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दुनिया यूं देती है आतंकवाद को मुंह तोड़ जवाब

Published: Sep 19, 2016 08:59:00 am

Submitted by:

Rakesh Mishra

उम्मीद से लबरेज सच्चाई है कि जिन मुल्कों ने मुंह तोड़ जवाबी कार्रवाई की
है, उनकी तरफ आतंकी निगाहें उठने की आवृत्ति न के बराबर रही है

9-11 attack

9-11 attack

नई दिल्ली। वर्ल्ड ट्रेड सेंटर से टकराए विमान दुनिया के खिलाफ आतंकी युद्ध की घोषणा थे। बीते 16 साल की इस वैश्विक लड़ाई में साफ हो चुका है कि आतंकी सॉफ्ट टारगेट पर हमला करते हैं। भारत में आतंकवाद की बढ़ती घटनाओं के पीछे भी कमजोर जवाबी रणनीति बड़ी वजह है। उम्मीद से लबरेज सच्चाई है कि जिन मुल्कों ने मुंह तोड़ जवाबी कार्रवाई की है, उनकी तरफ आतंकी निगाहें उठने की आवृत्ति न के बराबर रही है।

हमला नहीं, आलोचना सहेंगे
9/11 हमले के बाद अमरीका ने मुंहतोड़ जवाब देने की रणनीति अपनाई। बुश प्रशासन ने अंतरराष्ट्रीय नियम ताक पर रखकर एक महीने के भीतर 7 अक्टूबर 2011 को अफगानिस्तान पर हमला किया। पहला निशाना होने के बावजूद आतंकी अमरीका में फिर बड़ा हमला करने में नाकाम रहे। सख्त आक्रामक नीति इसकी वजह है।

मजबूत सुरक्षा, पहले मारो
7 जुलाई 2005 को आत्मघाती हमलों से लंदन दहला था। फिर ब्रिटेन ने सुरक्षा घेरा मजबूत बनाने के साथ पहले मारो की रणनीति अपनाई। दुनियाभर में आतंक के खिलाफ लड़ाई में ब्रिटेन अव्वल मोर्चे पर रहा। हमला होने से पहले आतंक की जड़ पर चोट की नीति कारगर रही। 2007 के ग्लासगो हमले के बाद ब्रिटेन महफूज ही रहा है।

कोई समझौता नहीं

रूस की रणनीति अलहदा है। 2002 की मास्को थियेटर की घटना उदाहरण है। चेचन उग्रवादियों ने 130 लोगों को बंधक बनाया। कोई समझौता न करते हुए सभी 40 उग्रवादी मार गिराये। इस दौरान एक गैस रिसी और सभी बंधक भी दम घुटने से मारे गए। 2003 और 2004 में बड़े हमले हुए, लेकिन तब फिर शांति कायम है। नीति वही, समझौता नहीं।

चौकस व शक की नजर
नवंबर 2015 के पेरिस हमले में 140 लोग मारे गए। फ्रांस ने इमरजैंसी लागू कर हर जगह तलाशी ली। अंतरराष्ट्रीय उड़ानें बंद कर हर स्थानीय और बाहरी रास्ते पर सख्त पहरा लगाया। फिलवक्त फ्रांस पर सबसे ज्यादा आतंकी खतरा है, लेकिन तब से महज एक ही आतंकी घटना नाइस में घटी।

सख्त कानून निगहबान
आतंककारी हमलों को लेकर कनाडा की रणनीति साफ है। 2014 के संसद हमले के बाद कनाडा ने कानून को तो सख्त किया ही है। लगातार संदिग्धों पर कड़ी नजर रखने की रणनीति भी अपनाई है। संसद हमले के बाद कनाडा में आतंकियों के लिए कोई जगह नहीं बची है। सुरक्षा के लिए जमीनी और तकनीकी दोनों स्तरों पर काम किया जाता है।

9/11 के बाद कहां चूके हम

सख्त कानून की दरकार

9/11 के महज डेढ़ महीने बाद अमरीकी पैट्रियट एक्ट बना। सुरक्षा एजेंसियों को छानबीन की आजादी मिली। एफबीआई को ताकतवर बनाया। आतंकी मामलों में अदालती आदेश की जरूरत खत्म हुई।
टाडा और पोटा जैसे कानून बने, लेकिन विरोध और राजनीति जारी रही। मकसद पूरा नहीं कर सके ये कानून।

विदेशियों की जांच
अमरीका में डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सेक्यूरिटी पॉलिसी है, तो यूरोप, एशिया और अफ्रीकी देशों में ऐसे कानून हैं। विदेशियों के दस्तावेज, लैपटाप आदि जांच में आते हैं।
आत्मसम्मान जैसे विवाद खड़े हो जाते हैं और अक्सर इसे निजी जीवन में दखल से जोड़ दिया जाता है।

प्रशिक्षित टीम
अन्य देशों ने सुरक्षा प्रणाली में आमूलचूल बदलाव किए। अमरीका ने नेशनल काउंटर टेररिज्म सेंटर बनाया। यूरोपीय देश एक-दूसरे की मदद के लिए भी आगे आए।
मुंबई हमले के बाद थोड़े आगे भी बढ़े। लेकिन कानून व्यवस्था राज्य का मामला है। केंद्र-राज्य का विवाद आड़े आया।

आम नागरिकों का सहयोग
इस लड़ाई में आम लोगों का साथ अहम है। फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन और अमरीका ने नागरिक आजादी पर भी पाबंदी लगाई। कई यूनिवर्सिटी ने अपने कोर्सों में बदलाव किए।
ठोस कदमों का इंतजार। निचले स्तर से ही सोच में तब्दीली की कोशिश न के बराबर। नागरिक सुरक्षा लचर।

17 लाख जान जा चुकी हैं दुनियाभर में आतंकवाद से बीते 16 साल में।
2996 लोग मारे गए थे वल्र्ड ट्रेड सेंटर हमले में। सबसे बड़ा हमला।
257 लोग मारे गए थे 1993 के मुंबई बम ब्लास्ट में। 2008 के मुंबई हमले में 209 लोगों की जान गईं।
20 से ज्यादा बड़े हमले नाकाम रहे अमरीका में 9/11 के बाद।
05 सबसे ज्यादा आतंकवाद से प्रभावित देशों में शामिल है भारत
1340 अरब रुपए का अनुमानित नुकसान होता है आतंकवाद के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था को हर साल।
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