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दाऊद-राजन: कभी थे खासमखास आज फूटी आंख नहीं सुहाते

राजन ने अपने आप को देशभक्त गैंगस्टर के रूप में पेश किया वहीं दाऊद ने देश के खिलाफ बैर पाले बैठे पाकिस्तान में जाकर शरण ले ली

Oct 27, 2015 / 12:52 pm

शक्ति सिंह

rajan-dawood

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मुंबई। अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम और छोटा राजन कभी एक दूसरे के जिगरी हुआ करते थे लेकिन आज एक दूसरे के खून के प्यासे हैं। एक दूसरे के खिलाफ होने के बाद राजन ने अपने आप को देशभक्त गैंगस्टर के रूप में पेश किया और बचता रहा। वहीं दाऊद ने देश के खिलाफ बैर पाले बैठे पाकिस्तान में जाकर शरण ले ली। छोटा राजन मौत को चकमा देने में माहिर रहा। फिर चाहे वो 1993 में छोटा शकील की याट पार्टी हो या फिर सितम्बर 2000 में बैंकॉक में जानलेवा हमला हो। चैम्बूर से निकला यह गैंगस्टर मुश्किल परिस्थितियों से बच निकलने में उस्ताद है। उसके पुलिस की पकड़ में आने के पीछे भी बचने की जुगत को ही बड़ा कारण माना जा रहा है।



दाऊद के बहनोई की हत्या से पनपा अविश्वास
90 के दशक के शुरूआत तक दाऊद इब्राहिम और राजन एक दांत काटी रोटी खाते थे। राजन दाऊद को पूजता था। वह चैम्बूर के शंकर सिनेमा में टिकटों की ब्लैक मार्केटिंग करते हुए आगे बढ़ा और दाऊद का दायां हाथ बन गया। दाऊद के दूसरे करीबियों को राजन का ऊपर उठना रास नहीं आया। राजन और दाऊद के बीच पहली बार जुलाई 1992 में इब्राहिम पारकर की दिनदहाड़े अरूण गवली के आदमियों द्वारा हत्या के बाद दरार आई। इब्राहिम दाऊद की बहन हसीना का पति था और हसीना से दाऊद बहुत स्नेह करता था। दाऊद उस समय बहुत बड़ा नाम बन चुका था लेकिन बावजूद इसके इब्राहिम की हत्या का बदला नहीं लिया गया। राजन उस समय दाऊद की आंख और कान था लेकिन उसने हत्या का बदला लेने के लिए कुछ नहीं किया। इसके बजाय वह शराब, शबाब और गानों में डूब गया। दाऊद और राजन क े बीच अविश्वास के बीज बोए जा चुके थे।

शकील और सावंत बने दाऊद के खासमखास
छोटा शकील और सुनील सावंत ने इस मौके का फायदा उठाते हुए उन्होंने दाऊद को विश्वास दिलाया कि वे गवली के आदमियों से बदला ले लेंगे। इसके लिए विस्तार से प्लान बनाया गया। अपने भाई साबिर कास्कर की मौत का बदला लेने के लिए दाऊद ने 1983 में अमीरजादा पर सेशन कोर्ट में हमला कराया था। छह सितम्बर 1992 को सुनील सावंत ने अपने आदमियों के साथ जेजे अस्पताल में पुलिस सुरक्षा में भर्ती गवली के आदमियों शैलेश हल्दनकर और बिपिन शेरे पर हमला किया। ह मले में हल्दनकर मारा गया जबकि शेरे बच निकला जबकि तीन पुलिसकर्मी भी मारे गए। इस हमले के जरिए दाऊद ने तीन काम पूरे किए, पहला अपने विरोधियों को चेता दिया, दूसरा अपनी बहन को दिलासा दिया और तीसरा बहनोई की हत्या का बदला लिया। दाऊद ने शकील और सावंत को अपना नंबर दो और तीन बना दिया। इ सके साथ ही राजन को मिटाने की शुरूआत हो गई।



शकील ने बनाया राजन को मारने का प्लान
1993 में एक दिन शकील ने याट पार्टी आयोजित की और इसके लिए राजन को भी न्योता भेजा। छोटा शकील ने अपने गुर्गो के साथ मिलकर राजन को मारने का प्लान बनाया था। इसी दौरान राजन को अचानक से हमले का इशारा मिल गया और उसने वहां जाना कैंसल कर दिया। साथ ही महसूस किया कि शकील अकेले उसे मारने का फैसला नहीं कर सकता और इस प्लान में दाऊद की भी सहमति है। इस पर बताया जाता है कि राजन दाऊद के कदमों में गिर गया और उसने माफी मांगी। दाऊद ने उसे अपनी विश्वसनीयता साबित करने के लिए एक मौका और दिया, जल्द ही यह मौका आ गया।

दाऊद के पक्ष में ठाकरे से भिड़ा राजन
1993 धमाकों के बाद दाऊद की छवि को काफी नुकसान पहुंचा। शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे ने “सामना” के जरिए दाऊद पर काफी हमले बोले, इससे दाऊद और उसके आदमियों के लिए जीना मुहाल हो गया। राजन ने मौके को भांपते हुए अलग-अलग अखबारों में फैक्स भेजे और कहाकि ठाकरे अपने काम से काम रखे और दाऊद को शिवसेना से देशभक्ति का सर्टिफिकेट लेने की जरूरत नहीं है। इससे दाऊद काफी खुश हुआ क्योंकि ठाकरे से टक्कर लेने की किसी में हिम्मत नहीं थी। लेकिन 1994 में राजन को लगा कि दुबई में उसे मारा जा सकता है तो वह वहां से भाग गया।



बैंकॉक में बाल-बाल बचा
राजन ने भारतीय दूतावास से मदद मांगी और जल्दबाजी में नया पासपोर्ट बनवाया। राजन शकील को कमजोर करना चाहता था। इसके चलते राजन ने साधु शेट्टी, अवधूत बोंडे और विलास माने के साथ शकील के आदमियों पर हमला बोल दिया। इसके साथ ही उसने दुबई में दाऊद के बिजनेस को भी नुकसान पहुंचाया। इसके चलते दाऊद को दुबई छोड़ कराची भागना पड़ा। अचानक से ही राजन तथाकथित देशभक्त डॉन बन गया। इसके बाद राजन और दाऊद की दुश्मनी ने सारी पुरानी राइ वलरिज को पीछे छोड़ दिया। 15 सितम्बर 2000 को उस पर शकील के आदमियों ने बैंकॉक में जानलेवा हमला किया लेकिन वह बच गया। इसमें राजन बुरी तरह से घायल हो गया था।

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