नई दिल्ली। गुरदासपुर में जब आतंकी हमला हुआ, तब पंजाब पुलिस की स्पेशल विपंस एंड टैक्टिक्स यूनिट (स्वात) के जवान बुलेट प्रूफ जैकेट नहीं पहने थे। बलजीत सिंह बिना हेलमेट और आर्मर जैकेट के ही आतंकियों से लोहा ले रहे थे और शहीद हो गए। 2001 में संसद और 2008 में मुंबई में हुए आतंकी हमले के बाद पुलिस और सुरक्षा जवानों को आधुनिक बनाने की कोशिश तो हुई, पर ये कोशिश आज तक पूरी नहीं हो पाई। इस मेड इन इंडिया प्रोडक्ट की ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी जैसे देशोे की पुलिस प्रयोग कर रही है, पर हमारे जवानों के लिए ये कवच आज भी दूर की कौड़ी बने हुए हैं। इसीलिए एक शताब्दी बाद भी हमारे पुलिसकर्मी प्रथम विश्व युद्ध के जवानों से भी ज्यादा असुरक्षित हैं।
अमरीका भी कर रहा प्रयोगये सच है कि आज भी भारत बॉडी आर्मर टैक्नोलॉजी में दुनिया में नंबर वन है। भारत में बनी बुलेट प्रूफ जैकेट और हेलमेट को दुनिया के 100 देशों की 230 सेनाएं उपयोग कर रही हैं। ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, स्पेन जैसे देशों की सेनाएं तो जापान से लेकर अमरीका तक की पुलिस मेड इन इंडिया आर्मर का ही उपयोग करती है।
दुनिया में 15 लाख जवानों का सुरक्षा कवच विभिन्न देशों को बॉडी आर्मर की सप्लाई कानपुर स्थित एमकेयू प्राइवेट लि. करती है। कंपनी की वेबसाइट के मुताबिक अभी दुनियाभर में 15 लाख जवान उसके बनाए सुरक्षा कवच पहनते हैं।
नाटो सहित जर्मनी को भी निर्यातनाटो सेना भी एमकेयू की बनाई हुई बुलेट प्रूफ जैकेट इस्तेमाल करती है। एमकेयू 1993 से नाटो को बॉडी आर्मर उपलब्ध करा रही है। नाटो बुलेट प्रूफ जैकेट सहित दस्ताने, जूते और बेल्ट भी खरीदता है। इसके अतिरिक्त एमकेयू जर्मन स्थित फेडरल ऑफिस ऑफ बंदेसवेह्र इक्विपमेंट , इन्फोर्मेशन टेक्नोलॉजी एंड सर्विस सुपोर्ट (बीएएआईएलबीडब्ल्यू) नामक संस्था जो जर्मनी की सुरक्षा मंत्रालय को सुरक्षा संबंधी तकनीकी सहायता मौजूद करवाती है, को भी बॉडी आर्मर निर्यात करती है।
इसलिए नहीं मिल रही भारतीय जवानों को एमकेयू के चेयरमैन मनोज गुप्ता बताते हैं कि देश में पुलिस को 50 हजार बुलेट प्रूफ किट की जरूरत है, पर राज्य अपने कानूनों के कारण इस पर फैसला नहीं ले रहे हैं। वे टेंडर के जरिए ही सप्लाई लेना चाहते हैं, जिसकी प्रक्रिया बहुत लंबी चलती है। हमारी पुलिस फोर्स और आरक्षित पुलिस दंगा निरोधी है न कि आतंकवाद निरोधी। झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे नक्सल ग्रस्त राज्यों में पुलिस का सामना नकसलियों से होता है जिसमें हर साल कई जवान मारे जाते हैं।