जानें अपने वो अधिकार जिनके बारे में आप अब तक हैं अनजान
Published: Dec 12, 2016 03:06:00 pm
हर शख्स जब इस दुनिया में जन्म लेता है तो उसके साथ उसके कुछ अधिकार भी वजूद में आते हैं। कुछ अधिकार हमें परिवार देता है तो कुछ समाज, कुछ अधिकार हमारा मुल्क देता है तो कुछ दुनिया….
world Human rights day: know your unknown rights
हर शख्स जब इस दुनिया में जन्म लेता है तो उसके साथ उसके कुछ अधिकार भी वजूद में आते हैं। कुछ अधिकार हमें परिवार देता है तो कुछ समाज, कुछ अधिकार हमारा मुल्क देता है तो कुछ दुनिया। लेकिन आज भी दुनिया में बहुत से लोग ऐसे हैं जो या तो अपने अधिकारों से अंजान है या उनके अधिकारों का हनन किया जा रहा है। कभी जात के नाम पर तो कभी धर्म के नाम पर, कभी लिंग भेदभाव के जरिए तो कभी रंग भेद नीति को अपनाकर लोगों के इन अधिकारों को कुचला जा रहा है।
संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने 10 दिसम्बर, 1948 को सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषणापत्र को अधिकारिक मान्यता प्रदान की थी। तब से यह दिन इसी नाम से याद किया जाने लगा। किसी भी इंसान की जिन्दगी, आजादी, बराबरी और सम्मान का अधिकार का नाम है मानवाधिकार। भारतीय संविधान इस अधिकार की न सिर्फ गारंटी देता है, बल्कि इसे तोडऩे वाले को अदालत सजा देती है।
मानवाधिकार के अंतर्गत कुछ अधिकार हमें दिए गए हैं, आइये जानते हैं उनके बारे में-
“कोई भी हॉटेल चाहे वो 5 स्टार ही क्यों ना हो, आप फ्री में पानी पी सकते है और वाश रूम इस्तमाल कर सकते हैं”-
इंडियन सीरीज एक्ट, 1887 के अनुसार आप देश के किसी भी हॉटेल में जाकर पानी मांगकर पी सकते है और उस हॉटल का वाश रूम भी इस्तमाल कर सकते है। हॉटेल छोटा हो या 5 स्टार, वो आपको रोक नही सकते। अगर हॉटेल का मालिक या कोई कर्मचारी आपको पानी पिलाने से या वाश रूम इस्तमाल करने से रोकता है तो आप उन पर कारवाई कर सकते है। आपकी शिकायत से उस हॉटेल का लायसेंस रद्द हो सकता है।
भोजन का अधिकार-
भोजन का अधिकार एक व्यक्ति का बुनियादी अधिकार है। केवल अनाज से हमारी थाली पूरी नहीं बनती है। अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए हमें विविधतापूर्ण भोजन (अनाज, दालें, खाने का तेल, सब्जियां, फल, अंडे, दूध, फलियाँ, गुड़ और कंदमूलों) की हर रोज़ जरूरत होती है ताकि कार्बोहायड्रेट, वसा, प्रोटीन, सुक्ष पोषक तत्वों की जरूरत को पूरा किया जा सके। भोजन का अधिकार सुनिश्चित करने में सरकार की सीधी भूमिका है क्योंकि अधिकारों का संरक्षण नीति बना कर ही किया जाता है और सरकार ही नीति बनाने की जिम्मेदारी निभाती है।
शिक्षा का अधिकार-
बच्चों के लिए मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिनियम 1 अप्रैल 2010 को पूर्ण रूप से देश में लागू हुआ। इस अधिनियम के तहत छह से लेकर चौदह वर्ष के सभी बच्चों के लिए शिक्षा को पूर्णतः मुफ्त एवं अनिवार्य कर दिया गया। अब यह केंद्र तथा राज्यों के लिए कानूनी बाध्यता है कि मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा सभी को सुलभ हो सके।शिक्षा किसी भी व्यक्ति एवं समाज के समग्र विकास तथा सशक्तीकरण के लिए आधारभूत मानव मौलिक अधिकार है।
बाल शोषण, उत्पीडऩ पर रोक-
बाल अधिकार संरक्षण के लिए राष्ट्रीय आयोग (एनसीपीसीआर) सार्वभौमिकता और बाल अधिकारों की पवित्रता के सिद्धांत पर जोर देता है और देश की नीतियों संबंधित सभी बच्चे में तात्कालिकता के स्वर को पहचानता है। आयोग के लिए, 0 से 18 वर्ष आयु समूह के सभी बच्चों की सुरक्षा को समान महत्व का है। आयोग के लिए, बच्चे को भी आनंद मिलता है हर सही पारस्परिक रूप से मजबूत और दूसरे पर आश्रित के रूप में देखा जाता है।
महिला हिंसा और असमानता के अधिकार-
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14,15 और 16 में देश के प्रत्येक नागरिक को समानता का अधिकार दिया गया है। समानता का मतलब ‘समानता‘, इसमें किसी प्रकार का लिंग भेद नहीं है। समानता , स्वतंत्रता और न्याय का अधिकार महिला-पुरुष दोनों को समान रूप से दिया गया है। शारीरिक और मानसिक तौर पर नर-नारी में किसी प्रकार का भेदभाव असंवैधानिक माना गया है। हालांकि आवश्यकता महसूस होने पर महिलाओं और पुरुषों का वर्गीकरण किया जा सकता है। अनुच्छेद-15 में यह प्रावधान किया गया है कि स्वतंत्रता -समानता और न्याय के साथ-साथ के महिलाओं/लड़कियों की सुरक्षा और संरक्षण का काम भी सरकार का कर्तव्य है। जैसे बिहार में लड़कियों के लिए साइकिल और पोषक की योजना, मध्यप्रदेश में लड़कियों के लिए ‘ लाड़ली लक्ष्मी’ योजना , दिल्ली में मेट्रो में महिलाओं के लिए रिजर्व कोच की व्यवस्था आदि।
– स्वतंत्रता और समानता का अधिकार
अनुच्छेद-19 में महिलाओं को यह अधिकार दिया गया है कि वह देश के किसी भी हिस्से में नागरिक की हैसियत से स्वतंत्रता के साथ आ-जा सकती है, रह सकती है। व्यवसाय का चुनाव भी स्वतंत्र रूप से कर सकती है। महिला होने के कारण किसी भी कार्य के लिए उनको मना करना उनके मौलिक अधिकार का हनन होगा और ऐसा होने पर वे कानून की मदद ले सकती है।
– नारी की गरिमा का अधिकार
अनुच्छेद-23 नारी की गरिमा की रक्षा करते हुए उनको शोषण मुक्त जीवन जीने का अधिकार देता है। महिलाओं की खरीद-बिक्री ,वेश्यावृत्ति के धंधे में जबरदस्ती लाना, भीख मांगने पर मजबूर करना आदि दण्डनीय अपराध है। ऐसा कराने वालों के लिए भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत सजा का प्रावधान है। संसद ने अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम,1956 पारित किया है। भारतीय दंड संहिता की धारा-361, 363, 366, 367, 370, 372, 373 के अनुसार ऐसे अपराधी को सात साल से लेकर 10 साल तक की कैद और जुर्माने की सजा भुगतनी पड़ सकती है। अनुच्छेद-24 के अनुसार 14 साल से कम उम्र के लड़के या लड़कियों से काम करवाना बाल-अपराध है।
-घरेलू हिंसा का कानून
घरेलु हिंसा अधिनियम, 2005 जिसके तहत वे सभी महिलाएं जिनके साथ किसी भी तरह घरेलु हिंसा की जाती है, उनको प्रताड़ित किया जाता है, वे सभी पुलिस थाने जाकर एफआईआर दर्ज करा सकती है, और पुलिसकर्मी बिना समय गवाएं प्रतिक्रिया करेंगे।
-शाम के वक्त महिलाओं की गिरफ्तारी नहीं हो सकती
कोड ऑफ़ क्रिमिनल प्रोसीजर, सेक्शन 46 के तहत शाम 6 बजे के बाद और सुबह 6 के पहले भारतीय पुलिस किसी भी महिला को गिरफ्तार नहीं कर सकती, फिर चाहे गुनाह कितना भी संगीन क्यों ना हो. अगर पुलिस ऐसा करते हुए पाई जाती है तो गिरफ्तार करने वाले पुलिस अधिकारी के खिलाफ शिकायत (मामला) दर्ज की जा सकती है. इससे उस पुलिस अधिकारी की नौकरी खतरे में आ सकती है.
– दहेज निवारक कानून
दहेज लेना ही नहीं देना भी अपराध हैं। अगर वधु पक्ष के लोग दहेज लेनी के आरोप में वर पक्ष को कानून सजा दिलवा सकते हैं तो वर पक्ष भी इस कानून के ही तहत वधु पक्ष को दहेज देने के जुर्म मे सजा करवा सकता हैं। 1961 से लागू इस कानून के तहत बधू को दहेज के नाम पर प्रताड़ित करना भी संगीन जुर्म है।
गर्भवती महिलाओं को नौकरी से नहीं निकला जा सकता-
मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट 1961 के मुताबिक़ गर्भवती महिलाओं को अचानक नौकरी से नहीं निकाला जा सकता. मालिक को पहले तीन महीने की नोटिस देनी होगी और प्रेगनेंसी के दौरान लगने वाले खर्चे का कुछ हिस्सा देना होगा. अगर वो ऐसा नहीं करता है तो उसके खिलाफ सरकारी रोज़गार संघटना में शिकायत कराई जा सकती है. इस शिकायत से कंपनी बंद हो सकती है या कंपनी को जुर्माना भरना पड़ सकता है।
पुलिस अफसर आपकी शिकायत लिखने से मना नहीं कर सकता-
आईपीसी के सेक्शन 166ए के अनुसार कोई भी पुलिस अधिकारी आपकी कोई भी शिकायत दर्ज करने से इंकार नही कर सकता. अगर वो ऐसा करता है तो उसके खिलाफ वरिष्ठ पुलिस दफ्तर में शिकायत दर्ज कराई जा सकती है. अगर वो पुलिस अफसर दोषी पाया जाता है तो उसे कम से कम 6 महीने से लेकर 1 साल तक की जेल हो सकती है या फिर उसे अपनी नौकरी गवानी पड़ सकती है।