कुछ ऐसे परिवार हैं जिनमें भले खून का रिश्ता न हो, लेकिन उनमें प्यार है, अपनापन है और यह किसी बने बनाए दायरे से परे बहुत व्यापक है।
परिभाषाओं को मानें तो परिवार एक ऐसा समूह है, जहां कुछ लोग एक साथ रहते हैं, जहां बड़े, छोटों का ख्याल रखते हैं और सब हंसी-खुशी प्यार से रहते हैं। मुसीबत में एक-दूसरे का साथ देते हैं। परिवार कहलाने की इन मूलभूत जरूरतों मेंं अक्सर हम सिर्फ खून के रिश्ते की ही बातें करते हैं। लेकिन आत्मीय रिश्तों का दायरा इससे कहीं बहुत अधिक है।
आज हम कुछ ऐसे परिवारों से आपको रू-ब-रू करा रहे हैं, जिनमें भले खून का रिश्ता न हो, लेकिन उनमें प्यार है, अपनापन है और यह किसी बने बनाए दायरे से परे बहुत व्यापक है।
दीपिका शर्मा, नई दिल्ली।
पंछी और परिवार…
चे न्नई के ‘बर्डमैन’ जोसेफ सेकर हर रोज दिन में दो बार हजारों पक्षियों को भोजन कराते हैं। उनका कहना है कि उनका इस दुनिया में इन तोतों के अलावा कोई नहीं। उनकी जिंदगी इन पक्षियों के ईर्द-गिर्द ही घूमती है। वह 26 साल पहले चेन्नई आए थे। वह पहले सभी पक्षियों को दाना डालते थे। 10 साल पहले सुनामी में पहली बार दो तोते उड़कर उनके घर आए। फिर दो से चार,चार से 40 का परिवार बनता गया। अब हजारों तोते प्रतिदिन आते हैं।
जोसेफ बताते हैं कि तकरीबन 4,000 तोते प्रतिदिन यहां आते हैं। यह संख्या मौसम के अनुसार बदलती रहती है। तोतों के लिए रोज सुबह 4.30 बजे उठकर वह 60 किलो भोजन बनाते हैं। वह पक्षियों को सिर्फ खाना ही नहीं देते, बल्कि चोटिल पक्षियों के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखते हैं।
एक मां, जिसके 300 बच्चे हैं
‘मैं 35 साल से यहां हूं। तब लगभग 10-15 पैसे में चाय बेचा करती थी। ये कुत्ते भी उसी वक्त से मेरे साथ हैं। पहले सिर्फ तीन कुत्ते थे और अब 300 से भी ज्यादा हैं।’ यह कहना है दिल्ली के साकेत इलाके में रहने वाली 65 साल की प्रतिमा देवी का। वह कबाड़ी का काम कर गुजर-बसर करती हैं, लेकिन कुत्तों के पालन-पोषण में कोई कमी नहीं छोड़तीं।
वह बताती हैं कि यहां के लोग, पुलिस, नगरपालिका सब परेशान करते हैं। वो चाहते हैं कि मैं कहीं चली जाऊं तो ये कुत्ते भी भाग जाएं। मेरे इन बच्चों (कुत्तों) की वजह से मुझे बहुत सम्मान भी मिला है। मुझे इसके लिए सोने का तमगा भी मिला। लेकिन जब वह मिला तो मेरा अपने बेटा-बेटी मुझसे झगडऩे आ गए कि यह उन्हें चाहिए।