किसान दिवस: रोज नई योजनाएं लेकिन देश का पेट भरने वाला किसान आज भी है भूखा
अपनी दो बीघा ज़मीन में पड़ी सैकड़ों दरारों से आती धरती की चीख पुकार उसकी रातों की नींद उड़ा देती है। हर रात वो अपनी तकलीफें भुला कर उस ज़मीन के लिए दुआ मांगने को हाथ उठाता है। एक किसान की ज़िन्दगी का उसूल बस मेहनत करना होता है….
•Dec 23, 2016 / 12:47 pm•
राहुल
New initiatives are taken everyday yet people who feed the nation are still living without food
अपनी दो बीघा ज़मीन में पड़ी सैकड़ों दरारों से आती धरती की चीख पुकार उसकी रातों की नींद उड़ा देती है। हर रात वो अपनी तकलीफें भुला कर उस ज़मीन के लिए दुआ मांगने को हाथ उठाता है। एक किसान की ज़िन्दगी का उसूल बस मेहनत करना होता है और जिसका औज़ार, हथियार, काम, नाम, धर्म, जिसका अन्नदाता, जीवनदाता बस वो ज़मीन का टुकड़ा है जो उसके हिस्से का है।
उसी ज़मीन को बारिश की प्यास लिए दिन प्रति दिन और सूखते देखकर, आप ही सोचिये उसके लिए अपने गले से नीचे पानी का एक भी घूँट उतारना कितना मुश्किल होता होगा। हर बार खिड़की से बाहर देखते ही नज़रें हमेशा आसमान की ओर फिर जाती हैं और कोई अनकहा सा गणित करती वो आँखें बादलों के बरसने की उम्मीद में हर बार दुआ करती होंगी।
जब बादल उसकी मुसीबतों को बढ़ाने के लिए अठखेलियाँ करते हैं, पल भर में गहरे काला रंग लेकर आते और बिना बरसे हवा के झोंके के साथ उड़ जाते तो उसकी आँखों के समंदर को बहने से कौन रोकता होगा। तब उस पल में वो सोचता है की काश ये समंदर इतना गहरा होता की इस धरती की प्यास बुझा पाता। वो जब कहीं कहीं से फटी ज़मीन पर चंद कोपले ही उग पाती हैं तो वो किस उम्मीद में उस आधी बंजर ज़मीन में फसलों के लहलहाने के ख्वाब देख पाता होगा।
इनसब बातों को आप एक तर्क और इमोशन्स मान सकते हैं लेकिन ये उस किसान के लिए एक सच्चाई है।
खैर! आज हम आपको किसानों से जुड़े कुछ तथ्य और सरकारी योजनाओं के बारे बता रहे हैं, क्योंकि आज चौधरी चरण सिंह की जयंती है. चौधरी चरण सिंह भारत के पांचवे प्रधानमंत्री थे और उन्हें किसानों का मसीहा माना जाता था। उनकी जयंती पर आज ही के दिन किसान दिवस भी मनाया जाता है।
भारत में अन्न दाता कहे जाने वाले किसान हमेशा से ही हाशिये पर रहे हैं। जिसका अंदाजा आप इस बात से ही लगा सकते हैं कि सातवें वेतन आयोग की बढ़ोतरी को नाकाफ़ी बताते हुए नाराज 52 लाख केंद्रीय कर्मचारी हड़ताल पर चले गए थे, उधर, नाराजगी और मायूसी देश के करोड़ों किसानों में भी है, उत्तर प्रदेश में छोटी जोत का किसान महीने का 1611 रुपए ही कमा पाता है। इस हिसाब से केंद्रीय सरकार के चपरासी की सैलरी भी किसान की आय से करीब 13 गुना ज्यादा है।
“देश की सरकारें हमेशा से ही उद्योगपतियों और सर्विस सेक्टर के साथ खड़ी नजर आती हैं। सर्विस सेक्टर को अच्छी सैलरी के साथ त्यौहारी और बोनस मिलता है। कारोबारियों को जमीन, रजिस्ट्री और तमाम करों में छूट दी जाती है। लेकिन किसान को क्या मिलता है।” देश में 14 करोड़ से ज्यादा किसान हैं। जबकि 70 फीसदी से ज्यादा आबादी आज भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर हैं।
एन.सी.आर.बी. 2014 के रिपोर्ट में आत्महत्या ग्रस्त पीडितों को सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति के आधार पर विभाजित किया गया है। आर्थिक स्थिति के बारे में दी जानकारी के अनुसार कुल आत्महत्याओं में 91,820 (69.7%) पीडित परिवार की आय 1 लाख से कम रही है और 35,405 (26.7%) पीडित परिवार की आय 1 से 5 लाख के बीच रही है। 785 (0.6%) पीडित परिवार 10 लाख से ज्यादा आय प्राप्त करने वाले हैं।
पेशा आधारित आत्महत्या में देश के कुल आत्महत्याओं में 8.1 % आत्महत्याऐं पेशावर/वेतनभोगी/ पेन्शनर लोगों की हैं। बाकी सभी आत्महत्याऐं किसान, खेती मजदूर, गृहीणी, विद्यार्थी, बेरोजगार, स्वयंरोजगार, दैनिक मजदूर व अन्य की हैं।
एन.सी.आर.बी. 2014 की रिपोर्ट में गाँव और नगरों में हुई आत्महत्याओं को स्वतंत्र रुप से नहीं दर्शाया गया है। साथ ही किसान परिवार में हुई आत्महत्या को भी अलग से उल्लेखित नहीं किया है लेकिन यह अनुमान किया जा सकता है। 2011 के जनगनना के अनुसार 68.8 % जनता ग्रामीण भारत में बसती है और इसमें अधिकांश लोग खेती या खेती पूरक रोजगार पर निर्भर है। इसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि 1,31,666 68.8 % ग्रामीण भारत की जनता बराबर 90586 आत्महत्याऐं ग्रामीण भारत में हो रही हैं। और 41,080 आत्महत्याऐं नगरों में हो रही हैं। ग्रामीण भारत में प्रतिवर्ष 90,586 आत्महत्याऐं हो रही हैं। प्रतिदिन 248 आत्महत्याऐं और प्रतिघंटा 10 आत्महत्याऐं हो रही हैं।
एक व्यक्ति आत्महत्या करता है तो वह भी चिंता का विषय है। लेकिन हर साल लगातार हजारों किसानों की आत्महत्याऐं सरकार के लिये चिंता का विषय नहीं हैं। सरकारें किसानों की आत्महत्याओं का सच छुपाने का जान बूझकर प्रयत्न करती हैं। उसके लिये वह नये नये तरीके ढूंढ़ती है। एन.सी.आर.बी.की रिपोर्ट के अनुसार भारत में सन 2014 में 12360 किसानों ने आत्महत्या की है। किसान की सदोष व्याख्या करके आत्महत्याऐं कम दिखाने का प्रयास किया जाता है। कई राज्यों में किसान आत्महत्या को अन्य में वर्गीकृत किया जाता है।
वैसे देखा जाए तो साल 2014 के बाद केंद्र में आई मोदी सरकार ने किसानों की समृद्धि के लिए कुछ सराहनीय कदम उठाए हैं। कई किसान परियोजनाओं का अनवारण किया गया है।
मोदी सरकार की किसान योजनाएं
कृषि बीमा योजना-
– इसके तहत किसान अपनी फसल का बीमा करवा सकते हैं। यदि मौमस के प्रकोप से या किसी अन्य कारण से फसल को नुकसान पहुंचता है तो यह योजना किसानों की मदद करती है।
दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना-
– भारत के गांवों को अबाध बिजली आपूर्ति लक्ष्य करते हुए इस योजना की शुरुआत की गई है।
– सरकार गांवों तक 24×7 बिजली पहुंचाने के लिए इस योजना के तहत 75 हजार 600 करोड़ रुपये खर्च करने वाली है।
– यह योजना राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना के रिप्लेसमेंट के तौर पर लाई गई।
सांसद आदर्श ग्राम योजना-
– प्रधानमंत्री मोदी ने 11 अक्टूबर 2014 को सांसद आदर्श ग्राम योजना की शुरुआत की।
– इस योजना के मुताबिक, हर सांसद को साल 2019 तक तीन गांवों को विकसित करना होगा।
– इसकी थ्योरी यह है कि भारत के गांवों को भौतिक और संस्थागत बुनियादी ढांचे के साथ पूरी तरह विकसित किया जा सके।
– इस योजना के लिए कुछ दिशा-निर्देश भी हैं, जिन्हें ग्रामीण विकास विभाग ने तैयार किया है।
– प्रधानमंत्री ने 11 अक्टूबर 2014 को इन दिशा निर्देर्शों को जारी किया और सभी सांसदों से अपील की कि वे 2016 तक अपने संसदीय क्षेत्र में एक मॉडल गांव और 2019 तक दो और गांव तैयार करें।
मुद्रा बैंक योजना-
इस योजना का नाम प्रधानमंत्री मुद्रा बैंक योजना है। इस योजना की शुरुआत 8 अप्रैल 2015 को की गई। मुद्रा बैंक का मतलब है माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट्स रिफाइनेंस एजेंसी।
इस योजना का उद्देश्य गैर छोटे उद्यमियों को कम ब्याज दर पर 50 हजार से 10 लाख रुपये तक का कर्ज देने का है। ताकि बेरोजगारी को कम किया जा सके।
खास बात यह है कि मुद्रा बैंक योजना का लाभ किसानों को भी मिल पाएगा। दरअसल, सरकार ने उन किसानों को इस योजना से फायदा देने का फैसला किया है, जिनकी फसलें बेमौसम बारिश से खराब होती है। सरकार की कोशिश गैर कृषि कार्यों को बढ़ावा देने की होगी।
और आज किसान दिवस पर किसानों के लिए 2 मोबाइल एप्लीकेशन को भी शुरू किया गया है जिनके जरिये किसानों को काफी रहत मिलेगी ये मोबाइल एप्लीकेशन हैं, क्रॉप इंस्योरेंस और एग्रीकल्चर मार्किट।
लेकिन देखा जाए तो भारत में योजनाएं तो लागू कर दी जाती हैं पर उन्हें अमल में नही लाया जाता। आजादी के बाद से अब तक किसानों की हालात जस के तस है और सबसे बड़ी दुविधा है किसान आत्महत्याएं।
किसान की औसत कमाई आज भी इस बात की तस्दीक करती है कि आज़ादी के बाद देश तो बदला है लेकिन देश को खिलाने वाला और देश को बदलने वाला किसान आज भी भूखा ही है। और जब तक सरकारें किसानों के लिए नीति निर्धारण नहीं करतीं तब तक किसान यूं ही आत्महत्या करता रहेगा और हम बस यूँ ही देखते रहेंगे।
भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का जय जवान जय किसान का नारा भारत की इन राजनीति के पशोपेश कहीं खो गया है। जिसे बुलंद करने की बहुत आवस्यकता है।
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