश्व फलक तक ले जाना चाहती हूं। आदिवासी संगीत और सभ्यता लुप्त हो रहे हैं। इसलिए मैं बच्चों के बीच आदिवासी संगीत को बचाने का संदेश देना चाहती हूं। 


बुद्ध के दर्शन से जीवन में आया संतुलन

बुद्ध के जीवन व दर्शन का जीवन पर गहरा प्रभाव है। इस दर्शन पर अमल करने के बाद जीवन में संतुलन आया।मेरे जीवन की शुरुआत बुद्ध के दर्शन से होती है और अंत भी। यह कोई धर्म व अध्यात्म नहीं है बल्कि जीवन जीने की कला है। मेरी गायिकी खास नहीं है, मेरे मन खास है। 


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