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ऐ मेरे प्यारे वतन… तुझ पे दिल कुर्बान, तू ही मेरी जान

Published: Jul 26, 2016 12:28:00 pm

करगिल विजय की अनेक गाथाएं हैं, जिन्हें पढ़-सुनकर रोम-रोम हर्षित हो जाता है

Kargil War

Kargil War

नई दिल्ली। करीब 17 साल पहले भारतीय सीमा में स्थित करगिल में दुश्मन का अहंकार जब पहाड़ों की चोटियां चढ़कर बैठ गया था, तब हमारे जवानों ने उन्हें जमीन पर लाकर धूल चटा दी थी। अपनी जमीन को वापस पाने की एक ऐसी लड़ाई, जिसे हम भूल नहीं सकते। करगिल विजय की अनेक गाथाएं हैं, जिन्हें पढ़-सुनकर रोम-रोम हर्षित हो जाता है और बरबस ये पंक्तियां याद आने लगती हैं – कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-जहां हमारा…। आइए सुनते हैं करगिल विजय का गौरवपूर्ण हिस्सा रहे –
वीरों की जुबानी युद्ध की कहानी…

एक नजर में गाथा
160 किमी करगिल क्षेत्र एलओसी पर युद्ध चला
30,000 भारतीय सेना के जवानों ने भाग लिया
युद्ध में 527 सैनिक व सैन्य अधिकारी शहीद
1,363 से अधिक घायल
76 दिन तक युद्ध चला
12 मई 1999 से 26 जुलाई 1999
04 परमवीर चक्र हीरो- संजय कुमार, नायब सूबेदार योगेन्दर सिंह यादव, कैप्टन मनोज कुमार पाण्डे, कैप्टन विक्रम बत्रा

बोफोर्स ने मोड़ दिया था युद्ध का रुख
वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध के समय जब भारतीय सेना मुश्किल हालातों का सामना करने को मजबूर थी, उस समय स्वीडन की बनी इसी तोप बोफोर्स ने युद्ध का रुख मोड़ा था। टोलोलिंग हिल पर जमे दुश्मन को खदेडऩे के लिए इसी तोप से गोले दागे गए थे।



पांच बंकर ध्वस्त कर मार गिराए 30 आतंककारी
कैप्टन उम्मेद सिंह राठौड़ (जोधपुर)

अखनूर की पहाडिय़ों से दुश्मन अंधाधुंध गोलीबारी कर रहे थे। युद्ध दिन-रात चल रहा था। हम पहाड़ी के निचले भाग में होने की वजह से दुश्मन को देख नहीं पा रहे थे लेकिन दुश्मन हमारी हर गतिविधि पर नजर रख रहा था। दुश्मन की पोस्ट (456/476) के आठ बंकर थे। मैंने अपने सीओ से बात की और टैंक भेदी गन को एक जगह सेट कराया। गन सेट करने के बाद चारों तरफ से फायर करवाया तो सभी आतंककारी फायर करने के लिए बंकरों में घुस गए। इसके बाद एक के बाद एक पांच बंकरों को नष्ट कर दिया, जिनमें करीब 30 आतंककारी मारे गए। युद्ध में हमने कई दुश्मन मार गिराए और नायक प्रह्लाद को खो दिया था। नागौर जिले का नायक प्रह्लाद सिंह राठौड़ पूरी बहादुरी के साथ दुश्मन से लड़ा था लेकिन सिर में गोली लगने से नायक शहीद हो गया। 25/26 जुलाई की रात को हमें युद्ध जीतने की सूचना मिली।

साढ़े 18 हजार फीट ऊंची पहाड़ी पर चढ़ लड़ा था युद्ध
ऑनरेरी लेफ्टीनेंट रामसिंह (राजसमंद)

12 जून 1999 की रात करीब साढ़े बारह बजे, बर्फबारी हो रही थी। हम 21 जवानों के साथ, साढ़े 18 हजार फीट ऊंची टोलोलिंग पहाड़ी पर चढ़े और भारत की ओर से पाकिस्तानी सेना पर हमला किया। रात के अंधेरे में हमें कुछ दिखाई नहीं दे रहा था।

ऊपर से पत्थर गिरने के कारण हम जख्मी हो रहे थे। यह मालूम नहीं चल पा रहा था कि पत्थर अपने आप गिर रहे हैं या पाक सैनिक गिरा रहे थे। हमारा पहला मिशन टोलोलिंग पहाड़ी पर चढऩा था। पहाड़ी के सपाट क्षेत्र में हम एक दूसरे के कंधों पर पैर रख चढ़ाई करते। जब हम आधी से ज्यादा टोलोलिंग पहाड़ी चढ़ गए तब एक सपाट पत्थर पर चढऩे के लिए दस जवान एक दूसरे के ऊपर चढ़े, लेकिन ऊंचाई ज्यादा होने के कारण ऊपर कोई आधार नहीं मिला और हम सभी 40 फीट नीचे आकर गिरे। इस दुर्घटना में मेरे तीन दांत टूट गए। हमने फिर हौसला जुटाया और फिर चढ़े।

5 गोलियां खाकर टोलोलिंग पर फहराया तिरंगा
नायब दिगेन्द्र सिंह (जयपुर)

कूपवाड़ा में हमारी बटालियन के पास मैसेज आया कि युद्ध छिड़ गया है। जनरल वेदप्रकाश से हमें टोलोलिंग हिल को मुक्त कराने टास्क मिला। पाकिस्तान की फौज ने हिल पर कब्जा कर लिया था। पाकिस्तानी फौजी लगातार फायरिंग कर रही थी। मैंने यूनिट कमांडर के सामने प्रस्ताव रखा कि पहाड़ी के पीछे रस्सी बांधकर ऊपर चढ़ा जाए। मैं दस साथियों के साथ पहाड़ी के पीछे पहुंचा और 14 घंटे में रस्सी बांधकर नीचे आया। पाकिस्तानी फौज का ध्यान भटकाने के लिए नीचे से हमारी चार्ली बटालियन फायरिंग कर रही थी। ऊपर पहुंचते ही हमने दुश्मन के बंकरों को उड़ाना शुरू कर दिया।
मेरे नौ साथी शहीद हो चुके थे। मैंने 11 बंकरों में 18 हथगोले फैंके और नष्ट किए। पाकिस्तानी मेजर से लड़ते हुए सीने में तीन और कमर के नीचे दो गोली लगी। देश के तिरंगे को सबसे पहले टोलालिंग हिल पर लहराया।



ऑपरेशन विजय सैन्य जीवन का ऐतिहासिक लम्हा
उगमसिंह (बाड़मेर)

मैं फरवरी 1990 को भारतीय सेना में भर्ती हुआ था। मेरी यूनिट 15 कुमाऊं रेजिमेण्ट (इन्दौर) थी। सेना में जाने के बाद देश के विभिन्न हिस्सों में पोस्टिंग रही। पूर्वोत्तर में उग्रवादियों व कश्मीर में आतंककारियों से कई बार आमना-सामना हुआ।
लेकिन मेरे सैन्य जीवन का ऐतिहासिक लम्हा करगिल युद्ध का ऑपरेशन विजय है। हमारी यूनिट ने उधमपुर जिले के मछल सेक्टर में मोर्चा संभाला। युद्ध के दौरान पूरे समय तक युद्ध के मैदान में रहे। कई आतंककारियों को मार गिराया। हमारे भी कुछ साथी शहीद हुए। लेकिन हमारा हौसला बुलंद था। अंतत: 26 जुलाई को हमने करगिल युद्ध जीत लिया। मुझे फख्र है कि मुझे देश की ओर से युद्ध मैदान में जौहर दिखाने का अवसर मिला। वर्ष 2006 में मैं सेना से सेवानिवृत्त हो गया।

7 दिन बर्फ पीकर दुश्मनों पर बरसाते रहे गोलियां
झाबरमल पूनिया (चूरू)

7 जुलाई को टोलोलिंग पहाड़ी पर दुश्मन सेना के साथ आमने-सामने की फायरिंग चल रही थी। पहाड़ी पर बर्फीली हवा चल रही थी और ऑक्सीजन की कमी थी। गोलीबारी से साथी जवान मारे जा रहे थे। पानी नहीं पहुंचने पर हमारी 17 जाट बटालियन के सैनिकों ने सात दिन तक बर्फ पीकर, बिस्किट व ड्राईफूड खाकर दुश्मनों से लोहा लिया। टोलोलिंग पहाड़ी पर विजय पाने तक हमारी बटालियन के करीब 20 सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गए थे। 50 सैनिक जख्मी हो गए थे। किसी के पैर, किसी की आंखे तो किसी के हाथ चले गए थे। बर्फ से शरीर काला हो गया था। पेट में गोली लगने के कारण मेरी हालत खराब हो रही थी लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी। बर्फ पर रेंगते हुए एक किमी दूर स्थित मेडिकल कैम्प पहुंचे। घायल होने के बाद जब कैंप में उनके परिजन लेने गए तो पहचान भी नहीं सके।
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