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झीरम घाटी में नक्सलियों ने आज की थी 31 कांग्रेसियों की हत्या 

Published: May 25, 2015 08:47:00 am

मई की 25 तारीख थी, वक्त दोपहर बाद चार बजे का। विधानसभा चुनाव की तैयारियों …  

jiram ghati kand

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मई की 25 तारीख थी, वक्त दोपहर बाद चार बजे का। विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी कांग्रेस का पूरा ध्यान बस्तर में था। यही वजह थी कि प्रदेश में परिवर्तन यात्रा की शुरूआत सुकमा से हो रही थी। सूबे की सियासत में अर्से बाद ऎसा समय आया था, जब कांग्रेस के सभी दिग्गज नेता एक साथ नजर आ रहे थे, यहां तक कि धुर विरोधी माने जाने वाले विद्याचरण शुक्ल और अजीत जोगी भी। सुकमा की सभा को संबोधित करने के बाद परिवर्तन यात्रा का काफिला दरभा की ओर बढ़ा। करीब 40 गाडियों का काफिला जैसे ही झीरम घाट पर पहुंचा यहां घात लगाए माओवादियों ने विस्फोट किया माओवादियों ने सलवा जुडूम आंदोलन को चलाने वाले कांग्रेस नेता महेन्द्र कर्मा को खोजा। उनके साथ-साथ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल के भी तलाश हुई। इस बीच सबसे पीछे से आ रहे विद्याचरण शुक्ल की गाड़ी भी वहां पहुंच गई। खौफजदा कांग्रेसियों ने जान बख्शने की बात कही, तो माओवादियों ने उनको एक तरफ खड़े होने का इशारा किया, पर जब महेन्द्र कर्मा सामने आए तो माओवादियों ने सबसे पहले उन्हें मौत के घाट उतार दिया।

माओवादियों ने घटना को अंजाम देने के बाद गांव में शरण ली और फिर वहां से भागने में कामयाब हो गए। घटना के कई घंटों बाद भी शासन-प्रशासन असहाय बना रहा। पुलिस भी मौके पर नहीं पहुंच पाई। देर रात तक घायलों के जगदजपुर आने का सिलसिला चलता रहा। इस बीच जब कोंटा विधायक कवासी लखमा अस्पताल पहुंचे, तो यह खुलासा हुआ कि महेन्द्र कर्मा, नंदकुमार पटेल, उनके पुत्र व उदय मुदलियार की हत्या हो चुकी है। देर रात घायल अवस्था में विद्याचरण शुक्ल को भी अस्पताल में दाखिल किया गया। करीब दस दिन के उपचार के बाद दिल्ली में मौत हो गई। झीरम की माओवादी वारदात में कांग्रेस के बड़े नेताओं समेत 31 हत्याएं हुई।

150 से अधिक महिला माओवादी
गांव के महादेव ने बताया कि इस घटना में करीब 150 से अधिक महिला माओवादी शामिल थीं। वे ही ज्यादा उत्पात मचा रही थी। मिशन की सफलता के बाद महिला माओवादी नाचती रहीं। मौके पर करीब तेरह वाहनों में माओवादियों ने जमकर गोलियां बरसाई। इन गाडियों में गोली लगने के निशान हैं। कुछ गाडियों में गोलियां आर-पार हो गई। ऎसी स्थिति में किसी को भी गोली शरीर के किसी भी हिस्से में लगी होगी।

पूरी रायफल खाली कर दी
फायरिंग के बाद महेन्द्र कर्मा बाहर निकले और आत्मसमर्पण कर दिया। कर्मा को माओवादियों ने हाथ बांधकर 200-300 मीटर दूर ले गए और गोलियों से भून दिया। उनके साथ एक पीएसओ भी मारा गया। कर्मा के साथ छह पीएसओ थे, जिनमें पांच घायल हैं। माओवादियों ने महेन्द्र कर्मा का नाम लेकर पूछा और पुलिस वालों की भी जानकारी ली। इसके बाद पीएसओ को वापस जाने कह दिया। महेन्द्र कर्मा के साथ राजनांदगांव के पूर्व विधायक उदय मुदलियार भी मौजूद थे, जिन्हें फायरिंग के दौरान गोली लगी और घटनास्थल पर ही मौत हो गई।

पूरी घटनाक्रम एक नजर
– कर्मा के साथ गाड़ी में अजय सिंह, सत्तार अली, विक्रम मण्डावी, मलकीत सिंह, चंद्रप्रकाश झाड़ी और कर्मा का एक गनमैन सवार था।
– चार बजे वे जीरम घाट पहुंचे। गोलियों की आवाज उन्हें सुनाई दी, लेकिन इसे उन्होंने समर्थकों की ओर से की जा रही आतिशबाजी समझा।
– अगले ही मोड़ पर 3-4 गोलियां कर्मा के वाहन में लगी।
– सभी वाहनों से उतकर जंगल में छिप गए। कर्मा अपने गनमैन के साथ वाहन के नीचे लेट गए।
– इसके बाद हथियार बंद माओवादियों की संख्या कम देखकर महेंद्र कर्मा के सुरक्षा कर्मियों ने फायरिंग की।
– शाम करीब साढे चार से पांच बजे बड़ी तादाद में माओवादी घाट से फायरिंग करते उतरे।
– महेन्द्र कर्मा ने दो बार माओवादियों को आवाज लगाई मत मारो, बहुत मार चुके। हम लोग आत्मसमर्पण कर रहे हैं।
– माओवादियों ने महेन्द्र कर्मा का नाम सुनने के बाद तुरंत फायरिंग बंद करते हुए उन्हें सड़क किनारे बंधक बनाया।
– कर्मा को बंदूक की बट से बेदम मारा। इसके बाद कांग्रेसियों को 50 मीटर दूर ले जाकर उल्टा लेटने को कहा और 10 मीटर आगे कर्मा को खड़ा कर दिया। इसके बाद कर्मा पर एके-47 का राउंड खाली कर दिया।

सालभर बाद भी जांच पूरी नहीं
झीरम घाट में हुए माओवादी हमले के बाद सरकार ने जस्टिस प्रशांत मिश्र की अगुवाई में एक सदस्यीय न्यायिक जांच आयोग का गठन किया। उधर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को इस बात का जिम्मा सौंपा कि वह हमलावरों का पता लगाकर उन्हें कोर्ट के सम्मुख पेश करे। लेकिन घटना के एक साल बीत जाने के बाद भी आयोग और एनआईए की स्थिति नौ दिन चले अढ़ाई कोस मुहावरे को चरितार्थ करने में ही बनी हुई है। इधर 13-14 जून को विशेष न्यायिक जांच आयोग में होने वाली सुनवाई के लिए सरकार ने अपना पक्ष सौंप दिया है। सरकार के पक्ष को लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। वही एनआईए के आईजी संजीव सिंह का कहना है कि अभी तहकीकात अंतिम दौर में हैं। 
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