बच्चे का पासपोर्ट बनवाने के लिए पिता का नाम बाध्यकारी नहीं : हाईकोर्ट
सिंगल पैरेंटिंग की स्थिति में बच्चे का पासपोर्ट बनवाने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट ने दिया पिता के नाम की अनिवार्यता को खत्म करने का आदेश।
नई दिल्ली. दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय को यह आदेश दिया है कि सिंगल पैरेंटिंग के केस में बच्चों का पासपोर्ट जारी करने के लिए पिता का नाम बताना बाध्यकारी नहीं हो सकता। इसके लिए मां का नाम ही काफी है, क्योंकि ऐसी स्थिति में मां ही बच्चे का स्वाभाविक गार्जियन और अभिभावक होती हैं।
न्यायाधीश मनमोहन ने क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय को जारी अपने आदेश में कहा है कि अगर बच्चा सिंगल पैरेंटिंग के तहत मां के पास है तो उसे पासपोर्ट जारी किया जाए। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में यह भी बताया कि स्टैंडिंग इंंस्ट्रक्शंस, मैन्युअल्स आदि की स्थिति में ही पासपोर्ट कार्यालय द्वारा पिता का नाम बताने के लिए बाध्य किया जा सकता है।
बढ़ रहा है सिंगल पैरेंटिंग का प्रचलन
हाईकोर्ट के न्यायाधीश ने कहा कि अविवाहित मां, सेक्स वर्कर्स, सरोगेट मदर्स, दुष्कर्म पीडि़ता, पिता द्वारा बच्चे का त्याग कर देने, आवीएफ तकनीकी की वजह से सिंगल पैरेंटिंग का प्रचलन समाज में बढ़ रहा है। इसलिए पिता का नाम अनिवार्य करना कानून तौर पर सही नहीं है। पासपोर्ट अधिकारी ऐसे मामलों में अपने विवेक का परिचयर दें। समाज में तेजी से बदलाव जारी है और उन्हें लकीर का फकीर बनने की जरूरत नहीं है।
महिला ने की थी अदालत से राहत दिलाने की मांग
इस मामले में एक याचिकाकर्ता ने अदालत से मांग की थी कि उनके पति बेटी के पसंद नहीं करते हैं। मेरे गर्भ में बेटी होने की जानकारी मिलने के बाद उन्होंने बच्चे को जन्म से पहले ही त्याग दिया था। जन्म से लेकर अभी तक मैंने ही उसकी परवरिश की है। मेरा तलाक हो चुका है। मैं अकेले उसकी देखभाल जन्म से करती आई हूं। इसलिए पार्सपोर्ट ऑफिस को यह आदेश दिया जाए कि मेरी बेटी को पासपोर्ट दुबारा जारी करें और इसके लिए पिता का नाम लिखने की शर्त न जोड़ें।
सरकारी वकील ने कहा, कंप्यूटर फॉर्म स्वीकार नहीं करता
सरकारी वकील ने अपना पक्ष रखते हुए अदालत से कहा कि कंप्यूटराइज्ड पासपोर्ट फॉर्म भरने में एक फैमिली डिटेल्स का एक सेक्शन है। उक्त सेक्शन में पिता का नाम भरना अनिवार्य होता है। ऐसा न करने पर कंप्यूटर उक्त फॉर्म को स्वीकार नहीं करता। सरकारी वकील की तरफ से दूसरा तर्क यह दिया गया कि कानून की यह स्थापित मान्यता है कि तलाक हो जाने की स्थिति में भी पिता का नाम नहीं हटाया जा सकता, क्योंकि तलाक होने पर भी पिता का बच्चे से संबंध खत्म नहीं होता। बच्चे को गोद लेने के मामले को छोड़कर और किसी भी स्थिति कानून इस बात की इजाजात नहीं देता।
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