वॉशिंगटन. आपने फिंगरप्रिंट व आंखों की पुतलियों से किसी डिवाइस को अनलॉक करने के बारे में सुना होगा। क्या मानव शरीर से किसी डिवाइस में पासवर्ड ट्रांसफर कर डिवाइस अनलॉक या लॉक करने के बारे से सुना है। अगर नहीं, तो वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के छात्रों की तकनीक के बारे में जानिये। इन्होंने ऐसा ही डिवाइस तैयार किया है। यह शरीर से सिक्यॉर पासवर्ड भेज सकता है।
इन पासवर्ड्स को किसी डिवाइस के फिंगरप्रिंट सेंसर या टचपैड द्वारा जेनरेट किए जाने वाले लो फ्रिक्वेंसी ट्रांसमिशंस के जरिये भेजा जाता है। जिस टीम ने इस तकनीक को तैयार किया है उसमें छात्र मेरहददा हेसार प्रमुख हैं। वह कहते हैं कि अब तक जो तकनीक थी, उसमें फिंगरप्रिंट से पासवर्ड खोलने या लगाने के दौरान पासवर्ड हैक होने की 80 फीसदी संभावना होती है। वो दावा करते हैं कि इस नई तकनीक में हैक नहीं हो सकता क्योंकि इसमें शरीर से पासवर्ड को ट्रांसफर किया जाता है।
ऐसे करेगा डिवाइस काम
इस तकनीक के तहत यदि किसी को कोई दरवाजा खोलना है तो उसे एक हाथ से दरवाजा छूना होगा और दूसरे हाथ से अपने फोन का फिंगरप्रिंट सेंसर। इससे यह डिवाइस फिंगरप्रिंट के डाटा व पासवर्ड को शरीर से होते हुए दरवाजे में लगे रिसीवर को भेज देगा। इससे दरवाजा खुल जाएगा। दरअसल, आमतौर पर सेंसर जो सिग्नल पैदा करता है, उसमें वह उंगली के इनपुट रिसीव करता है। मगर इंजिनियर्स द्वारा इजाद किए गए तरीके से इन सिग्नल्स को किसी अन्य डिवाइस के लिए पासवर्ड के तौर ट्रांसमिट किया जा सकता है। स्मार्टफोन में डाले गए डाटा को यूजर के शरीर से होते हुए रिसीवर तक भेजा जाता है।
बेहत सुरक्षित है तरीका
इस तरीके को बहुत सुरक्षित माना जा रहा है, क्योंकि वाई-फाई या ब्लूटूथ जैसी रेडियो वेव से भेजे जाने वाले इस तरह के कोड्स को हैक किया जा सकता है। यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रफेसर श्याम गोलाकोटा कहते हैं कि फिंगरप्रिंट सेंसर को अब तक इनपुट डिवाइस के तौर पर इस्तेमाल किया जाता रहा है, मगर हमने पहली बार दिखाया है कि इसकी मदद से अन्य डाटा भी भेजा जा सकता है। डाटा को एनकोड और ट्रांसमिट करने के लिए फिंगर को एक सीक्वेंस में स्कैन किया जाता है। बता दें कि इस टीम ने लैपटॉप के टचपैड्स पर 50 बिट्स प्रति सेकंड और फिंगरप्रिंट सेंसर्स की मदद से 25 बिट्स प्रति सेकंड के रेट से डेटा सेंड करने में कामयाबी पाई है। इससे कुछ ही सेकंड्स में पासवर्ड को शरीर से होते हुए रिसीवर को भेजा जा सकता है।
10 लोगों पर किए गए टेस्ट
छात्रों का कहना है कि इस सिस्टम ने तब भी काम किया, जब टेस्ट में शामिल हुए लोग चल रह थे या अन्य हरकत कर रहे थे। यूनिवर्सिटी में इलेक्ट्रिकल इंजिनियरिंग डॉक्टरल स्टूडेंट विक्रम अय्यर ने कहा कि हमने दिखाया कि ये विभिन्न अवस्थाओं में काम कर सकता है। खड़े होने पर, बैठे रहने पर या सोते हुए भी। हम आपके शरीर पर कहीं भी स्ट्रॉन्ग सिग्नल पा सकते हैं। रिसीवर टांग पर हो, छाती पर या फिर हाथ पर, यह सफलता से काम करेगा।
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