नई दिल्ली। सियाचिन में छह दिनों तक भारी बर्फ के नीचे दबे रहे लांसनायक हनुमनथप्पा कोपड़ चमत्कारिक ढंग से मौत को मात देने में कामयाब रहे। उन्हें मंगलवार सुबह सियाचिन से दिल्ली के सैन्य अस्पताल लाया गया। हालांकि उनकी हालत अभी नाजुक बनी हुई है। लांस नायक हनुमनथप्पा अभी भी कोमा में हैं। उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया है। उनका लिवर और किडनी ठीक से काम नहीं कर रहा। साथ ही उन्हें निमोनिया भी है। लेकिन सांसें चल रही हैं और पूरा देश यही कामना कर रहा है कि लांस नायक अपने पैरों पर खड़े हो जाएं।
दिल्ली के रिसर्च एंड रेफरल हॉस्पिटल के डॉक्टर्स ने बुधवार को कहा कि उनकी हालत में कोई खास सुधार नहीं हो रहा है। बता दें कि हनुमनथप्पा मद्रास रेजीमेंट के अधिकारियों की टीम के सदस्य थे, जो तीन फरवरी को सियाचिन में पाकिस्तान से लगी नियंत्रण रेखा के निकट 20 हजार पांच सौ फीट की ऊंचाई पर बर्फ का पहाड़ ढहने से उसकी चपेट में आ गए थे।
सोमवार रात को राहत टीम ने खोजा था
हादसे के बाद से ही सेना और वायुसेना ने दुर्गम इलाके की विषम परिस्थितियों के बीच खोजबीन अभियान चलाया। जबकि हादसे के 48 घंटे बाद सभी सैनिकों को मृत मान लिया गया था। लेकिन सोमवार को चमत्कार देखने को मिला, जब हनुमनथप्पा को बर्फ की कठोर चट्टानों के बीच दबा पाया गया।
125 घंटे 35 फीट बर्फ के नीचे दबे रहे लांस नायक
कई घंटों तक 35 फीट बर्फ हटाने के बाद हनुमनथप्पा तक रेस्क्यू टीम पहुंची। 33 साल के हनुमनथप्पा 125 घंटे से वहां थे। उनका फाइबर युक्त तंबू ध्वस्त हो चुका था। उनकी बॉडी में ऑक्सीजन नहीं पहुंच पा रही थी। वे बेहोशी की हालत में मिले। उनकी पल्स नहीं मिल रही थी। उनके शरीर का पानी सूख चुका था। डिहाइड्रेशन के अलावा ठंड से हाइपोथर्मिया हो गया था। सोनम पोस्ट पर सेना के बचाव दल ने देर रात उन्हें बर्फ काटकर बाहर निकाला। मेडिकल टीम यह देखकर हैरान रह गई कि हनुमनथप्पा की सांसें चल रही थीं। मेडिकल टीम ने उन्हें वहीं प्राथमिक चिकित्सा दी। इसके बाद उन्हें साल्तोरो रिज स्थित दुनिया के सबसे ऊंचाई पर स्थित हेलीपैड से हेलीकाप्टर के जरिए बेस कैंप लाया गया। अगले 24 से 48 घंटे क्रिटिकल हैं।
धरती पर सबसे ऊंचाई पर मौजूद हेलिपैड से भेजे गए हनुमनथप्पा
लांस नायक को मंगलवार सुबह 9 बजे धरती में सबसे ऊंचाई पर मौजूद सेल्टोरो रिज हेलिपैड से रवाना किया गया। उन्हें सियाचिन बेस कैम्प लाया गया। अच्छी बात यह थी हनुमनथप्पा के शरीर पर जख्म के निशान नहीं थे। ऐसा होता तो खून बहने या जम जाने से उन्हें ज्यादा नुकसान हो सकता था।
आर्मी ने कैसे चलाया रेस्क्यू ऑपरेशन?
आर्मी की 19वीं मद्रास रेजिमेंट के 150 जवानों और लद्दाख स्काउट्स और सियाचिन बैटल स्कूल के जवानों को 19600 फीट की ऊंचाई पर रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए तैनात किया गया। इनके साथ दो स्निफर डॉग्स ‘डॉटÓ और ‘मिशाÓ भी थे। आर्मी के सामने चैलेंज यह था कि उसे 800-1000 मीटर के इलाके में इंच-दर-इंच सर्च करना था। यहां 35 फीट तक बर्फ जम चुकी थी। यह पत्थर से भी ज्यादा सख्त होती है। सियाचिन के बेहद मुश्किल मौसम को झेलने के लिए ट्रेन्ड जवानों ने चौबीसों घंटे सर्च जारी रखी। दिन में टेम्परेचर माइनस 30 डिग्री और रात में माइनस 55 डिग्री चला जाता था। इसके बावजूद जवान और दोनों खोजी डॉग्स डॉट और मिशा ऑपरेशन में लगे रहे।
ऐसे बचे होंगे हनुमनथप्पा
- – डॉक्टरों के मुताबिक, जिन विपरीत परिस्थितियों में लांसनायक ने खुद को जिंदा रखा, उसका जवाब चिकित्सा विज्ञान के पास नहीं है।
- – लांसनायक की जगह सामान्य आदमी होता तो 2 घंटे में दम तोड़ देता। एक संभावना है कि हादसे के बाद बर्फ के भीतर एयर बबल बन गया होगा।
- – ठंड से लांसनायक बेहोश हो गए होंगे और कार्डियोप्लेजिया की स्थिति में चले गए होंगे। इस स्थिति में शरीर के अंग न्यूनतम काम करते हैं। ऐसे में उनके शरीर ने न्यूनतम ऑक्सीजन का इस्तेमाल किया होगा।
- – एक संभावना यह भी है कि हनुमनथप्पा ने योग के तौर तरीके अपनाए हों।
ऑपरेशन में ऐसे मिली तकनीकी मदद
आर्मी ने इतनी ऊंचाई पर पेनिट्रेशन रडार भेजे जो बर्फ के नीचे 20 मीटर की गहराई तक मेटैलिक ऑब्जेक्ट्स और हीट सिग्नेचर्स पहचान सकते हैं। एयरफोर्स और आर्मी एविएशन हेलिकॉप्टर के इस्तेमाल में लाए जाने वाले रेडियो सिग्नल डिटेक्टर्स भी भेजे गए। इनसे ऑपरेशन में मदद मिली। तेज हवाओं के चलते बार-बार रेस्क्यू ऑपरेशन में अड़चनें आईं। छठे दिन हनुमनथप्पा मिल गए। बाकी 9 जवानों के शव भी मिले। दरअसल, एवलांच से पहले बेस कैम्प को रेडियो मैसेज मिला था। आर्मी का मानना है कि यह मैसेज हनुमनथप्पा ने ही किया होगा। इस मैसेज की लोकेशन ट्रेस करते हुए टीम एक जगह पर पहुंची। स्निफर डॉग्स उस लोकेशन पर आकर रुक गए, जहां हनुमनथप्पा फंसे हुए थे। हीट सिग्नेचर्स ट्रेस करने वाले पेनिट्रेशन रडार ने भी यही लोकेशन ट्रेस की। इसके बाद एक लोकेशन फाइनल कर सोमवार शाम 7.30 बजे बर्फ को ड्रिल करने का काम शुरू हुआ।
ऐसा है सियाचिन
- – पृथ्वी पर सबसे ऊंचा युद्धस्थल है। दुश्मन से लडऩे के बजाय सैनिक खराब मौसम की वजह से ज्यादा जान गंवाते हैं।
- 1984 के बाद से पिछले 30 सालों में 846 जवान यहां जान गवां चुके हैं।
- – माइनस 60 डिग्री तक तापमान और 5,400 मीटर तक ऊंचाई। वायुमंडलीय दबाव और ऑक्सीजन की भयंकर कमी।
- – मौटे तौर पर आप समझ सकते हैं कि सामान्य क्षेत्रों में मौजूद ऑक्सीजन की सिर्फ 10 प्रतिशत ऑक्सीजन सियाचीन में उपलब्ध होती है।
- – यहां हवा एक सेकंड में 100 मील प्रति घंटे की रफ्तार पार कर जाती है।
76 किमी के दायरे में फैला है सियाचिन ग्लेशियर।
यहां यदि आप नग्न हाथों से बंदूक के ट्रिगर या नली को 15 सेकंड तक छू लें तो हाथ सुन्न पड़ जाएंगे या आपको कोल्ड बाइट हो जाएगा। यह ऐसी स्थिति होती है जिसमें अत्यधिक ठंड के कारण अंगुलियां या शरीर के अंग गल कर गिर जाते हैं। मानव शरीर 5400 मीटर से अधिक ऊंचाई पर खुद को अनुकूल नहीं बना पाता।
यदि इस ऊंचाई पर आप अधिक समय तक रहते हैं तो आपका वजन कम होने लगता है। आपकी याद्दाश्त खोने लगती है। आपको भूख नहीं लगती, नींद नहीं आती। यानी आपका शरीर क्षय होने लगता है। ताजे फल खाना यहां दुर्लभ है। संतरे या सेब यहां क्रिकेट की बॉल की तरह कठोर हो जाते हैं। यहां सिर्फ डिब्बाबंद भोजन ही खाया जाता है।
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