संजीव सिंह सूरत। “लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की हार नहीं
होती” हरिवंश राय बच्चन की यह पंक्तियां भरूच के सुधीर विटल राणा ने सच कर दिखाई।
सुधीर ने मेडिकल की पढ़ाई 40 साल में पूरी की। भले ही 60 साल के हो गए पर अब
इंटर्नशिप कर रहे हैं। उन्होंने पढ़ाई जारी रखने के लिए दक्षिण गुजरात वीर नर्मद
यूनिवर्सिटी तथा कॉलेज डीन से विशेष अनुमति ली।
पहले चार साल फेल
दरअसल
सुधीर ने वर्ष 1974 में सूरत मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस में दाखिला लिया। दाखिले के
कुछ महीने बाद ही बीमार हो गए। हॉस्टल में देखभाल कौन करता, लिहाजा घर चले जाना
पड़ा। इससे पढ़ाई बाधित हुई। फिर वार्षिक परीक्षा में शामिल होने सूरत लौटे लेकि न
फेल हो गए। 1975 में शुरू फेल होने का सिलसिला चार साल तक चला।
भटकाव जारी
रहा
इसके बाद भी वे किसी न किसी विषय में फेल होते रहे। वे फिर विचलित हुए और
साधना की गरज से इधर-उधर भटकते रहे पर पढ़ाई नहीं छोड़ी। इधर, 1989 में पिता की
मृत्यु हो गई और छह बहनों व दो छोटे भाइयों की जिम्मेदारी उन पर आ गई। 2008 में
मझले भाई क भी मौत हो गई। इससे पढ़ाई फि र बाधित हुई। आखिर वर्ष 2014 में
एमबीबीएस उत्तीर्ण कर ली।
साथियों में अंकल
सूरत से इटर्नशिप कर रहे
सुधीर हॉस्टल में रहते हंै। साथी अंकल या भइया कह बुलाते हैं। लेकिन किसी ने उनका
मजाक नहीं उड़ाया। क्लास में साथियों का सहयोग मिला। सुधीर ने बताया, कोई चैप्टर
समझ नहीं आता तो छात्रों से पूछने में संकोच नहीं करता। प्रोफेसरों के अनुसार, कुछ
विषय में पास और कुछ में फेल होने के बाद छात्रों को विषय क्लियर करने का मौका
मिलता है।
अध्यात्म की ओर झुके
इससे सुधीर के मन में परीक्षा का खौफ बैठ
गया। वे अध्यात्म की तरफ झुकने लगे। कई साधुओं से मिले। एक साधु ने अधूरी इच्छाओं
को पूरा करने को प्रेरित किया। सुधीर कॉलेज लौटे। 78 में फर्स्ट ईयर किया।
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