जिंदगी के लिए लड़ रहीं तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे जयललिता का बचपन तो आराम से गुजरा, लेकिन राजनीति में उनका पदार्पण संघर्ष से भरा रहा। 24 दिसंबर, 1987 को मधुर गोपालन रामचंद्रन यानी एमजीआर की मौत की बाद पूरी तरह से एआईएडीएमके पर नियंत्रण हासिल करना हो या व्यक्तिगत जीवन। नेता प्रतिपक्ष की भूमिका हो या मुख्यमंत्री के रूप में शासन। वह हमेशा से सख्त तेवर वाली महिला नजर आईं, लेकिन यह भी 100 प्रतिशत सही नहीं हैं।
कैसी हैं जया? उनके वकतव्यों के हवाले एक बानगी…. मैसूर राज्य के सर्जन थे दादा, नाना और नानी के पास पली-बढ़ीं जयललिता का जन्म ‘अय्यर’ परिवार में तत्कालीन मैसूर राज्य (अब कर्नाटक) के मांडया जिले के पांडवपुरा तालुक के मेलुरकोट गांव में हुआ। दादा एक सर्जन थे। महज 2 साल की उम्र में पिता जयराम, उन्हें मां संध्या के साथ अकेला छोड़ कर चल बसे थे।
पिता के निधन बाद मां बेंगलूरु लेकर आ गईं बेंगलूरु में जयललिता के नाना-नानी रहते थे। यहीं उन्होंने मां के कहने पर तमिल सिनेमा में काम करना शुरू किया और अपना फिल्मी नाम ‘संध्या’ रखा। स्कूल पढ़ाई के दौरान 1961 में उन्होंने ‘एपिसल’ नाम की एक अंग्रेजी फिल्म में काम किया। 15 साल की उम्र में वे कन्नड फिल्मों में मुख्य किरदार निभाने लगीं। जयललिता की शुरुआती शिक्षा पहले बेंगलूरु और बाद में चेन्नई में हुई। चेन्नई के स्टेला मारिस कॉलेज में पढऩे की बजाय उन्होंने सरकारी वजीफे से आगे की पढ़ाई की।
दो हिंदी फिल्मों में भी किया काम फिल्मी दुनिया में जयललिता की पहचान तमिल सिनेमा से है। हालांकि यह बात कम लोगों को पता है कि तमिल फिल्मों में पदार्पण से पहले जयललिता एक अंग्रेजी, एक हिंदी, चार कन्नड़ और एक तेलुगु फिल्म में अभिनय कर चुकी थीं। हिंदी में उन्होंने अभिनय की शुरुआत बतौर बाल अभिनेता 1962 में आई मनमौजी से की। किशोर कुमार- साधना अभिनीत इस फिल्म में जयललिता ने एक गीत में डांस सिक्वेंस के दौरान भगवान कृष्ण की भूमिका अदा की। इसके बाद उन्होंने 1968 में आई धर्मेंद्र तनुजा की इज्जत में झुमकी का अहम किरदार निभाया। वे दक्षिण भारत की पहली ऐसी अभिनेत्री थीं जिन्होंने स्कर्ट पहनकर फिल्मों में भूमिका निभाई थी।
यह इंटरव्यू देकर कोई खुशी नहीं हुई अपने कड़े तेवर के लिए पहचानी जाने वाली जे जयललिता ने पत्रकार करण थापर से एक इंटरव्यू कहा कि उन्हें यह इंटरव्यू देकर कोई खुशी नहीं हुई। ‘नमस्ते’। वे करण के आभार का जवाब दे रही थीं। करण बार-बार अंधविश्वासी होने पर सवाल कर रहे थे।
निबंध प्रतियोगिता जीतना बड़ी जीत जयललिता ने एक अन्य इंटरव्यू में कहा कि अंग्रेजी में निबंध लेखन प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार जीतना मेरे लिए जीवन की सबसे बड़ी जीत थी। मैं दस वर्ष की थी। मां कहीं गई हुईं थी, उन्हें अपना इनाम दिखाने के लिए मैं आधी रात के बाद तक जगती रही।
सच्चा प्यार जैसा कुछ नहीं होता सिमी ग्रेवाल ने अपने शो में जब जयललिता से पूछा कि जीवन में कभी निस्वार्थ प्यार मिला? जवाब में जया बोलीं-जीवन में सच्चे प्यार जैसा कुछ नहीं होता। न ही मुझे मिला। यह निस्वार्थ प्यार केवल किताबों, उपन्यास, फिल्म, कविताओंं में मिलता है।
एमजीआर मेरे लिए सब कुछ थे एमजीआर के साथ 28 फिल्में करने वाली जयललिता ने एक इंटरव्यू में कहा किउनके राजनीतिक गुरु एमजीआर उनके जीवन में सबकुछ थे। मां के देहांत के बाद उन्होंने मेरा जीवन संभाला। उन्होंने कहा कि एमजीआर से हर कोई प्यार करने लगता था। वो थे ही ऐसे।
सीएम की छह शपथ 24 जुलाई, 1991 – पूर्व पीएम राजीव गांधी की हत्या के बाद उपजी सहानुभूति वोटों पर जयललिता ने 225 सीट जीत लीं। शपथग्रहण के बाद कई नेताओं ने पैर छुए।
14 मई, 2001- पार्टी ने 132 सीटें जीतीं। तर्क दिया गया कि लोगों ने उन्हें सीएम बनने के लिए जनमत दिया है।
02 मार्च, 2002- हाईकोर्ट ने उन्हें आय से अधिक मामले में बरी किया। बड़े अंतर से चुनाव जीतीं।
16 मई, 2011- जया की एआईएडीएमके ने 150 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत हासिल किया।
23 मई, 2015- लोकसभा चुनाव 2014 के कुछ महीने बाद ही जया फिर मुसीबत में घिर गई।
23 मई 2016 – उपचुनाव जीतकर जयललिता ने छठी बार सीएम की कुर्सी संभाली।
एमजी रामचंद्रन के साथ राजनीतिक करियर शुरू किया 1965 से 1972 के दौर में उन्होंने अधिकतर फिल्में एमजी रामचंद्रन के साथ कीं।
1982 में एमजी रामचंद्रन के साथ राजनीतिक करियर की शुरुआत की।
1984 से 1989 में तमिलनाडु से राज्यसभा के लिए राज्य का प्रतिनिधित्व किया।
1984 में ब्रेन स्ट्रोक के चलते रामचंद्रन अक्षम हो गए तब जया ने मुख्यमंत्री की गद्दी संभालनी चाही, लेकिन रामचंद्रन ने उन्हें पार्टी के उप नेता पद से भी हटा दिया।
1987 में रामचंद्रन के निधन के बाद खुद को राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।
1989 में उनकी पार्टी ने राज्य विधानसभा में 27 सीटें जीतीं और वे तामिलनाडु की पहली निर्वाचित नेता प्रतिपक्ष बनीं।
1991 से 1996 तक राज्य की पहली निर्वाचित मुख्यमंत्री और राज्य की सबसे कम उम्र की मुख्यमंत्री रहीं।
1996 में पार्टी चुनाव हार गई। खुद भी चुनाव हार गईं। इसके बाद उनके मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के कई मामले उजागर हुए।
1997 में उनके जीवन पर तमिल फिल्म ‘इरूवर’ आई, जिसमें जयललिता की भूमिका ऐश्वर्या राय ने निभाई थी।
2001 में फिर सत्ता में वापसी की। विधानसभा में नहीं चुनी गईं थीं, लेकिन बतौर मुख्यमंत्री कुर्सी संभाली।
2011 में 11 दलों के गठबंधन को बहुमत मिलने पर तीसरी बार मुख्यमंत्री बनीं।